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कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार ने सरकारी ठेकों में मुस्लिम ठेकेदारों के लिए 4% आरक्षण देने का ऐतिहासिक फैसला लिया है। इस फैसले के बाद कर्नाटक की राजनीति में हलचल मच गई है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने 7 मार्च को इस फैसले का एलान किया था और इस पर कैबिनेट की बैठक में भी चर्चा की गई थी। इस फैसले का मुख्य उद्देश्य सरकारी ठेकों में मुस्लिम समुदाय को अधिक अवसर देना है, जिससे वे अलग-अलग विभागों और निगमों के लिए वस्तु और सेवाओं की खरीद में भाग ले सकें।
मुस्लिम समुदाय को 4% आरक्षण
बता दें कि इस आरक्षण का लाभ श्रेणी-II बी के तहत मिलेगा, जिसमें मुस्लिम समुदाय को 4% आरक्षण मिलेगा। इसके पहले, अन्य समुदायों जैसे एससी, एसटी और ओबीसी को सरकारी ठेके में आरक्षण मिल रहा था। अब इस व्यवस्था में मुस्लिम समुदाय को भी स्थान दिया गया है। यह कदम कर्नाटक सरकार की सामाजिक न्याय की दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है।
डॉ. मोहन यादव की प्रतिक्रिया
कर्नाटक सरकार के इस फैसले पर भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) के नेताओं का विरोध भी सामने आया है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म 'X' (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा कि यह फैसला लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है। उनका कहना था कि धर्म आधारित आरक्षण से समाज में भेदभाव की भावना पैदा होगी, और यह कदम अनैतिक है। डॉ. यादव ने यह भी आरोप लगाया कि कांग्रेस पार्टी ने हमेशा समाज में विभाजन फैलाने का काम किया है।
कर्नाटक में कांग्रेस सरकार द्वारा शासकीय कार्यों में ठेकेदारों को धर्म आधारित आरक्षण की व्यवस्था का प्रावधान करना अनुचित एवं निंदनीय है। लोकतांत्रिक देश में इस तरह किसी धर्म विशेष को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से नियम-प्रावधान कैबिनेट से पास कर लागू करना, यही कांग्रेस का अनैतिक…
— Dr Mohan Yadav (@DrMohanYadav51) March 16, 2025
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क्या है इतिहास?
कर्नाटक में मुस्लिमों को आरक्षण देने की यह कोई नई बात नहीं है। इससे पहले, 1994 में वीरप्पा मोइली के नेतृत्व में कर्नाटक सरकार ने मुस्लिम समुदाय के लिए आरक्षण की सिफारिश की थी। सुप्रीम कोर्ट ने इसे मान्यता दी थी, लेकिन इसके बाद इस मुद्दे पर कई बार कानूनी विवाद भी हुआ था। 2023 में कर्नाटक भाजपा सरकार ने मुस्लिमों का 4% आरक्षण समाप्त कर दिया था, जिसे कर्नाटक उच्च न्यायालय ने रोक दिया था। अब सिद्धारमैया सरकार ने फिर से इस आरक्षण को लागू करने का फैसला लिया है।
राजनीति और न्यायिक परिप्रेक्ष्य
कर्नाटक के इस फैसले पर राजनीतिक दृष्टिकोण से बहस तेज हो गई है। कुछ राजनीतिक दल इसे मुस्लिम समुदाय के उत्थान के लिए एक अच्छा कदम मानते हैं, जबकि विपक्ष इसे केवल चुनावी लाभ के लिए उठाया गया एक कदम मानता है। वहीं, न्यायिक दृष्टिकोण से यह फैसला न्यायालयों द्वारा कई बार खारिज किए गए फैसलों से प्रभावित हो सकता है। इससे पहले भी न्यायालयों ने धर्म आधारित आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया था, और अब भी यह फैसला न्यायालय में चुनौती का सामना कर सकता है।
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