लोकायुक्त द्वारा आईएएस सिद्दार्थ जैन के साथ ही 25 से ज्यादा निगम अधिकारियों पर एक नहीं बल्कि एक साथ तीन केस जांच के लिए पंजीबद्ध किए गए हैं। इस केस से इंदौर से भोपाल तक हड़कंप मच गया है। आईएएस अधिकारियों का एक धड़ा इस पूरी कार्रवाई से बेहद खफा है, खासकर इस बात से कि जो आईएएस अधिकारी निगम में जब पदस्थ भी नहीं था, तब के मामले की जांच शुरू कर दी गई, जिसका कोई लेना-देना ही नहीं है। उधर, द सूत्र को इस मामले में एक और बड़ी जानकारी मिली है, कि आखिर केस दर्ज हुआ कैसे।
इंदौर में जांच में ऐसा चला
दरअसल 3 अक्टूबर को कांग्रेस के पूर्व निगम पार्षद दिलीप कौशल द्वारा एक नहीं बल्कि तीन-तीन शिकायतें जैन के साथ ही अपर कलेक्टर संदीप सोनी के साथ ही निगम के कई बिल्डिंग अधिकारी, बिल्डिंग इंस्पैक्टर व अन्य की तीन अवैध निर्माण को लेकर शिकायतें की। यह शिकायत इंदौर लोकायुक्त एसपी के साथ ही भोपाल लोकायुक्त मुख्यालय में की गई। शिकायत पर लोकायुक्त इंदौर ने प्रारंभिक जांच शुरू की और इसमें जांच अधिकारी ने 8 अक्टूबर को कुछ संबंधितों को पत्र जारी कर जांच के लिए पत्र भेजा और 10 अक्टूबर को बयान के लिए बुलाया। कुछ लोगों ने बयान दर्ज कराए, खासकर शिकातकर्ता कौशल द्वारा बयान दिए गए।
लेकिन इस बीच भोपाल ने ऐसा कर दिया
लोकायुक्त इंदौर में इस मामले की जांच चल रही थी, कई लोगों बयान के लिए भी थे और मामला तकनीकी मुद्दा था और इसलिए भी क्योंकि जिन अवैध निर्माण को लेकर बात थी उसमें कई अधिकारी खासकर आईएएस जैन की कोई सीधे भूमिका ही नहीं थी। इसलिए इसमें जांच के लिए लोकायुक्त इंदौर को समय लग रहा था। इसके लिए भोपाल से और समय चाहा गया, जिससे सही जांच होकर ही रिपोर्ट दी जा सके। इसी दौरान भोपाल लोकायुक्त भोपाल ने 29 अक्टूबर को ही एक नहीं बल्कि कौशल की तीनों शिकायतों को जांच के लिए पंजीबद्ध कर लिए, जबकि इंदौर से कोई जांच रिपोर्ट बनी ही नहीं थी। भोपाल से उप विधि सलाहकार संतोष प्रसाद शुक्ल ने 29 अक्टूबर को सभी संबंधितों इंदौर लोकायुक्त और शिकायतकर्ता को पत्र भेज दिया और केस जांच के लिए पंजीबद्ध होने की जानकारी दे दी।
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भोपाल लोकायुक्त की इस तेजी ने हैरानी में डाला
भोपाल लोकायुक्त की अवैध निर्माण मामले में की गई इस तरह की तेजी और जांच के लिए केस पंजीबद्ध करने से इंदौर से भोपाल तक सभी हैरान है, क्योंकि सबसे बड़ा मुद्दा तो यह है कि इस केस में जैन सहित कई अधिकारियों का तो कोई सीधा लेना-देना ही नहीं है उनके कार्यकाल में तो मंजूरी भी नहीं हुई, केवल यह आरोप है कि आरटीआई में जानकारी नहीं दी और अवैध निर्माण पर शिकायत के बाद भी तोड़ा नहीं। निगम में तत्कालीन अपर आयुक्त रहे संदीप सोनी ने तो अवैध निर्माण की शिकायत पर तीन मल्टी सीज की, फिर इसमें सुधार के लिए शपथपत्र लेकर इसे खोला गया। बाद में उनका ट्रांसफर हो गया, लेकिन कार्रवाई के बाद भी उन पर अवैध संरक्षण के आरोप लगे। इंदौर ही नहीं प्रदेश के सभी नगर निगमों, पंचायतों में अवैध निर्माण होने और नहीं तोड़ने को लेकर हजारों शिकायतें हैं। संभवतः यह पहली बार है कि इतने बड़े स्तर पर लोकायुक्त ने केस दर्ज किए।
सत्ता के खिलाफ भी गया राजनीतिक संदेश
उधर, राजनीतिक मायने भी इसके देखे जा रहे हैं। सत्ता बीजेपी सरकार की है और कांग्रेस के नेता और पूर्व पार्षद के कहने पर धड़ाधड़ तीन-तीन शिकायतें जांच में पंजीबद्ध हो गई है, वह भी एक-दो नहीं एक आईएएस, एक अपर कलेक्टर के साथ ही दर्जन भर बिल्डिंग ऑफिसर, इंस्पैक्टर के खिलाफ। ऐसे में बीजेपी नेताओं के लिए भी यह घटना चिढ़ाने वाली है कि विपक्ष के कहने पर केस जांच में पंजीबद्ध हो गए, इससे अधिकारियों पर आगे जाकर बीजेपी नहीं कांग्रेस नेताओं की धाक ज्यादा होगी। यह बात भी सत्ता के गलियारों में हजम नहीं की जा रही है।
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इस तरह हुए सालों पुराने मामले में केस
आईएएस जैन के साथ भवन अधिकारी सुनील जादौन, भवन निरीक्षक विशाल राठौर, आर्किटेक्ट राहुल शाक्य, भवन अधिकारी असित खरे, नागेंद्र भदौरिया, देवेश कोठारी पर लोकायुक्त ने जांच प्रकरण 353/ई/2024 पंजीबद्ध किया है। यह आईडीए की स्कीम 59 में भूखंड़ 4 सेक्टर 12 में देवी अहिल्यी सब्जी मंडी के पास मल्टी से जुड़ा है। इस मल्टी को आवासीय की मंजूरी थी लेकिन इसका व्यावसायिक उपयोग हुआ। इस अवैध निर्माण को रोकने की किसी ने कोशिश नहीं की। बाद में अवैध निर्माण हटाया नहीं गया। व्यावसायिक की जगह आवासीय शुल्क लिया सभी कनेक्शन की दर आवासीय ही ली, इस तरह 10 करोड़ का नुकसान निगम को पहुंचाया गया। इसमें निगम के भवन अधिकारी, इंस्पैक्टर, आर्किटेक्ट के साथ ही मीरा मेंधानी, लोकचंद मेंधानी, ज्योति मेंधानी, राजकुमार मेंधानी सभी दोषी हैं।
28 लोगों पर मामला दर्ज
लोकायुक्त ने अन्य केस प्रकरण 355/ई/2024 दर्ज किया है, इसमें संदीप सोनी, आईएएस सिद्दार्थ जैन, भवन अधिकारी ओमप्रकाश गोयल, विवेश जैन, असित खरे, कार्यपालन यंत्री अश्विन जनपदे, परसराम अरोलिया व अन्य 28 लोग हैं। इसमें निगम के राकेश शर्मा, नादिम खान, राजेश सिंह चौहान, अजय करारे, आनंद रैदास, दिनेश तलनीकर, महेश शर्मा, अंकुर गोयल, पीएस कुशवाह राहुल सूर्यवंशी, पंकज शर्मा, राहुल सूर्यवंशी भी शामिल हैं। शिकायत में आर्किटेकट नवीन वाधवानी, विक्की खत्री, रोहित दिनकर, गुरमुखदास छाबरिया, दीपा छाबरिया, पुनीत उपाध्याय आर्किटेक्ट, प्रतीक रूनवाल, लोकचंद मेघनी, मीरे मेंधानी, ज्योति मेंधानी, संकल्प गंगवाल व अन्य शामिल हैं। इसमें है कि सिंधु नगर व राजमहल कॉलोनी जोन 12 में चार बहुमंजिला भवनों में मंजूरी एफएआर से तीन गुना अवैध निर्माण होने दिया गया, आवासीय की जगह व्यावसायिक उपयोग शुरू हुआ, लेकिन अधिकारी केवल नोटिस-नोटिस खेलते रहे। इस मामले में शपथपत्र लेकर सील हुए भवन खोल दिए गए और कोई कार्रवाई अधिकारियों द्वारा नहीं की गई।
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लोकायुक्त में 3 अक्टूबर को दी गई थी शिकायत
प्रकरण क्रमांक 354/ई/24 के तहत आईएएस जैन, भवन अधिकारी गजल खन्ना, सहायक यंत्री पीसी जैन व अन्य 16 लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया। पूर्व पार्षद द्वारा लोकायुक्त में 3 अक्टूबर को दी गई शिकायत में इनके साथ ही श्रृद्धा गोयल, सत्येंद्र राजपूत, सुरेश चौहान, वैभव देवालासे, अवधेश जैन, उदयसिंह भदौरिया, विशाल राठौर, रवि सनोतिया, गजेंद्रस, अनुराग शर्मा, राजू रावेरकर के साथ ही विजय जैसवानी, बद्रीलाल पंवार, शिवराज यादव व अन्य की शिकायत थी। शिकायत में है कि विजय पिता अर्जुन जैसवानी एसके वन कंपाउंड ग्राम लसूडिया मोरी ने सर्वे नंबर 67/2/3 पर बिना मंजूरी एसके कंपाउड निर्मित कर इसमें बिना मंजूरी मेसर्स केमको च्यू फूड्स प्रालि संचालित किया है। निगम अधिकारियों के साथ मिलीभगत कर यह अवैध निर्माण किया गया है। शिकायत में है कि इस भवन को औद्योगिक उपयोग के अधिभोग यानी आक्यूपेशन सर्टिफिकेट जारी नहीं हुए हैं। ना ही इनके पास किसी तरह के कार्यपूर्णता प्रमाणपत्र है।
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