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मध्य प्रदेश के नीमच में 8 फरवरी 2009 को हुए फर्जी बंशी गुर्जर एनकाउंटर कांड में हाल ही में हाईकोर्ट से एडिशनल एसपी अनिल पाटीदार और एसीपी मुख्तार रशीद कुरैशी की अग्रिम जमानत मंजूर हुई थी। जिला कोर्ट ने अब इसी आधार पर कई और आरोपियों को अग्रिम जमानत दी है। लेकिन इस मामले में गिरफ्तार हुए डीएसपी ग्लेडविन एडवर्ड कर और अभी तक सीबीआई गिरफ्तारी से बचे पीथमपुर के पूर्व सीएसपी विवेक गुप्ता की मुश्किलें बढ़ गई हैं।
गुप्ता की जमानत याचिका खारिज, इसमें यह लिखा
विवेक गुप्ता ने भी अन्य आरोपियों की तरह जिला कोर्ट में जमानत याचिका लगाई और कहा कि पाटीदार और कुरैशी को भी जमानत मिली है। उन्हें भी जमानत दी जाए। लेकिन जिला कोर्ट ने इस मामले में साफ लिखा कि गुप्ता और ग्लेडविन पर पाटीदार और कुरैशी से अधिक गंभीर आरोप हैं। इनके द्वारा एनकाउंटर में शामिल होकर गोली चलाई गई और निर्दोष को मारा गया। साथ ही झूठे साक्ष्य बनाए। दोनों ने बताया कि उन्हें गुर्जर द्वारा चली गोलियां लगीं, लेकिन जांच में आया है कि दोनों ही अधिकारियों को जो चोट लगी वह सख्त तथा ब्लंट (बोथरे) वस्तु से आई है, ना कि गोली लगने से। यानी गोली लगने की बात झूठी गढ़ी गई। इनके कपड़ों पर किसी तरह के गनशॉट के निशान नहीं थे।
झूठे एनकाउंटर में पूरी तरह से शामिल
कोर्ट आदेश में है कि आवेदक ने कथित मुठभेड़ के दौरान दो गवाहों को पेश करने और गलत तरीके से मृतक (बंशी) की गोली से चोट लगाना दिखाने का आरोप है। जबकि हाईकोर्ट से जमानत पाए गए पाटीदार और कुरैशी पर झूठे साक्ष्य गढ़ने का आरोप नहीं है। इसलिए इनके आरोप अधिक गंभीर हैं। इसलिए जमानत का लाभ दिया जाना उचित नहीं है। आवेदक पर आरोपित अपराध की गंभीर प्रकृति और सहआरोपी ग्लेडविन एडवर्ड कार के साथ मिलकर मुठभेड़ के दौरान गोली की चोट आने के संबंध में असत्य साक्ष्य गढ़ने के आरोप देखते हुए अग्रिम जमानत आवेदन खारिज किया जाता है।
बाकी इन्हें मिली जमानत
वहीं जिला कोर्ट ने मंगल सिंह, सैयद अली, शेख अनवर, मुनव्वर कुरैशी की अग्रिम जमानत और गिरफ्तार दुर्गाशंकर की मंजूरी कर ली। इसके पहले हाईकोर्ट से गिरफ्तार नीरज प्रधान की जमानत मंजूर हो चुकी है। अभी जेल में केवल डीएसपी ग्लेडविन हैं। वहीं विवेक गुप्ता व अन्य के वारंट निकले हुए हैं। हालांकि जो सीधे आरोपी नहीं हैं, उन्हें अब पाटीदार और कुरैशी की जमानत के आधार पर जमानत का लाभ मिल रहा है।
क्या गुप्ता पर ईनाम घोषित होगा
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने गुना में पुलिस हिरासत में मौत के मामले में फरार टीआई और एसआई को अभी तक नहीं पकड़ने पर सीबीआई को जमकर फटकार लगाई और साफ कहा कि वह बचा रहे हैं। इसके बाद दोनों पर ईनाम घोषित हुआ है। अब इस मामले में भी वारंट जारी होने के बाद भी गुप्ता की अभी तक गिरफ्तारी नहीं होने से मामला उलझ सकता है। जिला कोर्ट ने अपने आदेश में साफ तौर पर ग्लेडविन और गुप्ता पर गंभीर आरोप माने हैं। अप्रैल माह से ही गुप्ता तक सीबीआई नहीं पहुंच सकी है।
बाकी यह पुलिसवाले भी बने हैं आरोपी
आरोपियों में- परशुराम सिंह परमार, मंगल सिंह पपोला, बेनीराम, अनोखेलाल राठौर, श्यामपाल सिंह भदौरिया, शेख अनवर, भगवानसिंह, कमलेंद्र सिंह, मुनब्बरूद्दीन, सैय्यद उवैश अली, चतर्भुज गुर्जर हैं। सीबीआई ने आईपीसी धारा 307, 353, 332, 302, 193, 201 और अन्य धाराओं में केस दर्ज किया है।
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यह है पूरा बंशी गुर्जर फर्जी एनकाउंटर कांड
मध्यप्रदेश के नीमच में यह कांड हुआ था। जिसे एनकाउंटर में मृत बताया गया वह 2014 में बंशी जीवित मिला। इसके बाद सीबीआई ने केस दर्ज कर जांच की। अप्रैल 2025 में जाकर गिरफ्तारियां शुरू की। सीबीआई ने इस मामले में रिपोर्ट बनाई है कि इस एनकाउंटर के लिए पुलिस और नामी गुंडे बंशी गुर्जर के बीच 35 लाख रुपए की डील हुई थी। इसके तहत बंशी को मृत बताया जाना था। इसी डील के तहत पुलिस ने रामपुरा थाने में बंद एक व्यक्ति की हत्या की।
सीबीआई ने उस दौरान थाने में काम करने वाले एक व्यक्ति के बयान से बताया कि थाने में बंद एक पागल जैसे दिखने वाले व्यक्ति को प्रेस किए दूसरे कपड़े पहनाए गए। सुबह उसे बंशी बताया गया, लेकिन जब उसका चेहरा और कपड़े देखे तो मैंने पहचान लिया कि यह तो वही है जो रात में थाने में था और अब इसे बंशी बताया जा रहा है और यह मर चुका है, इसके सिर पर चोट लगी है।
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बंशी ने बताया उदयपुर से लाया लाश
उधर बंशी गुर्जर ने सीबीआई में जो बयान दिए हैं, उनमें इस एनकाउंटर को लेकर कहानी यह है कि- उसने खुद ही उदयपुर, राजस्थान से एक लाश का इंतजाम किया और उसे मृत बताया। इसके लिए पूरी डील की गई थी। उसने भी टीआई परशुराम परिहार का नाम लिया और कहा था कि वह सब संभाल लेगा।
आरोपी पुलिस अधिकारियों ने ऐसे एनकाउंटर बताया
नीमच फर्जी एनकाउंटर मामले में पुलिस ने जो रामपुरा थाने नीमच में एफआईआर लिखवाई, जो तत्कालीन थाना प्रभारी ग्लेडविन ने ही लिखवाई थी। इसके अनुसार बात करें तो- ग्लेडविन रामपुरा टीआई थे, मनासा एसडीओपी अनिल पाटीदार थे। सात फरवरी 2009 को एसपी वेदप्रकाश शर्मा ने जानकारी दी कि बंशी गुर्जर गांधीसागर की ओर से छिपा हुआ है और रात को अपने घर पर पेशन मोटरबाइक से नलवा जा रहा है। इसके पास हथियार रहते हैं। थाना प्रभारी कुकडेशवर पीएस परमार और टीआई बघाना मुख्त्यार कुरैशी व मनासा टीआई विवेक गुप्ता को भी खबर दी गई। गुर्जर को पकड़ने के लिए दो दल बने।
एक में टीआई परमार, कुरैशी के साथ प्रधानआरक्षक श्याम पाल सिंह, वेणीराम, आर अनोखी लाल, आर अनवर, मंगल सिंह थे। दूसरे दल में ग्लेडविन, विवेक गुप्ता, अनिल पाटीदार, भगवान सिंह, नीरज प्रधान, फतेह सिंह दुर्गाशंकर तिवारी, आर मनुरव्दीन, कमलेंद्र थे। एक दल बाइक की जांच कर रहा था तभी पहले दल के लोगों की आवाज आई गुर्जर सरेंडर कर दो। उनकी बात सुनकर दूसरे दल वालों ने बाइक वाले को देखा और आवाज लगाई सरेंडर कर दो, तभी उसने दो फायर किए। एक ग्लेडविन की बाजू पर और दूसरी गुप्ता के रगड़ करते हुए लगी। ग्लेडविन और गुप्ता ने गोली चलाई, वहीं मनासा एसडीओ पाटीदार ने भी गोली चलाई। वह गिर गया। उसके पास डायरी व अन्य कागज थे, इसमें बंशी गुर्जर नाम लिखा था, वह घायल था। उसे रामपुरा अस्पताल ले गए, वहां मौत हुई।
अब कैसे पता चला गुर्जर जिंदा
गुर्जर का एक साथी घनश्याम कुछ दिन बाद सड़क एक्सीडेंट में मारा गया। इसका भी केस हुआ। लेकिन एक मुखबिर की सूचना पर पुलिस को पता चला कि घनश्याम तो जिंदा है और उज्जैन जेल में है। इस पर उससे पुलिस ने पूछताछ की तो पता चला कि यह गुर्जर ने ही उसे बताया था कि मरने की नौटंकी करो, सारे केस खत्म हो जाएंगे। घनश्याम के पास मोबाइल में एक वीडियो मिला, जिसमें एक कार्यक्रम में बंशी नाचते हुए दिखा। इस पर पुलिस चौंक गई। उसका पता निकाला और आईजी उज्जैन उपेंद्र जैन ने टीम बनाकर बंशी गुर्जर को जिंदा पकड़ लिया।