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Photograph: (THESOOTR)
मध्य प्रदेश के जबलपुर में एक धोखाधड़ी का मामला सामने आया है। विदेशी कंपनी क्रिस्टल माइंड ने एमजी वेल्स सॉल्यूशन और उसके अधिकारियों पर लाखों की ठगी का आरोप लगाया है। जबलपुर न्यायालय ने इस मामले में गंभीर आपराधिक धाराओं में केस दर्ज करने का आदेश दिया है। मामला जालसाजी और फर्जी दस्तावेजों से जुड़ा है।
75.15 लाख की डील, 37.57 लाख देने के बाद भी नहीं मिला कोई सामान
विदेशी व्यापारी मुराद मानसी फाहिम, जो कि क्रिस्टल माइन्ड कंपनी के मालिक हैं, ने भारत में व्यापार विस्तार के उद्देश्य से जबलपुर की एमजी वेल्स कंपनी के साथ ऑयल फील्ड एक्सप्लोरेशन (Oil Field Exploration) यानी तेल क्षेत्रों में उपयोग होने वाले स्पेयर पार्ट्स की आपूर्ति हेतु करार किया था। इस करार की कुल राशि 90 हजार अमेरिकी डॉलर थी, जिसका भारतीय मुद्रा में मूल्य लगभग 75 लाख 15 हजार है। इस करार के तहत, मुराद फाहिम ने पहली किस्त के रूप में 45,000 डॉलर यानी लगभग 37 लाख 57 हजार रुपए एमजी वेल्स कंपनी को भेजे।
यह रकम इस उद्देश्य से दी गई थी कि एमजी वेल्स, जिंदल ड्रिलिंग कंपनी को क्रिस्टल माइन्ड की ओर से आवश्यक स्पेयर पार्ट्स की सप्लाई करेगा। लेकिन न केवल ये सप्लाई नहीं हुई, बल्कि रकम वापस मांगने पर भी मुराद को कोई भुगतान नहीं किया गया। यह घटना मुराद के लिए एक बहुत बड़ा झटका थी, क्योंकि इस निवेश से उन्हें भारत में अपने व्यापार का विस्तार करना था।
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15.45 लाख की दूसरी किस्त भी हजम कर गए आरोपी
मामला यहीं खत्म नहीं हुआ, मुराद फाहिम ने एमजी वेल्स कंपनी पर एक बार फिर विश्वास जताया और 18,500 अमेरिकी डॉलर यानी 15,45,000 रुपए की एक और रकम इस उद्देश्य से भेजी कि कंपनी जिंदल ड्रिलिंग को इंजीनियरिंग सेवाएं उपलब्ध कराए। यह एक तकनीकी समझौता था, जिसमें क्रिस्टल माइन्ड को भारत में एक विश्वसनीय सप्लायर के तौर पर स्थापित करना था। लेकिन इस बार भी न तो कोई सेवा दी गई और न ही मुराद को उनकी रकम वापस मिली। इस तरह कुल 63,500 अमेरिकी डॉलर (45,000 + 18,500), जो कि भारतीय मुद्रा में लगभग 53,02,500 रुपए होते हैं, मुराद से लिए गए और किसी भी प्रकार की सेवा या या स्पेयर पार्ट्स की सप्लाई नहीं की गई।
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फर्जी बिल के जरिए जालसाजी और सील का दुरुपयोग
मुराद फाहिम और उनके साक्षी मेहर फाहिम ने कोर्ट में यह भी बताया कि एमजी वेल्स कंपनी के सेल्स मैनेजर ई.डी. मूर्ति ने क्रिस्टल माइन्ड कंपनी की अधिकृत मुहर और नाम का गलत तरीके से उपयोग किया। उन्होंने 17 अप्रैल 2015 को एक इनवायस (बिल) जिंदल ड्रिलिंग कंपनी को भेजा, जिसमें खुद हस्ताक्षर कर यह दर्शाया गया कि वह इनवायस क्रिस्टल माईन्ड की ओर से भेजा गया है। जबकि ई.डी. मूर्ति को कंपनी की ओर से ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं था। इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि क्रिस्टल माईन्ड की प्रतिष्ठा और कानूनी पहचान का दुरुपयोग किया गया, और उनके नाम पर फर्जी दस्तावेज तैयार कर व्यापारिक लाभ उठाने की कोशिश की गई। कोर्ट ने इसे मूल्यवान दस्तावेज की जालसाजी माना है।
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कोर्ट ने पाया धोखाधड़ी और विश्वासघात मामला
जबलपुर डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में जज देवरथ सिंह ने मुराद फाहिम और उनके साक्षी के शपथपत्र और प्रस्तुत दस्तावेजों का गहराई से अध्ययन किया। कोर्ट ने माना कि यह सिर्फ एक व्यावसायिक विवाद नहीं है, बल्कि धोखाधड़ी, विश्वासघात और जालसाजी का एक संगठित और गंभीर मामला है। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि एमजी वेल्स कंपनी के डायरेक्टर रविन्द्र सिंह बावा ने एक एजेंट के रूप में कार्य करते हुए क्रिस्टल माईन्ड की ओर से रकम ली थी, लेकिन उसे उसके उद्देश्य के लिए उपयोग नहीं किया और न ही लौटाया, जिससे धारा 420 (धोखाधड़ी), 418 (झूठे तथ्य से लाभ उठाना) और 409 (विश्वास का आपराधिक उल्लंघन) लागू होते हैं।
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ई.डी. मूर्ति के खिलाफ जालसाजी की धाराएं
कोर्ट ने ई.डी. मूर्ति के कृत्यों को गंभीर आर्थिक अपराध मानते हुए उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 467 (फर्जी दस्तावेज की रचना), 468 (धोखाधड़ी के लिए दस्तावेज बनाना), 469 (प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से जालसाजी), 472 और 475 (फर्जी सील और दस्तावेजों का निर्माण एवं उपयोग) लागू की हैं।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इनवायस, जो कंपनी की मुहर और नाम के साथ जारी किया गया था, एक मूल्यवान दस्तावेज है जिससे आर्थिक लाभ या भुगतान प्राप्त किया जा सकता था। ऐसे में यह न केवल आपराधिक, बल्कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार के दृष्टिकोण से एक अत्यंत गंभीर मामला है।
पुलिस जांच की जरूरत नहीं, कोर्ट करेगी सीधा ट्रायल
इस केस की सबसे विशेष बात यह रही कि अदालत ने पुलिस जांच की आवश्यकता नहीं समझी। इसका कारण यह है कि यह परिवाद 17 मई 2022 को दायर किया गया था, जब देश में भारतीय न्याय संहिता (BNS 2023) लागू नहीं हुई थी। ऐसे में यह मामला दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के पुराने प्रावधानों के तहत ही निपटाया जाएगा।
न्यायाधीश ने यह भी स्पष्ट किया कि भारतीय कानून में संज्ञान लेने के पहले आरोपी को सुनवाई का अवसर देने की कोई आवश्यकता नहीं होती। इसीलिए रविन्द्र बावा और ई.डी. मूर्ति को बिना सुनवाई के ही मुकदमे में शामिल किया गया।
दोनों आरोपी 30 जुलाई को कोर्ट में होंगे पेश
अदालत ने माना कि दोनों आरोपियों रविन्द्र बावा और ई. डी. मूर्ति की कंपनियों का रजिस्टर्ड ऑफिस जबलपुर में ही है और उनके फरार होने की कोई संभावना नहीं है। इसलिए न्यायालय ने पहले चरण में गिरफ्तारी वारंट जारी न करके समन (Summons) के माध्यम से उपस्थित होने का आदेश दिया है। अब यदि परिवादी मुराद फाहिम सात दिनों के भीतर समन की फीस और दस्तावेज जमा करेंगे और कोर्ट 30 जुलाई 2025 को सुनवाई की अगली तिथि पर दोनों आरोपियों को हाजिर रहने के लिए आदेशित करेगी।
ऐसे मामले अंतरराष्ट्रीय व्यापार में भारत की छवि को देते हैं झटका
यह पूरा मामला न केवल एक व्यक्तिगत या व्यावसायिक विवाद है, बल्कि भारत में अंतरराष्ट्रीय व्यापार करने वाले निवेशकों के विश्वास पर भी चोट करता है। जब कोई विदेशी कंपनी भारत के व्यापारिक माहौल पर भरोसा करके समझौता करती है और उसके साथ इस प्रकार की ठगी होती है, तो इससे देश की साख को नुकसान होता है। हालांकि, जबलपुर की अदालत द्वारा इस मामले को गंभीरता से लिया जाना, आरोपियों के खिलाफ ठोस धाराओं में संज्ञान लेना, और न्यायिक प्रक्रिया शुरू करना यह दिखा रहा है कि भारत का न्याय तंत्र ऐसे मामलों में निष्पक्ष और तत्पर है।
जिंदल ग्रुप | मध्यप्रदेश
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