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सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी आरक्षण की सुनवाई टलने पर सियासत अब खूब देखने को मिल रही है। कांग्रेस ने राज्य सरकार पर कोर्ट में बहाने बनाकर सुनवाई टालने का आरोप लगाया है। हालांकि, बीजेपी ने कांग्रेस की ओर से लगाए गए आरोपों को गुमराह करने वाला बताया।
सरकारी वकीलों की तैयारी ही नहीं थी
एमपी कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष जीतू पटवारी ने Thesootr की खबर का स्क्रीनशॉट शेयर करते हुए कहा कि "आज (24 सितंबर) को ओबीसी आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई थी, लेकिन वकीलों की तैयारी न होने के कारण सुनवाई को टाल दिया गया।" माननीय अदालत ने फिर फटकार लगाते हुए कहा कि लगता है आप आर्गुमेंट करना ही नहीं चाहते। 27% ओबीसी आरक्षण का मामला बार-बार अदालतों में अटक रहा है, लेकिन मोहन सरकार लगातार बहाने बनाकर ओबीसी वर्ग को उलझा रही है। मैं सभी ओबीसी वर्ग के भाई-बहनों को विश्वास दिलाता हूँ कि हम मोहन यादव से ओबीसी का 27% आरक्षण लेकर ही रहेंगे।
इसके अलावा जीतू पटवारी ने कहा कि ओबीसी का आरक्षण अगर 6 साल से लागू नहीं हो रहा है, तो इसके दोषी शिवराज सिंह चौहान और मुख्यमंत्री मोहन यादव हैं। सुप्रीम कोर्ट में मोहन सरकार के वकीलों की तैयारी नहीं होने के कारण सुनवाई टाल दी गई। कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि लगता है आप आर्गुमेंट करना ही नहीं चाहते। इससे साफ जाहिर है कि मोहन यादव ओबीसी वर्ग को आरक्षण देने के पक्ष में बिल्कुल नहीं हैं।
जनता को गुमराह कर रही कांग्रेस
पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री कृष्णा गौर ने कहा कि ओबीसी वर्ग को 27% आरक्षण के मामले में कांग्रेस जनता को गुमराह करने की कोशिश कर रही है। वास्तविकता यह है कि मध्यप्रदेश सरकार के वकीलों ने सर्वोच्च न्यायालय में पूरी गंभीरता और तथ्यों के साथ पक्ष रखते हुए 15 हजार पेजों का दस्तावेज सौंपा है। सरकार ओबीसी 27% आरक्षण दिलाने के लिए प्रतिबद्ध है। कांग्रेस लगातार असत्य का सहारा लेकर जनता को भ्रमित करना चाहती है।
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जानें ओबीसी आरक्षण मामले में SC में क्या हुआ
ओबीसी आरक्षण केस में 24 सितंबर से नियमित सुनवाई होनी थी, लेकिन पक्षकारों की अधिक तैयारी न होने से सुनवाई आगे टल गई। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी भी की है कि लगता है आप लोग आर्ग्युमेंट करना ही नहीं चाहते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह कोई मजाक नहीं चल रहा...यह गंभीर मामला है। हम मामले में सुनवाई के लिए तैयार हैं, लेकिन आगे बढ़कर पहल करने के लिए कोई तैयार नहीं।
वहीं शासकीय पक्ष से एक बार फिर अंतरिम राहत की मांग करते हुए 27 फीसदी आरक्षण लागू करने की मांग की गई जिसे फिर खारिज कर दिया गया।
अनारक्षित पक्ष के अधिवक्ता ने कहा कि शासन ने रात को ही 15 हजार से अधिक पन्नों की रिपोर्ट दी है, इसे पढ़ने के लिए समय चाहिए। इसके बाद मामले में अगली सुनवाई 8 अक्टूबर कर दी गई है।
उल्लेखनीय है कि इसके पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा था कि सरकार 6 साल से सोई हुई है और यह स्थितियां उनके द्वारा ही पैदा की गई हैं।
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असाधारण स्थिति बताने की कोशिश
माना जा रहा है कि इस 15 हजार से अधिक पन्नों की रिपोर्ट में मप्र शासन द्वारा प्रदेश में ओबीसी को अधिक आरक्षण के लिए असाधारण स्थितियों को लेकर बात की गई है। इससे संबंधित विविध रिपोर्ट, सरकार में इनका प्रतिनिधित्व यह सभी बातें कही गई हैं। हालांकि औपचारिक तौर पर अभी इस पर साफ नहीं हुआ है।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट लगातार इंदिरा साहनी केस का हवाला दे चुका है। इस मामले में द सूत्र ने भी यह तथ्य के साथ बात रखी थी कि यदि 27 फीसदी आरक्षण लागू करना है तो मप्र सरकार को बताना होगा कि असाधारण स्थितियां हैं, इसलिए आरक्षण सीमा को अधिक किया जा सकता है।
हम मामले के लिए तैयार , लेकिन कोई गंभीर नहीं: SC
सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता ने कहा कि 15 हजार पन्नों की रिपोर्ट हमें कल रात को मिली है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख लहजे में कहा कि हम मामले को लेने के लिए तैयार हैं, लेकिन आप लोग तैयार नहीं हैं। आप लगातार अंतरिम राहत की मांग कर रहे हैं लेकिन हम स्थिति साफ कर चुके हैं। सभी रुके हुए हैं और कोई भी आगे बढ़कर पहल करने के लिए तैयार नहीं है। आप इस मामले में गंभीर नहीं हैं। कौन किसकी ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता है, देखिए। आर्ग्युमेंट के लिए कोई तैयार नहीं है। वहीं ओबीसी वेलफेयर कमेटी ने फिर से एक्ट पास होने की बात कही।
सुनवाई के लिए इतने पैसे लेंगे वकील
इस सुनवाई के मद्देनजर मध्य प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में राज्य का पक्ष रखने के लिए जिन दो वरिष्ठ अधिवक्ताओं को नियुक्त किया है और उनकी फीस का आदेश भी जारी कर दिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता फीस
मध्य प्रदेश शासन ने अधिवक्ताओं की सेवाओं और फीस की स्पष्ट रूपरेखा तय की है। आदेश के अनुसार-
- वरिष्ठ अधिवक्ता पी. विल्सन, को प्रत्यक्ष हाजिरी के लिए 5 लाख 50 हजार रुपए और वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से हाजिरी के लिए 1 लाख 50 हजार रुपए। समान विषय की अन्य याचिकाओं में अलग से फीस नहीं दी जाएगी।
- अधिवक्ता शशांक रत्नू को प्रत्यक्ष हाजिरी और वीडियो कांफ्रेंस के जरिए हाजिरी के लिए 2 लाख 40 हजार रुपए। अतिरिक्त वीडियो कांफ्रेंस के लिए 60 हजार रुपए, उल्लेख करने के लिए 60 हजार रुपए और मसौदे, आवेदन पत्र या अतिरिक्त हलफनामों की जांच एवं अंतिम रूप देने के लिए 60 हजार रुपए।
- सभी भुगतान राज्यपाल के नाम से जारी आदेश के अनुसार पारदर्शिता और नियमों के अनुरूप सुनिश्चित किए जाएंगे। समान विषय की अन्य याचिकाओं में अलग से कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा।
ओबीसी आरक्षण मामले में अब तक क्या-क्या हुआमार्च 2019कमलनाथ सरकार ने ओबीसी आरक्षण को 14% से बढ़ाकर 27% करने का निर्णय लिया। मार्च 2020हाईकोर्ट ने इस फैसले पर रोक लगाते हुए कहा कि कुल आरक्षण 50% से अधिक नहीं हो सकता। सितंबर 2021तत्कालीन महाधिवक्ता की सलाह के बाद सरकार ने ओबीसी को 27% आरक्षण देने के लिए नई गाइडलाइन जारी कीं। अगस्त 2023हाईकोर्ट ने 87:13 का फॉर्मूला लागू किया, जिसके तहत 87% पदों पर भर्तियां होंगी और 13% पद होल्ड पर रखे जाएंगे। 28 जनवरी 2025हाईकोर्ट ने 87:13 फॉर्मूले को चुनौती देने वाली याचिकाएं खारिज कर दीं, जिससे 27% ओबीसी आरक्षण का रास्ता साफ हो गया। 13 फरवरी 2025मध्य प्रदेश सरकार ने 27% ओबीसी आरक्षण के मामले को सुप्रीम कोर्ट ले जाने का फैसला किया। मुख्यमंत्री ने एडवोकेट जनरल को जल्द सुनवाई के लिए आवेदन देने को कहा। 22 मार्च 2025मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 27% ओबीसी आरक्षण से जुड़े किसी भी मामले की सुनवाई नहीं करने का निर्देश दिया। 7 अप्रैल 2025सुप्रीम कोर्ट ने 'यूथ फॉर इक्वलिटी' की याचिका पर कहा कि इस कानून पर कोई रोक नहीं है। 22 अप्रैल 2025ओबीसी आरक्षण से संबंधित 52 याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर की गईं और सुप्रीम कोर्ट ने सभी को स्वीकार कर लिया। 25 जुलाई 2025सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर विशेष सुनवाई की। |
सीएम मोहन ने ओबीसी आरक्षण पर यह कह चुके
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने लगातार यह बयान दिया है कि राज्य सरकार ओबीसी को 27% आरक्षण (27 percent ओबीसी reservation) देने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी आरक्षण से संबंधित सुनवाई के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के साथ मिलकर वकीलों की टीम बनाई है। इस टीम में तमिलनाडु के सीनियर एडवोकेट और राज्यसभा सांसद पी. बिल्सन तथा एडवोकेट शशांक रतनू को ओबीसी आरक्षण के मामलों में ओबीसी का पक्ष रखने के लिए अधिकृत किया गया है।