नर्सिंग की तरह पैरामेडिकल कॉलेजों में भ्रष्टाचार का बोलबाला, सैकड़ों छात्रों का भविष्य दांव पर

मध्य प्रदेश में नर्सिंग कॉलेजों की तरह अब पैरामेडिकल कॉलेजों में भी घोटाले सामने आए हैं। जबलपुर हाईकोर्ट में लॉ स्टूडेंट एसोसिएशन ने जनहित याचिका दायर की है।

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Neel Tiwari
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हाईकोर्ट में लॉ स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने जनहित याचिका दायर की है। इसके जरिए पैरामेडिकल कॉलेजों की मान्यता में फर्जीवाड़े के खुलासे हो रहे हैं। हाईकोर्ट के आदेश के बाद यह याचिका दायर की गई है। 'द सूत्र' आपको इस याचिका की पूरी जानकारी सबसे पहले दे रहा है।

मध्य प्रदेश में नर्सिंग कॉलेजों की तरह अब पैरामेडिकल कॉलेजों में भी घोटाले सामने आए हैं। जबलपुर हाईकोर्ट में लॉ स्टूडेंट एसोसिएशन ने जनहित याचिका दायर की है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि नर्सिंग शिक्षा की तरह पैरामेडिकल शिक्षा में भी अनियमितता, भ्रष्टाचार और फर्जी मान्यताएं चल रही हैं।

यह याचिका पहले से लंबित पीआईएल (डब्ल्यूपी/1080/2022) के साथ सुनी जाएगी। इसमें पैरामेडिकल कॉलेजों में हो रही धांधली को रिकॉर्ड में लाने की अनुमति मांगी गई है। कोर्ट ने इस मामले में अलग से पीआईएल दायर करने का निर्देश दिया है।

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एक ही बिल्डिंग से दो कॉलेज

याचिका में मध्य प्रदेश के कई पैरामेडिकल कॉलेजों पर सवाल उठाए गए हैं। ग्वालियर स्थित "रतन ज्योति नर्सिंग कॉलेज" और "रतन ज्योति पैरामेडिकल इंस्टीट्यूट" का मामला विशेष रूप से सामने आया है। आरोप है कि दोनों संस्थान एक ही भवन और पते से संचालित हो रहे हैं। इन संस्थानों को बुनियादी ढांचे की भारी कमी के बावजूद मान्यता दी गई है।

2022 में एमपी नर्सिंग काउंसिल (एमपीएनआरसी) ने इस संस्थान को "पूर्ण रूप से उपयुक्त" बताया था। लेकिन 2024 में हाईकोर्ट के निर्देश पर सीबीआई के निरीक्षण में संस्थान में जरूरी संसाधनों, स्टाफ और इन्फ्रास्ट्रक्चर की भारी कमी पाई गई। सीबीआई ने इसे अनसूटेबल करार दिया। इसके बावजूद इन संस्थानों को मान्यता दी गई और हर साल 50 और 125 छात्रों को प्रवेश की अनुमति दी गई।

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सत्र खत्म होने के बाद मिली मान्यता 

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि मध्य प्रदेश पैरामेडिकल काउंसिल (MPPMC) ने सत्र 2023-24 के लिए पूर्वव्यापी मान्यता दी। यह मान्यता जनवरी-फरवरी 2025 में दी गई, जबकि सत्र समाप्त हो चुका था। याचिका में आरोप है कि यह प्रक्रिया नियमों के खिलाफ है और छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ है।

एमपी मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी (MPMSU) के एक्ट के अनुसार, संस्थान को संबद्धता प्राप्त करना अनिवार्य है। इसके बावजूद सरकारी और निजी संस्थानों ने बिना संबद्धता के प्रवेश दिया। जिन कॉलेजों को 2025 में मान्यता मिली, उनमें रतन ज्योति पैरामेडिकल इंस्टीट्यूट ग्वालियर, तिरुपति बालाजी पैरामेडिकल कॉलेज उमरिया, साईंनाथ पैरामेडिकल कॉलेज उमरिया, गुरु गोविंद सिंह कॉलेज बुरहानपुर, मीरा देवी पैरामेडिकल इंस्टीट्यूट, भाग्योदय तीर्थ इंस्टीट्यूट ऑफ पैरामेडिकल साइंसेज सागर शामिल हैं।

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सरकारी कॉलेजों ने भी किया गोलमाल

याचिकाकर्ता ने यह भी बताया कि केवल निजी संस्थान ही नहीं, बल्कि सरकारी पैरामेडिकल संस्थान भी इस फर्जीवाड़े में शामिल हैं। बिना यूनिवर्सिटी से संबद्धता लिए सरकारी संस्थानों ने भी विज्ञापन जारी कर छात्रों को दाखिला दे दिया। इसका मतलब है कि इस गड़बड़ी में केवल निजी कॉलेज नहीं, बल्कि सरकारी तंत्र भी पूरी तरह से संलिप्त है। जिसका सीधा असर उन छात्रों को भविष्य पर पड़ने वाला है जिन्हें एडमिशन दिया गया।

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5 प्वाइंट्स में समझे पूरी स्टोरी

पैरामेडिकल कॉलेजों में धांधली: मध्य प्रदेश में पैरामेडिकल कॉलेजों की मान्यता और प्रवेश प्रक्रियाओं में बड़े घोटाले का खुलासा हुआ है। एक जनहित याचिका में आरोप लगाया गया है कि नर्सिंग शिक्षा में अनियमितताओं की तरह पैरामेडिकल कॉलेजों में भी फर्जीवाड़ा हो रहा है।

रतन ज्योति कॉलेज का मामला: ग्वालियर स्थित "रतन ज्योति नर्सिंग कॉलेज" और "रतन ज्योति पैरामेडिकल इंस्टीट्यूट" एक ही भवन से चल रहे हैं। इन कॉलेजों में जरूरी संसाधन और इंफ्रास्ट्रक्चर की भारी कमी है। सीबीआई ने जांच में इन्हें "अनसूटेबल" पाया, फिर भी इन्हें मान्यता दी गई और छात्रों को प्रवेश दिया गया।

पूर्वव्यापी मान्यता: 2023-24 सत्र के लिए 2025 में, यानी सत्र खत्म होने के बाद, कॉलेजों को पूर्वव्यापी मान्यता दे दी गई। यह पूरी प्रक्रिया नियमों के खिलाफ है और छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है।

सरकारी कॉलेजों में भी गड़बड़ी: सिर्फ निजी कॉलेज नहीं, बल्कि सरकारी पैरामेडिकल कॉलेजों ने भी बिना विश्वविद्यालय से संबद्धता के छात्रों को प्रवेश दे दिया। यह एक गंभीर नियम उल्लंघन है।

कोर्ट से कार्रवाई की मांग: याचिकाकर्ता ने कोर्ट से मांग की है कि इन अवैध गतिविधियों की जांच की जाए। सरकार को रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया जाए और बिना संबद्धता के प्रवेश पर रोक लगाई जाए। इस मामले की सुनवाई 16 जुलाई को होगी।

 

कोर्ट के पुराने आदेशों की भी उड़ाई धज्जियां

हाईकोर्ट ने नर्मदा इंस्टीट्यूट बनाम एमपीएमएसयू मामले में यह स्पष्ट किया है। पूर्व संबद्धता के बिना छात्र का प्रवेश वैध नहीं हो सकता। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि सत्र समाप्त होने के बाद दी गई मान्यता शून्य मानी जाती है।

इसके बावजूद पैरामेडिकल काउंसिल और यूनिवर्सिटी ने 2023-24 सत्र के लिए 2025 में मान्यता दी। इसके बाद 2024-25 के लिए नई मान्यता प्रक्रिया शुरू की गई। जबकि पिछली गड़बड़ियों को अभी तक सुधारा नहीं गया।

याचिका में की गई यह मांगें

याचिकाकर्ता लॉ स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने अदालत से मांग की है कि

  • 2023-24 और 2024-25 में मान्यता व प्रवेश से जुड़ी अवैध गतिविधियों को रिकॉर्ड में लिया जाए।
  • सरकार को यह निर्देश दिए जाएं कि वह सभी मान्यताओं व प्रवेश प्रक्रियाओं की रिपोर्ट अदालत में पेश करे।
  • कोर्ट यह सुनिश्चित करे कि बिना यूनिवर्सिटी की पूर्व संबद्धता के कोई भी संस्थान छात्रों को दाखिला न दे।
  • सभी अवैध और पूर्वव्यापी मान्यताओं को तत्काल प्रभाव से रोका जाए।

बड़ी बात यह है कि यह मुद्दा केवल कॉलेज या विभागीय गड़बड़ी तक सीमित नहीं, बल्कि मध्य प्रदेश के लाखों छात्रों के भविष्य से जुड़ा हुआ है। अब इस मामले की सुनवाई 16 जुलाई को होनी है। याचिका में दिए गए सबूतों के आधार पर कोर्ट की ओर से सख्त आदेश आना भी तय है।

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