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Photograph: (the sootr)
भोपाल में जबलपुर लोकायुक्त ने एक सरकारी बाबू को रिश्वत लेते रंगे हाथ पकड़ा। यह मामला अनुसूचित जाति विकास कार्यालय से जुड़ा हुआ है, जहां एक सहायक ग्रेड वन कर्मचारी ने एक महिला कर्मचारी से जाति प्रमाण पत्र की जांच को दबाने के लिए पांच लाख रुपए की रिश्वत की मांग की थी।
महिला कर्मचारी की शिकायत के बाद जबलपुर लोकायुक्त पुलिस ने आरोपी को एक लाख रुपए की रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया। इस घटना ने सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार के मामलों को फिर से उजागर कर दिया है।
जाति प्रमाण पत्र की जांच दबाने मांगे थे 5 लाख
जानकारी के अनुसार आरोपी जीवन लाल बरार, जो कि अनुसूचित जाति विकास कार्यालय में सहायक ग्रेड वन के पद पर कार्यरत था, उसने छिंदवाड़ा में वाणिज्य कर कार्यालय में सहायक ग्रेड 2 के पद पर तैनात उषा दाभीरकर से जाति प्रमाण पत्र की जांच दबाने के लिए रिश्वत की मांग की थी। आरोपी ने उषा से पांच लाख रुपए की मांग की, जिसमें से एक लाख रुपए की पहली किश्त लेकर उसे भोपाल स्थित अपने घर पर बुलाया था।
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जांच का डर दिखाकर बना रहा था दबाव
इस मामले में फरियादी उषा दाभीरकर ने बताया कि उसके जाति प्रमाण पत्र में कुछ समस्याएं है, जिसे लेकर विभागीय स्तर पर जांच चल रही थी। इसी जांच को लेकर कार्यालय आयुक्त अनुसूचित जाति विकास विभाग भोपाल में पदस्थ क्लर्क जीवन लाल द्वारा उससे पांच लाख रुपए की मांग की जा रही थी।
उसने कई बार क्लर्क जीवन लाल से रिश्वत की राशि कम करने की मांग की थी, लेकिन उसने इससे इंकार कर दिया। मजबूर होकर उन्होंने इस मामले की शिकायत लोकायुक्त एसपी जबलपुर अंजुलता पटले को की। शिकायतकर्ता ने बताया कि उसकी अब केवल दो साल की सर्विस और शेष बची है।
लोकायुक्त की कार्रवाई और कानूनी प्रक्रिया
लोकायुक्त पुलिस ने उषा की शिकायत पर जांच की और आरोपों को सही पाया। इसके बाद, लोकायुक्त पुलिस ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (संशोधन) 2018 की धारा 7,13 (1) B ,13 (2) के अंतर्गत आरोपी के खिलाफ कार्रवाई की और उसे गिरफ्तार कर लिया। यह गिरफ्तारी दर्शाती है कि सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के लिए प्रतिबद्ध है।
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घर में रिश्वत लेते रंगेहाथों दबोचा टीम ने
इस मामले में शिकायत मिलने के बाद मामले की लोकायुक्त जबलपुर द्वारा अपने स्तर पर जांच करवाई गई। जांच में रिश्वत की बात सही साबित होने पर लोकायुक्त पुलिस ने विशेष केमिकल लगे नोट शिकायतकर्ता महिला कर्मचारी को दिए। महिला कर्मचारी पहली किश्त के एक लाख रुपए लेकर बाबू जीवनलाल बरार के भोपाल स्थित घर पहुंची थी। यहां जैसे ही उन्होंने रिश्वत के रुपए आरोपी क्लर्क को दिए, लोकायुक्त डीएसपी नीतू त्रिपाठी की टीम ने क्लर्क को रंगे हाथों पकड़ लिया।
लोकायुक्त पुलिस ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (संशोधन) 2018 की धारा 7,13 (1) B ,13 (2) के अंतर्गत आरोपी के खिलाफ कार्रवाई की और उसे गिरफ्तार कर लिया। यह गिरफ्तारी दर्शाती है कि सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के लिए प्रतिबद्ध है।
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क्या होता है लोकायुक्त
यह एक भ्रष्टाचार विरोधी व्यवस्था है। किसी राज्य में लोकायुक्त व्यवस्था का मकसद लोक सेवकों और सरकारी अधिकारियों के खिलाफ शिकायतों और आरोपों की जांच करना है। भारत में प्रशासनिक सुधार आयोग की ओर से केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त नियुक्त करने की सिफारिश की गई थी।
मध्य प्रदेश के वर्तमान लोकायुक्त न्यायमूर्ति सत्येंद्र कुमार सिंह हैं। उन्हें 13 मार्च, 2024 को राज्यपाल मंगूभाई पटेल ने शपथ दिलाई थी। इससे पहले, न्यायमूर्ति एन.के. गुप्ता मध्य प्रदेश के लोकायुक्त थे। उनका कार्यकाल समाप्त होने के बाद, न्यायमूर्ति सत्येंद्र कुमार सिंह को नया लोकायुक्त नियुक्त किया गया है।
रंगे हाथों पकड़ने का क्या मतलब है?
रिश्वतखोरी के मामलों में अक्सर सुनने को मिलता है कि आरोपी को रंगे हाथों पकड़ा गया। इसका मतलब यह होता है कि आरोपी के हाथों को धुलवाने के बाद जो पानी उसके हाथों से निकलता है, उसका रंग बैंगनी हो जाता है। यह बैंगनी रंग नोटों पर लगे फिनोफ्थेलिन केमिकल के कारण आता है।
फिनोफ्थेलिन एक दुर्बल अम्ल होता है, जो पानी के संपर्क में आते ही रिएक्शन कर अपना रंग बदल लेता है। यह इतना सुक्ष्म होता है कि सादे या करंसी नोट के कागजों पर लगा देने के बाद मानव आंखों से दिखाई नहीं देता है, लेकिन एकबार इसके संपर्क में आने वाले व्यक्ति के हाथों में यह चिपक जाता है, व हाथ धुलवाते ही यह रिएक्शन भी करता है, जिससे व्यक्ति और नोटों के संपर्क की पुष्टि भी हो जाती है।
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