विज्ञान के नाम पर लाखों का खेला, मैपकास्ट में 5 लाख के बजट पर करवा दिए 27 लाख के इवेंट

संस्थान में भ्रष्टाचार इतना की पीएम नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट तक को नहीं बख्शा जा रहा। संस्थान के महानिदेशक डॉ अनिल कोठारी के खिलाफ ही लाखों रुपए का गोलमाल करने की शिकायत लोकायुक्त पुलिस से की गई है।

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Amresh Kushwaha
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खास बातें-  

  • पीएम के ड्रीम प्रोजेक्ट में गड़बड़ी कर लाखों का दिखाया काम

  • संस्थान के महानिदेशक डॉ कोठारी की लोकायुक्त मे पहुंची कई शिकायतें

  • मुख्य वैज्ञानिक को दबाव देकर बेक डेट मे कराए अनुमोदन

मध्य प्रदेश के वैज्ञानिक संस्थान मप्र विज्ञान एवं प्रद्योगिकी परिषद (मेपकास्ट) में रिसर्च की जगह भ्रष्टाचार की राजनीति ज्यादा हो रही है। हालात ये हैं कि पीएम नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट तक को नहीं बख्शा जा रहा। संस्थान के महानिदेशक डॉ अनिल कोठारी के खिलाफ ही लाखों रुपए का गोलमाल करने की शिकायत लोकायुक्त पुलिस से की गई है। बता दें कि यह विभाग सीधे मुख्यमंत्री के अंडर में आता है। आज दोपहर बाद मुख्यमंत्री मोहन यादव विभाग के कामकाज की समीक्षा भी करने जा रहे हैं।

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कैसे हुआ खेल?

मामला प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट "विज्ञान सर्वत्र पूज्यंते" में भ्रष्टाचार से जुड़ा हुआ है। संस्थान में कार्यरत वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक डा. नरेंद्र शिवहरे के अनुसार महानिदेशक अनिल कोठारी ने योजनाबद्ध तरीके से शासन के पैसों में जमकर पलीता लगाया है। अधिकारियों ने गड़बड़ी की आशंका पर पड़ताल की तो पता चला कि टेंडर प्रक्रिया से लेकर आयोजन तक हर चरण में गड़बड़ी की गई है। इसके बाद अधिकारियों ने 27 लाख रुपए के बिल में 16 लाख रुपए की कटौती कर दी, फिर भी फर्म को 11 लाख रुपए भुगतान कर दिया गया।

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ऐसे समझें पूरे मामले को

'विज्ञान सर्वत्र पूज्यंते' के तहत प्रदेश के कई शहरों में कार्यक्रम आयोजित किए जाना थे। इसके तहत भोपाल, ग्वालियर और जबलपुर में 22 से 28 फरवरी 2022 के बीच आयोजन हुए। इसमें वैज्ञानिकों के व्याख्यान, रेडियो शो, वैज्ञानिक फिल्म का प्रदर्शन, और वैज्ञानिक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। इन आयोजनों के लिए टैंडर निकाले गए। और यहीं खेल कर दिया गया। जैसे कि निविदा शर्तों में उल्लेख है कि चार निविदाकार एजेंसियों ने निवदाएं प्रस्तुत कीं, मगर नस्ती में निविदा में कहीं भी उल्लेख नहीं है कि निविदा किस समाचार पत्र में प्रकाशित हुई? यह भी संदेह है कि निविदा प्रकाशन के लिए नोटशीट जारी हुई ही नहीं। इसके अलावा कार्यादेश और भुगतान किसी और कंपनी को किया गया, जबकि काम किसी और ने ही किया। वहीं बाजार से दो से पांच गुना तक महंगी दरों पर काम कराया गया।

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डॉ शिवहरे ने लोकायुक्त पुलिस को जो शिकायत की है उसके अनुसार पुरानी तारीख पर निविदा के कागजात तैयार कराए गए। निविदा के बाद क्या खरीदी हुई, उसका भंडार सत्यापन भी नहीं कराया गया। तीसरी गड़बड़ी यह की कि पांच लाख रुपए तक की सीमित निविदा थी, लेकिन इसमें 27 लाख का काम दिखाया गया।

 

डॉ शिवहरे ने कार्रवाई के लिए हाई कोर्ट में भी याचिका दायर की है।उन्होंने आरोप लगाया है कि पूरी गड़बड़ी संस्थान के महानिदेशक (डीजी) डा. अनिल कोठारी के इशारे पर की गई है। वहीं संस्थान विज्ञानी डा. राकेश आर्या ने डा. शिवहरे की याचिका पर दिए गए शपथ पत्र में कहा है कि डीजी ने दबाव बनाकर तारीख पर निविदा में हस्ताक्षर कराए थे। 

मेपकास्ट के डीजी लगातार भ्रष्टाचार कर रहे हैं। मुख्यमंत्री तत्काल ऐसे लापरवाह को हटाए व एफआईआर दर्ज करवाए अन्यथा संगठन व सामजिक कार्यकर्ताओं द्वारा जल्द धरना दिया जाएगा।

गजेंद्र सिंह ,समाजसेवी

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दबाव डालकर कराए गए हस्ताक्षर

मुख्य विज्ञानी एवं कार्यक्रम के प्रदेश संयोजक डॉ. राकेश आर्या ने कहा कि डीजी अनिल कोठारी ने 19 फरवरी को दबाव डालकर मुझसे 14 फरवरी की तारीख में हस्ताक्षर कराए। उन्होंने कहा कि काम में जल्दी है इसलिए पिछली तारीख में हस्ताक्षर करना होगा। मैंने उसी दिन बोल दिया था कि कार्यक्रम होना है, इसलिए मजबूरी में हस्ताक्षर कर रहा हूं। मैंने वही किया जो सही था, जिससे भुगतान में साढ़े 16 लाख की कटौती हो गई।

आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला जारी

एमपीसीएसटी महानिदेशक डॉ. अनिल कोठारी ने कहा कि डा. शिवहरे के विरुद्ध विभागीय जांच चल रही है। सारा प्रकरण कोर्ट के अधीन है। जहां तक आरोप लगाने की बात है, हम उनको नोटिस दें और वह आरोप लगाने लगे तो क्या होता है। नोटिस के पहले करते तो एक बार समझ में भी आता है। डॉ. राकेश आर्या ने जो कहा है, उसकी जांच भी कोर्ट में हो जाएगी। मामला न्यायालय में विचाराधीन है, इसलिए अब मैं इस मामले में क्या बोलूं।

आरोप के बाद साक्ष्य मांगे, नहीं मिलें - नरेंद्र शिवहरे

वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक डॉ. नरेंद्र शिवहरे ने कहा, परिषद महानिदेशक डा. अनिल कोठारी ने बगैर निविदा के अपनी चहेती एजेंसी से 27 लाख के फर्जी बिल बुलवाकर इन्हें सत्यापित करने का दबाव बनाया गया। लेकिन मेरे द्वारा नियमानुसार बिल भुगतान की अनुशंसा की गई, जिससे 16 लाख की कटौती हो गई। इस कटौती के कारण कोठारी जी ने वित्तीय अनियमितता का झूठा प्रकरण बनकर निलंबित करवाया। मुझ पर लगाए गए आरोपों से संबंधित साक्ष्य मैने मांगे, जो नहीं दिए जा रहे है, इसकी अपील शासन से की गई है।

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