Medical University FD Scam : बिना अनुमति फाइनेंशियल कंट्रोलर ने चालू बैंक खातों में जमा कराए 40 करोड़

Medical University FD Scam : मध्‍य प्रदेश की इकलौती मेडिकल यूनिवर्सिटी में FD घोटाला मामले में यूनिवर्सिटी के पूर्व फाइनेंशियल कंट्रोलर का नाम सामने आया है। वित्त नियंत्रक पर चालू बैंक खातों में बिना अनुमति 40 करोड़ रुपए जमा करने के आरोप हैं। 

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Shreya Nakade
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मेडिकल यूनिवर्सिटी घोटाले में वित्त नियंत्रक का नाम

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Medical University FD Scam : मध्य प्रदेश की इकलौती मेडिकल यूनिवर्सिटी में एफडी घोटाला ( FS Scam ) के कारण चर्चा में है। इस मामले में अब यूनिवर्सिटी के पूर्व वित्त नियंत्रक ( Financial Controller ) का नाम सामने आया है। वित्त नियंत्रक पर चालू खातों में बिना अनुमति 40 करोड़ रुपए जमा करने के आरोप हैं। 

मेडिकल यूनिवर्सिटी में एफडी घोटाला ( Medical University FD Scam ) 2020 में ही शुरु हो गया था। एसबीआई बैंक के दो चालू खातों में 2021 में यूनिवर्सिटी के पूर्व फाइनेंशियल कंट्रोलर रवि शंकर डेकाते ने बिना अनुमति 40 करोड़ रुपए जमा कराए। यह रकम 25 मार्च 2021 और 27 अगस्त 2021 को जमा कराई गई थी। 28 फरवरी 2023 में मामला सामने आया। कुलगुरु डॉ अशोक खंडेलवाल के नोटिस जारी करने पर भी वित्त नियंत्रक ने कोई जवाब नहीं दिया। 

ऐसे हुआ घोटाले का खुलासा 

यूनिवर्सिटी के खातों का ऑडिट करने आए अधिकारी जेएल वर्मा की एक गलती के कारण इस पूरे घोटाले का खुलासा हुआ। दरअसल, उन्हें साल 2017-18 और 2018-19 की ऑडिट रिपोर्ट जांच करने का आदेश दिया था। उन्होंने यूनिवर्सिटी में 2021-22 और 2022-23 के रिकॉर्ड आडिट कर दिये। इसके बाद जेएल वर्मा को गलत और बिना अनुमति ऑडिट करने का नोटिस भी जारी किया गया।

इस ऑडिट की रिपोर्ट से ही यूनिवर्सिटी में 120 करोड़ रुपए के FD Scam का खुलासा हुआ। यूनिवर्सिटी की 120 करोड़ की एफडी ऑटो रिन्युवल मोड पर न होने की बात सामने आई। हालांकि यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर ने एफडी के ऑटो रिन्यूवल मोड पर होने का दावा किया है। 

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क्या है पूरा मामला ?

जबलपुर की मेडिकल यूनिवर्सिटी (Jabalpur Medical University ) में 110 करोड़ से ज्यादा रुपए की एफडी में घोटाला (FD Scam Medical University ) हुआ है। यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ. अशोक खंडेलवाल, रजिस्ट्रार डॉ. पुष्पराज सिंह बघेल और फाइनेंस कंट्रोलर रविशंकर डेकाते पर आरोप है कि उन्होंने 120 करोड़ की अलग- अलग एफडी को मैच्योर होने के बाद भी कम ब्याज पर बैंक में जमा करके रखा। इन्हें रिन्यू नहीं कराया गया। इस कारण 9 करोड़ रुपए के ब्याज का नुकसान मेडिकल यूनिवर्सिटी को उठाना पड़ा।

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