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BHOPAL. मध्यप्रदेश की नौकरशाही इन दिनों किसी अदृश्य संकट से जूझ रही है। हालात ऐसे हैं कि दतिया जिले में 13 दिन से कलेक्टर नहीं है। प्रदेश के नौ जिलों में ADM यानी अपर कलेक्टर जैसे अहम पद खाली पड़े हैं। अफसरशाही की इस खस्ताहाली से सवाल उठने लगे हैं कि क्या मध्यप्रदेश में योग्य अफसरों की कमी हो गई है?
दतिया जिले में 31 मई को कलेक्टर संदीप कुमार माकिन रिटायर हो गए हैं, लेकिन अब तक वहां कोई स्थायी कलेक्टर नहीं बैठाया गया है। जिला पंचायत सीईओ अक्षय तेम्रवाल को प्रभारी कलेक्टर बनाया गया है, लेकिन उनके पास दोहरी जिम्मेदारी है। एक तरफ पंचायत के विकास कार्य और दूसरी ओर जिले की प्रशासनिक मशीनरी। नतीजा यह है कि दतिया में कामकाज गड़बड़ा गया है।
अभी और करना होगा इंतजार
दतिया का केस एक तरह से अपवाद है। अमूमन होता यह है कि किसी जिले के कलेक्टर के रिटायर होने पर तत्काल नए कलेक्टर की तैनाती की जाती है, लेकिन यहां मामला अटका है। यह एक तरह से नई परम्परा है।
नए कलेक्टर की तैनाती में देरी के पीछे सबसे बड़ा कारण आईएएस अधिकारियों के जम्बो तबादलों को माना जा रहा है। फिलहाल तबादलों को लेकर सीएम डॉ.मोहन यादव की बैठक नहीं हो पाई है। पहले मई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दौरा आ गया। फिर ईद के कारण बैठक नहीं हो पाई। अब पचमढ़ी में बीजेपी के ट्रेनिंग कैंप के बाद ही आईएएस अधिकारियों की तबादला सूची आएगी। इस तरह दतिया वासियों को नए कलेक्टर के लिए कम से कम 17 जून तक इंतजार करना होगा।
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कलेक्टरों पर आया पूरा बोझ
वहीं, हरदा, सीधी, सिंगरौली, श्योपुर, मऊगंज, डिंडौरी, देवास, छिंदवाड़ा और झाबुआ जैसे नौ जिले ऐसे हैं, जहां ADM का पद खाली है। ADM ही कलेक्टर के 90 फीसदी काम निपटाते हैं। SDM-तहसीलदार से लेकर कानून-व्यवस्था, जनसुनवाई, प्रशासनिक निर्णय, राजस्व मामलों के निपटारे जैसी तमाम गतिविधियों का नियंत्रण ADM के हाथ में होता है। अब जब ये जिम्मेदारी अधर में हैं। कलेक्टरों पर काम का बोझ और बढ़ गया है।
गौरतलब है कि जुलाई 2024 में सरकार ने बड़ी प्रशासनिक सर्जरी की थी, जिसमें 50 से अधिक ADM स्तर के अधिकारियों की मैदानी पोस्टिंग की गई थी। उसके बाद सितंबर में 20 और अफसरों को बदला गया था, तब से अब तक कोई सूची नहीं आई है।
शहडोल में जिला पंचायत सीईओ नहीं
शहडोल जिले का उदाहरण और भी गंभीर है। यहां जिला पंचायत सीईओ अंजलि रमेश ने मध्यप्रदेश कैडर छोड़कर महाराष्ट्र ज्वाइन कर लिया है। सरकार ने इस जिले में नया सीईओ नहीं भेजा है। जिला पंचायत का सीईओ वो पद है, जो ग्रामीण विकास की रीढ़ माना जाता है। जनपद और पंचायत स्तर के सभी कार्यक्रम इसी के जरिए चलते हैं। अब अधिकारी नहीं तो योजनाएं अटकी हैं। सचिव-जनप्रतिनिधि असहाय हैं और ग्रामीण विकास मानो ठहर सा गया है।
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जब अफसर नहीं होते, तो क्या-क्या रुक जाता है?
- राजस्व प्रकरण: दाखिल-खारिज, बंटवारा, सीमांकन के केस लटके रहते हैं।
- जनसुनवाई: शिकायतें दर्ज होती हैं, लेकिन समय पर समाधान नहीं मिलता।
- विकास योजनाएं: मॉनीटरिंग नहीं होने से कामों में भ्रष्टाचार और ठहराव।
- कलेक्टरों पर बोझ: सारे मामलों की फाइलें कलेक्टर के पास पहुंचती हैं।
मप्र नौकरशाही | आईएएस संदीप कुमार माकिन
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