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मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर में गुरुवार की दोपहर उस समय हड़कंप मच गया जब रांझी एसडीएम आरएस मरावी के नेतृत्व में गरुड़ दल ने बिलहरी क्षेत्र स्थित 'सुलखिया हॉस्पिटल' पर अचानक छापा मारा। इस कार्रवाई में सामने आया कि अस्पताल न तो किसी अधिकृत स्वास्थ्य संस्था से पंजीकृत है, न ही वहां कार्यरत डॉक्टर को एलोपैथिक चिकित्सा की विधिवत अनुमति प्राप्त है। इस कार्रवाई से क्षेत्र के लोगों और मरीजों में गहरी चिंता व्याप्त हो गई, क्योंकि यह अस्पताल बीते कई महीनों से सक्रिय रूप से इलाज कर रहा था, और किसी को इसकी वैधता पर संदेह नहीं हुआ।
जबलपुर के सुलखिया हॉस्पिटल पर छापा
छापे के दौरान अस्पताल के अंदर का दृश्य चौंकाने वाला था। कुल 10 बेड वाले इस अस्पताल में नर्सिंग स्टाफ तैनात था, और कई मरीज उपचाराधीन पाए गए। स्वयं झोलाछाप डॉक्टर दिव्यांश सुलखिया इलाज करते हुए मिले, जिनसे जब पूछताछ की गई तो उन्होंने बताया कि उनके पास BAMS (बैचलर ऑफ आयुर्वेदिक मेडिसिन एंड सर्जरी) की डिग्री है। हालांकि, वे एलोपैथिक दवाइयां देकर मरीजों का इलाज कर रहे थे, जो कि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के नियमों और सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों के अनुसार पूरी तरह गैरकानूनी है। बिना एलोपैथिक पंजीकरण के इस प्रकार की चिकित्सा देना न केवल नियमों की अवहेलना है बल्कि मरीजों की जान से भी खिलवाड़ है।
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मरीजों से छिपाया गया डॉक्टर की योग्यता का सच
जब प्रशासनिक टीम ने हॉस्पिटल में भर्ती मरीजों से बातचीत की, तो उन्होंने बताया कि उन्हें कभी यह जानकारी नहीं दी गई कि डॉक्टर आयुर्वेद पद्धति के विशेषज्ञ हैं और उनके पास एलोपैथी का कानूनी अधिकार नहीं है। मरीजों का कहना था कि वे वर्षों से यहां इलाज करवा रहे हैं और विश्वासपूर्वक डॉक्टर पर निर्भर थे। एक मरीज ने बताया कि अस्पताल में हर दिन लगभग 20 से 25 मरीज इलाज के लिए आते हैं, और कई गंभीर मरीजों को वहां भर्ती भी किया जाता है। यह तथ्य इस बात को उजागर करता है कि किस तरह बिना किसी पारदर्शिता के, मरीजों को धोखे में रखकर इलाज किया जा रहा था।
हॉस्पिटल सील, दवाइयां जब्त, आपराधिक मामला दर्ज
जांच के दौरान गरुड़ दल को अस्पताल के अंदर डॉक्टर का केबिन, दवाइयों से भरी अलमारियां, सर्जिकल उपकरण और एक्टिव स्टाफ मिला। एलोपैथिक दवाइयों के बड़े-बड़े पैकेट जब्त किए गए, जिन्हें अस्पताल में बिना पंजीकरण और लाइसेंस के रखा गया था। जब डॉक्टर से कानूनी दस्तावेज मांगे गए तो वे कोई वैध अनुमति पत्र या स्वास्थ्य विभाग से रजिस्ट्रेशन प्रस्तुत नहीं कर सके। प्रशासन ने तुरंत प्रभाव से अस्पताल को सील कर दिया और डॉक्टर दिव्यांश सुलखिया के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता और चिकित्सा अधिनियम की धाराओं में गोरा बाजार थाने में आपराधिक प्रकरण दर्ज करने की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी।
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स्वास्थ्य सेवाओं की निगरानी पर सवाल, जान से खिलवाड़ की खुली छूट
यह मामला न केवल चिकित्सा नियमों की अनदेखी का प्रतीक है बल्कि हमारे स्वास्थ्य तंत्र की निगरानी प्रणाली पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है। बिना रजिस्ट्रेशन और आवश्यक अनुमति के वर्षों से चल रहे इस अस्पताल पर समय रहते कार्रवाई न होना, संबंधित विभागों की निष्क्रियता की ओर संकेत करता है। साथ ही यह भी चिंता का विषय है कि क्या ऐसे और भी अस्पताल शहर या प्रदेश के अन्य हिस्सों में बिना मान्यता के चल रहे हैं? जरूरत इस बात की है कि जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग संयुक्त रूप से ऐसी संस्थाओं की पहचान कर कठोर कार्रवाई करें, ताकि आमजन की जान के साथ ऐसा खिलवाड़ भविष्य में न हो सके।
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5 मुख्य बिंदुओं से समझें पूरा मामला
✅ जबलपुर के 'सुलखिया हॉस्पिटल' पर छापा मारा गया और पाया गया कि यह न तो पंजीकृत था और न ही डॉक्टर के पास एलोपैथी दवाइयों का लाइसेंस था।
✅ डॉक्टर दिव्यांश सुलखिया के पास बीएएमएस डिग्री थी, लेकिन वह अवैध रूप से एलोपैथिक दवाइयां दे रहे थे।
✅ मरीजों से छिपाकर इलाज किया जा रहा था, और उन्हें डॉक्टर की असली योग्यता के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई थी।
✅ प्रशासन ने अस्पताल को सील कर दिया और डॉक्टर के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया।
✅ यह मामला स्वास्थ्य तंत्र की निगरानी पर गंभीर सवाल खड़े करता है और भविष्य में ऐसी संस्थाओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की आवश्यकता को उजागर करता है।
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