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Photograph: (the sootr)
5 पाइंट में समझिए पूरी खबर
- कोरोना काल में धरना देने के आरोप में जीतू पटवारी, संजय शुक्ला, विशाल पटेल और विनय बाकलीवाल को एमपी-एमएलए कोर्ट ने बरी किया।
- आरोप था कि 13 जून 2020 को बिना मंजूरी के इंदौर के राजवाड़ा पर धरना प्रदर्शन किया था।
- पुलिस ने धारा 188 और 34 के तहत केस दर्ज किया, लेकिन गवाहों के बयान अस्पष्ट थे।
- कोर्ट में पुलिस द्वारा की गई चूकों और गलत तारीखों के कारण सभी आरोपियों को दोषमुक्त किया गया।
- शुक्ला और पटेल अब बीजेपी में शामिल हो चुके हैं, जबकि पटवारी और बाकलीवाल कांग्रेस में सक्रिय हैं।
Indore. कोरोना काल में धरना, प्रदर्शन के चलते प्रतिबंधात्मक धाराओं के उल्लंघन केस में तत्कालीन कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी, संजय शुक्ला, विशाल पटेल और तत्कालीन शहर अध्यक्ष कांग्रेस विनय बाकलीवाल बरी हो गए हैं। स्पेशल एमपी-एमएलए कोर्ट द्वारा यह आदेश जारी किया गया।
वर्तमान में शुक्ला और पटेल विधानसभा चुनाव हार के बाद बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। वहीं पटवारी भी चुनाव हार कर अब पूर्व विधायक व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद पर है। बाकलीवाल भी शहराध्यक्ष पद से हटकर प्रदेश कमेटी में शामिल है। कोर्ट में सभी चारों सोमवार दोपहर में मौजूद रहे।
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यह था मामला
इन पर आरोप था का कोरोना काल में 13 जून 2020 में इन्होंने मां अहिल्या की प्रतिमा राजवाड़ा पर बैठकर बिना मंजूरी के धरना/प्रदर्शन किया। इसी मामले में सराफा थाने पर तत्कालीन टीआई अमृता सोलंकी द्वारा धारा 188 व 34 के तहत केस दर्ज किया गया।
फरियादी भी पुलिस, गवाह में भी पुलिस
आरोपियों की ओर से अधिवक्ता सौरभ मिश्रा व जय हार्डिया ने केस में पैरवी की। इस दौरान इसमें बताया गया कि खुद पुलिस ही इसमें फरियादी बनी और केस भी पुलिस ने दर्ज किया। गवाह भी थाने के ही अधिकांश कर्मचारी थे।
साथ ही जांच भी खुद फरियादी टीआई अमृता सोलंकी द्वारा की गई। इसमें कोई भी स्वतंत्र गवाह नहीं था। वहीं जब गवाहों के क्रास बयान हुए तो कोई भी धरना व प्रदर्शन किन मांगों को लेकर था यह बता नहीं सका। ना ही यह बता सके कि धरना व प्रदर्शन में क्या अंतर है।
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एक परिवाद तो 31 फरवरी के नाम पर
वहीं आश्चर्यजनक रूप से पुलिस ने एक और चूक की। प्रतिबंधात्मक धारा संबंधी केस में कलेक्टर की मंजूरी के परिवाद भी लगते हैं। इस केस में दो परिवाद लगाए गए और एक परिवाद में तारीख 31 फरवरी 2021 बताई गई, जबकि फरवरी 28 या 29 फरवरी की ही होती है। वहीं दोनों ही परिवाद और एफआईआर का ब्यौरा भी अलग-अलग है। इन सभी आधारों पर स्पेशल कोर्ट एमपी, एमएलए के न्यायाधीश देव कुमार द्वारा आरोपीगण को दोषमुक्त किया गया।
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