जबलपुर मेडिकल कॉलेज की तत्कालीन डीन और फार्मासिस्ट ने मेडीनोवा कंपनी के साथ मिलकर किया फर्जीवाड़ा

मध्यप्रदेश के जबलपुर मेडिकल कॉलेज में करोड़ों रुपए का घोटाला उजागर हुआ है। EOW ने तत्कालीन डीन सविता शर्मा, फार्मासिस्ट आर.पी. दुबे और मेडीनोवा फार्मास्युटिकल्स के संचालक के खिलाफ एफआईआर दर्ज की।

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Neel Tiwari
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JABALPUR.मध्यप्रदेश के सबसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों में से एक, मेडिकल कॉलेज जबलपुर से करोड़ों रुपए का घोटाला उजागर हुआ है। EOW ने जांच के बाद तत्कालीन डीन सविता शर्मा, फार्मासिस्ट आर.पी. दुबे और मेसर्स मेडीनोवा फार्मास्युटिकल्स एंड सर्जिकल डिस्ट्रीब्यूटर के संचालक के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। आरोप है कि इन तीनों ने आपसी मिलीभगत से दवाइयों और सर्जिकल सामग्री की खरीद में हेराफेरी कर शासन को 1.25 करोड़ रुपए का आर्थिक नुकसान पहुंचाया।

महंगे दामों पर दवाइयां और सर्जिकल सामग्री

जांच रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2011-12 में मेडिकल कॉलेज जबलपुर ने दवाइयों और सर्जिकल सामग्री की सप्लाई के लिए निविदाएं जारी की थीं। टेंडर प्रक्रिया में पहले पांच कंपनियों ने शर्तों से असहमति जताई, जिसके बाद वित्त अधिकारी ने अस्थायी तौर पर छठी कंपनी मेडीनोवा से अनुबंध करने और जल्द ही नई निविदा बुलाने का सुझाव दिया। लेकिन इसके विपरीत, फार्मासिस्ट आर.पी. दुबे ने वर्ष 2013 तक लगातार मेडीनोवा से ही महंगे दामों पर दवाइयां और सर्जिकल सामग्री खरीदी।

सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि तत्कालीन डीन सविता शर्मा ने अनुबंध की कई महत्वपूर्ण शर्तों को जानबूझकर शामिल ही नहीं किया। इस लापरवाही (या साजिश) का सीधा फायदा मेडीनोवा कंपनी को हुआ और सरकारी खजाने से अतिरिक्त 1.25 करोड़ रुपए की राशि भुगतान में चली गई।

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पद का दुरुपयोग कर रची आपराधिक साजिश

EOW की जांच में साफ हुआ कि इस पूरे मामले में सिर्फ अनियमितता ही नहीं बल्कि योजनाबद्ध साजिश की गई। डीन और फार्मासिस्ट ने निजी कंपनी को अनुचित लाभ पहुंचाने के लिए पद का दुरुपयोग किया। उनके इस कदम से न सिर्फ सरकारी खजाने को चूना लगा, बल्कि संस्थान की पारदर्शिता और विश्वसनीयता भी धूमिल हुई।

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4 पॉइंट्स में समझें पूरी स्टोरी

👉 Jabalpur Medical College में दवाइयों और सर्जिकल सामग्री की खरीद में घोटाले का खुलासा हुआ है।EOW ने तत्कालीन डीन सविता शर्मा, फार्मासिस्ट आर.पी. दुबे और मेडीनोवा फार्मास्युटिकल्स एंड सर्जिकल डिस्ट्रीब्यूटर के संचालक के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है।
👉 2011-12 में, मेडिकल कॉलेज ने दवाइयों और सर्जिकल सामग्री की सप्लाई के लिए निविदाएं जारी की थीं। शुरुआती निविदाओं में कंपनियों ने असहमति जताई, लेकिन इसके बाद फार्मासिस्ट ने मेडीनोवा से महंगे दामों पर दवाइयां खरीदीं, जो 2013 तक जारी रही।
👉 तत्कालीन डीन सविता शर्मा ने जानबूझकर अनुबंध की कई महत्वपूर्ण शर्तों को शामिल नहीं किया, जिससे मेडीनोवा कंपनी को फायदा हुआ। यह लापरवाही नहीं, बल्कि एक सोची-समझी साजिश का हिस्सा प्रतीत होती है, जिसमें सरकारी खजाने से अतिरिक्त 1.25 करोड़ रुपए का भुगतान हुआ।
👉 डीन और फार्मासिस्ट ने अपने पद का दुरुपयोग करके निजी कंपनी को अनुचित लाभ पहुंचाया। इससे न केवल सरकारी खजाने को नुकसान हुआ, बल्कि मेडिकल कॉलेज की विश्वसनीयता और पारदर्शिता भी प्रभावित हुई।

कानूनी शिकंजा कसना शुरू

EOW ने आरोपियों के खिलाफ धारा 409 (आपराधिक न्यासभंग), 120बी (साजिश), भादवि और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 2018 की धारा 7(सी) के तहत प्रकरण दर्ज किया है। फिलहाल विवेचना जारी है और माना जा रहा है कि आगे की जांच में और भी कई नए नाम सामने आ सकते हैं।

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खतरनाक है स्वास्थ्य सुविधाओं में घोटाला

यह घोटाला केवल पैसों का मामला नहीं है, बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं और मरीजों की जिंदगी से जुड़ा मुद्दा है। जब मेडिकल कॉलेज जैसे बड़े संस्थान में भ्रष्टाचार सामने आता है, तो लोगों का विश्वास बुरी तरह प्रभावित होता है। अब सभी की नजरें इस पर टिकी हैं कि जांच के बाद दोषियों को कितनी सख्त सजा मिलती है और शासन किस तरह इस व्यवस्था में सुधार लाता है।

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