मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस अतुल श्रीधरन को मध्य प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण का एग्जीक्यूटिव चेयरमैन नियुक्त किया गया है। यह नियुक्ति विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 6(2)(बी) के तहत की गई है, जो कि राज्यपाल को यह शक्ति देती है कि वह चीफ जस्टिस के परामर्श से यह पदभार सौंप सके।
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सामाजिक न्याय की जिम्मेदारी निभाता है प्राधिकरण
राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण एक संवैधानिक संस्था है, जो आर्थिक रूप से कमजोर और वंचित वर्गों को निःशुल्क कानूनी सहायता उपलब्ध कराती है। इस प्राधिकरण के एग्जीक्यूटिव चेयरमैन के रूप में जस्टिस श्रीधरन की नियुक्ति के बाद अब इस संस्था को एक अनुभवी जस्टिस के नेतृत्व में और अधिक असरदार ढंग से संचालित किया जाएगा।
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साल 2016 से न्यायिक सेवा में है जस्टिस श्रीधरन
जस्टिस अतुल श्रीधरन ने 7 अप्रैल 2016 को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में जज के रूप में पदभार ग्रहण किया था। अपनी कानूनी सूझबूझ और पारदर्शिता के लिए पहचाने जाने वाले श्रीधरन ने कई अहम फैसलों को पारित किया है। उन्होंने कानून और संवैधानिक मूल्यों के संतुलन के साथ न्यायिक प्रक्रिया को आमजन तक पहुंचाने में योगदान दिया है।
हितों के टकराव से बचने के लिए खुद मांगा था ट्रांसफर
जस्टिस श्रीधरन का न्यायिक दृष्टिकोण उनकी व्यक्तिगत ईमानदारी में भी झलकता है। वर्ष 2023 में उन्होंने स्वेच्छा से ट्रांसफर का अनुरोध किया था, क्योंकि उनकी बड़ी बेटी अधिवक्ता के रूप में अपने करियर की शुरुआत उसी क्षेत्र में कर रही थीं, जहां वे खुद न्यायाधीश थे। यह कदम उन्होंने हितों के संभावित टकराव से बचने और कोर्ट की निष्पक्षता बनाए रखने के लिए उठाया था। इसके बाद 28 मार्च 2023 को उनकी जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट में ट्रांसफर की सिफारिश की गई थी।
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सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने की थी पुनर्नियुक्ति की सिफारिश
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 6 मार्च 2025 की बैठक में उन्हें उनके मूल मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में पुनः नियुक्त करने की सिफारिश की। इसके बाद जस्टिस श्रीधरन ने जबलपुर में फिर से पदभार ग्रहण किया और अब उन्हें राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण की बागडोर सौंपी गई है।
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कानूनी मामलों में आर्थिक रूप से कमजोर लोगों की मदद करता है प्राधिकरण
जस्टिस श्रीधरन की नियुक्ति को उन लाखों लोगों के लिए भी नई उम्मीद है, जो इंसाफ की राह में संसाधनों के अभाव से संघर्ष कर रहे हैं। जो लोग आर्थिक रूप से इतना सक्षम नहीं होते कि वकीलों की फीस का भुगतान कर सकें, उन्हें इस प्राधिकरण की ओर से कानूनी सहायता दिलाई जाती है। अब जस्टिस श्रीधरन के नेतृत्व में प्राधिकरण से यह अपेक्षा की जा रही है कि विधिक सहायता का दायरा और अधिक व्यापक होगा और ग्रामीण व शहरी गरीबों तक इसका लाभ आसानी से पहुंचेगा।
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