JABALPUR. बिना कसूर 52 साल के कैब ड्राइवर को पुलिस उठा लाई। मारपीट की। 24 घंटे बाद यह कहकर छोड़ दिया कि अधिकारियों का आदेश था। कैब ड्राइवर ने अपना जुर्म जानने के लिए थाना प्रभारी, एसपी से लेकर सीएम तक गुहार लगाई। आखिरकार हाईकोर्ट ( High Court ) में याचिका लगा दी। अब कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार के गृह सचिव, एसपी, थाना प्रभारी और मामले से जुड़े तीनों सब इंस्पेक्टर को नोटिस देकर जवाब मांगा है। दरअसल ये पूरा मामला जबलपुर में 20 जून 2023 का है। 12वीं पास कैब ड्राइवर अजीत सिंह ( Ajit Singh ) ने 5 लाख का मुआवजा मांगा है। 9 मई को जस्टिस जीएस अहलूवालिया की कोर्ट में मामले की सुनवाई हुई। कोर्ट ने पूछा कि बिना वजह फरियादी को क्यों पकड़ा गया? इसका जिक्र रोजनामचे में क्यों नहीं है? अगली सुनवाई 1 जुलाई को होगी।
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पुलिस ने क्यों साध ली चुप्पी ?
अजीत सिंह ने बताया थाने में पदस्थ तत्कालीन एसआई कौशल किशोर समाधिया, ब्रजभान सिंह, गणेश तोमर और अन्य पुलिसकर्मी घर पहुंचे। कहा- दो मिनट के लिए बाहर चलो, कुछ काम है। फिर बिना वारंट दिखाए थाने लेकर आ गए। थोड़ी देर बाद परिवार वाले थाने पहुंचे। पूछा- किस जुर्म में थाने लाए हैं लेकिन कुछ नहीं बताया गया। वहां मौजूद तत्कालीन थाना प्रभारी अरविंद चौबे से भी मैंने अपना अपराध पूछा, लेकिन जवाब नहीं मिला। हर बार कोने में बैठा दिया गया। भाई के साथ गाली-गलौज भी की गई। मेरे साथ मारपीट की। टॉर्चर किया गया। रातभर थाने में रखा। अगले दिन 21 जून की सुबह 9 बजे बिना बताए छोड़ भी दिया। इस दौरान पुलिस ने न कोई लिखा-पढ़ी की और न ही मामला दर्ज किया। दूसरे दिन भी वजह पूछी लेकिन पुलिस अधिकारियों ने चुप्पी साध ली।
SP से लेकर सीएम तक शिकायत, नतीजा कुछ नहीं
अजीत कुमार ने दो दिन बाद गोरखपुर थाने में आवेदन देकर कार्रवाई की वजह पूछी। जवाब नहीं मिलने पर तत्कालीन तत्कालीन कलेक्टर सौरभ सुमन, आईजी उमेश जोगा और पुलिस अधीक्षक तुषार कांत विद्यार्थी से भी शिकायत की लेकिन कुछ नहीं हुआ। परेशान होकर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को पत्र लिखा। वहां से भी जवाब नहीं मिला। आखिरकार 29 अप्रैल 2024 को हाई कोर्ट में याचिका दायर कर दी। अजीत कुमार ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं। उनका कहना है, ‘घटना की वजह से मानसिक क्षति पहुंची है। प्रतिष्ठा भी खराब हुई है इसलिए 5 लाख रुपए का मुआवजा दिया जाए।
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अजीत सिंह खुद कर रहे अपनी पैरवी
अजीत सिंह ने कोर्ट में सुनवाई के लिए कोई वकील नहीं किया है। वे खुद ही अपने केस की पैरवी कर रहे हैं। अजीत कहते हैं, मेरी परेशानी मैं बेहतर तरीके से समझता हूं। मैं वकील को बताऊंगा, उसमें समय जाएगा। जब वे कोर्ट को बताएंगे तो उसमें फीलिंग्स नहीं आएगी। दूसरी तरफ मेरे पास इतने पैसे भी नहीं हैं, इसलिए वकील नहीं किया। अजीत ने बताया कि उनके खिलाफ आबकारी, मारपीट और अन्य केस दर्ज थे। सभी मामलों में खात्मा लग चुका है। बस एक केस हाई कोर्ट में विचाराधीन है।
बिना गुनाह पुलिस की कार्रवाई, क्या कहता है कानून ?
भारतीय कानून में, पुलिस को केवल उन्हीं मामलों में कार्रवाई करने का अधिकार है जहाँ कोई अपराध हुआ हो। बिना किसी अपराध के पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई अवैध मानी जाती है और इसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। यहां कुछ महत्वपूर्ण कानूनी प्रावधान दिए गए हैं जो बिना गुनाह पुलिस कार्रवाई पर प्रकाश डालते हैं। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 341 यह धारा गैरकानूनी तरीके से बंदी बनाना को अपराध घोषित करती है। यदि पुलिस किसी व्यक्ति को बिना किसी कानूनी आधार के हिरासत में लेती है, तो यह इस धारा के तहत अपराध होगा। दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 95 यह धारा पुलिस को किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने का अधिकार देती है यदि उन्हें विश्वास है कि वह व्यक्ति अपराध करने वाला है। हालांकि, यह महत्वपूर्ण है कि पुलिस के पास गिरफ्तारी का उचित आधार होना चाहिए। केवल संदेह के आधार पर गिरफ्तारी नहीं की जा सकती है। गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाना चाहिए। यदि पुलिस किसी व्यक्ति को गलत तरीके से गिरफ्तार करती है, तो वह मुआवजे का हकदार हो सकता है।
पुलिस कार्रवाई के खिलाफ कानूनी उपाय
यदि आपको पुलिस द्वारा बिना किसी अपराध के हिरासत में लिया गया है या आपके खिलाफ गलत कार्रवाई की गई है, तो आप निम्नलिखित कानूनी उपाय कर सकते हैं आप वरिष्ठ पुलिस अधिकारी से शिकायत कर सकते हैं। आप राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग या राज्य मानवाधिकार आयोग में शिकायत दर्ज कर सकते हैं। आप अदालत में याचिका दायर कर सकते हैं। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि आपके पास कानूनी अधिकार हैं और पुलिस द्वारा उनका उल्लंघन होने पर आप कानूनी कार्रवाई कर सकते हैं।