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जीतू यादव (काले कोट में) और सीपी संतोष सिंह (पुलिस वर्दी में)
दबंग आईपीएस संतोष सिंह की पुलिस वह सारे काम कर रही है जो बड़े गुंडों, हाई प्रोफाइल राजनीतिक आरोपियों को बचाने के लिए किया जा सकता है। पूर्व एमआईसी मेंबर जीतू यादव उर्फ जाटव उर्फ देवतार के केस में खुलकर यह बात सामने आ गई है। सबसे बड़ा खेल किया जा रहा है वॉइस सैंपलिंग की नौटंकी के रूप में। इसकी क्या जरूरत थी, जब ऑडियो और वीडियो चीख-चीखकर इस बात को साबित कर रहे हैं।
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ऐसे संतोष सिंह की पुलिसिंग का दोहरा रवैया
- इसी केस में बीजेपी पार्षद कमलेश कालरा पर निगम के अधिकारी यतींद्र यादव ने फोन पर धमकाने का आरोप लगाया था। यादव द्वारा पेश की गई ऑडियो के आधार पर कालरा पर नामजद उसी दिन जूनी थाना में केस हो गया। यहां पर वॉइस सैंपलिंग क्यों नहीं हुई।
- करीब एक माह पहले बीजेपी के ही पार्षद लाल बहादुर वर्मा ने भी जेसीबी, डंपर के लिए निगम के अधिकारी को फोन पर धमकाया और गालियां दीं। इस ऑडियो के आधार पर थाना तुकोगंज में वर्मा पर केस दर्ज हो गया। इसमें वॉइस सैंपलिंग क्यों नहीं ली गईं, सीधे केस कैसे हुआ।
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जीतू पर किस तरह से मेहरबान पुलिस
- घटना के बाद ही 4 जनवरी को 40 अज्ञात पर केस हुआ लेकिन पॉक्सो नहीं लगाया गया।
- विवाद बढ़ा तो पॉक्सो धारा लगी, पुलिस पर दबाव बढ़ा और ऊपर वालों से हरी झंडी मिली तो फिर वीडियो फुटेज देख आरोपियों को पहचाना गया और पांचवें दिन जाकर गिरफ्तारी शुरू हुई। अभी तक 40 में से 30 को चिन्हित करने और 21 की गिरफ्तारी हुई।
- जीतू को नोटिस पर नोटिस दिए गए वॉइस सैंपलिंग के लिए, वह अंतिम नोटिस में सब जगह घूम-घामकर 24 जनवरी की रात को एसीपी के पास पहुंचा, तीन घंटे तक सैंपलिंग लिए। जब वह संदिग्ध है और सभी बयानों में और हाईकोर्ट में पेश रिपोर्ट में भी उस पर सवाल उठे हैं तो आरोपी बनाकर गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया।
- जीतू का मोबाइल जब्त क्यों नहीं किया गया और उसकी फॉरेंसिक जांच क्यों नहीं की गई।
- जीतू को बचाया जा सके इसके लिए पहले तो आरोपियों की पुलिस रिमांड तक नहीं ली गई, केवल तीन-चार आरोपियों की ही रिमांड ली गई, इसमें भी उसके चचेरे भाई अभिलाष यादव का नाम आ गया तो उसे आरोपी बनाया। फिर अभिलाष की मात्र एक दिन की रिमांड लेकर उसे जेल भेज दिया गया।
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छोटों पर जुलूस, इधर एक भी आरोपी का जुलूस नहीं
वहीं संतोष सिंह की पुलिस ने एक और दोहरा रवैया अपनाया, छोटे अपराधियों का ढोल नगाड़ों के साथ जमकर जुलूस निकालने वाले, हाथ-पैर तोड़ने वाली पुलिस ने इस घटना में पकड़े गए एक भी आरोपी का जुलूस निकालने की जहमत नहीं उठाई। इस घटना के दौरान ही दो मामलों में पुलिस ने ढोल-नगाड़ों के साथ असामाजिक तत्वों का जुलूस निकाला। कालरा के घर कांड करने में अभी तक मुख्य आरोपी जीतू के चचेरे भाई अभिलाष का जुलूस नहीं निकला और उसे जेल भेज दिया गया। इसी तरह की हरकत पुलिस ने ताई सुमित्रा महाजन के बेटे के शोरूम पर हमला और पोते को मारने वालों के साथ की थी। उन आरोपियों पर पुलिस ने पहले मामूली धाराएं लगाई, विवाद बढ़ने पर धारा बढ़ाई और गिरफ्तारी की, लेकिन कोर्ट में जमानत पर आपत्ति ही नहीं ली और एक दिन में रिहा हो गए। वहीं आरोपियों को उनके क्षेत्र में पुलिस जुलूस के लिए ले गई, लेकिन ठीक 42 कदम बाद ही करोसिया परिवार और समर्थकों के दबाव के बाद उन्हें उलटे पैर जीप में बैठाकर वापस ले गई।
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अभिलाष का था कालरा को पीटकर वीडियो बनाने का प्लान
उधर कानूनविदों से सब कुछ सीखकर पुलिस के सामने शनिवार को आए जीतू के चचेरे भाई और अभी तक पुलिस द्वारा बताए जा रहे मुख्य आरोपी से पुलिस कुछ नहीं निकाल पाई। एक दिन की रिमांड में अभिलाष ने पुलिस को बताया कि जीतू के साथ कालरा ने विवाद किया, इसलिए उसे पीटकर वीडियो बनाने की मंशा थी। वीडियो बनाने और पीटने के लिए दोस्तों के साथ वहां गए थे, लेकिन कालरा नहीं था इसलिए परिजनों को सताया था, ताकि सबक मिल सके। वहीं पूरा कांड अभिलाष ने खुद पर लिया और जीतू की इसमें भूमिका के सवाल पर चुप्पी साध ली। उधर अभिलाष इतना शातिर था की उसने अपना मोबाइल भी फार्मेट करा लिया था ताकि इस मोबाइल से पुलिस को उसके और जीतू के बीच की कोई लिंक नहीं मिले। फरार होने के दौरान अभिलाष भोपाल, सीहोर जैसी जगहों पर अपने रिश्तेदारों के यहां रहा।
उधर जीतू लगा गया महाकुंभ में डुबकी
वहीं जब जीतू ने वॉइस सैंपल दिए उसी दौरान ऐसा बताया जा रहा है कि जीतू घटना के बाद भोपाल गया था और फिर वह प्रयागराज महाकुंभ भी गया। वहां पता चला कि पुलिस ने उसे नोटिस दिया है तो वह वहां से लौटकर इंदौर पुलिस के सामने आ गया।
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