केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की मां और ग्वालियर के सिंधिया राजघराने की राजमाता 70 वर्षीय माधवी राजे सिंधिया ( Madhavi Raje Scindia ) का लंबी बीमारी के बाद 15 मई को निधन हो गया। उनकी हालत पिछले कुछ महीनों से नाजुक बनी हुई थी। उन्हें उपचार के लिए दिल्ली एम्स में भर्ती कराया गया था, जहां उन्होंने अंतिम सांसें ली। 16 मई को ग्वालियर में राजघराने की परंपरा के अनुसार राजमाता का अंतिम संस्कार किया जाएगा।
राजमाता माधवी राजे सिंधिया भारत के प्रतिष्ठित परिवारों में से एक की बहु रहीं । ग्वालियर की महारानी और फिर राजमाता बनी, हालांकि इन सामाजिक पदों के बावजूद वे लाइम लाइट से अक्सर दूरी बनाकर रखती थी। उनका स्वभाव और जीवन काफी सरल और साधारण रहा है। सिंधिया परिवार की अन्य बहुओं या बेटियों की तरह वे कभी राजनीति में भी नहीं आई। राजमाता माधवी राजे भले ही राजनीति में कभी ना आई हो पर अपने पति और बेटे के राजनीतिक करियर में उनका पूरा सहयोग रहा।
मायका-ससुराल राजनीति से जुड़े रहे
माधवी राजे सिंधिया नेपाल के राणा वंश की बेटी थी। उनके दादा जुद्ध शमशेर बहादुर नेपाल के प्रधानमंत्री रह चुके हैं। राणा वंश नेपाल की राजनीति में काफी सक्रिय रहा है। हालांकि शादी से पूर्व राजमाता सिंधिया किसी प्रकार से राजनीति में शामिल नहीं हुई।
ग्वालियर के जिस सिंधिया घराने में नेपाल की एक राजकुमारी का विवाह हुआ, वह भी भारत का राजनीति में सबसे सक्रिय राजवंश था। माधवी राजे की सास और विवाह के समय सिंधिया राजवंश की राजमाता विजयाराजे सिंधिया ( Vijaya Raje Scindia ) ग्वालियर की सांसद थी। माधवराव सिंधिया ( Madhav Rao Scindia ) विजयाराजे के सियासी उत्तराधिकारी बने। उनकी इस सियासी पारी में पत्नी माधवी का पूरा सहयोग रहा। इसके अलावा माधव राव की बहनें वसुंधरा राजे और यशोधरा राजे भी राजनीति में सक्रिय है।
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सोनिया गांधी का चुनाव लड़ने का ऑफर ठुकराया
सिंधिया परिवार हमेशा से देश की राजनीति में सक्रिय रहा है। गुना और ग्वालियर की जनता ने हमेशा इस परिवार के प्रभाव में ही अपना नेता चुना है। ऐसे में 2001 में महाराज माधव राव सिंधिया की अचानक मृत्यु के बाद, कांग्रेस पार्टी की तरफ से माधवी राजे पर सक्रिय राजनीति में आने का दबाव बनने लगा था। माना जाता है कि खुद सोनिया गांधी ने उनसे माधवराव की मृत्यु के बाद गुना लोकसभा सीट पर उप चुनाव लड़ने के लिए कहा था।
इस समय माधवी राजे के राजनीति में आने के कयास लगाए जा रहे थे। हालांकि उनकी चुनाव लड़ने की कोई इच्छा नहीं थी। ऐसे में उन्होंने 30 साल की उम्र में ज्योतिरादित्य सिंधिया ( Jyotiraditya Scindia ) को राजनीति के मैदान में उतारा। सिंधिया 2001 में गुना लोकसभा सीट से सांसद चुनकर आए। वे लगातार 2019 तक गुना के सांसद बने रहे।
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