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Photograph: (THESOOTR)
24 सितंबर से सुप्रीम कोर्ट में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के आरक्षण को 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने से जुड़े मामले की सुनवाई होने जा रही है। इस सुनवाई के मद्देनजर मध्य प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में राज्य का पक्ष रखने के लिए जिन दो वरिष्ठ अधिवक्ताओं को नियुक्त किया है और उनकी फीस का आदेश भी जारी कर दिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता फीस
मध्य प्रदेश शासन ने अधिवक्ताओं की सेवाओं और फीस की स्पष्ट रूपरेखा तय की है। आदेश के अनुसार-
- वरिष्ठ अधिवक्ता पी. विल्सन, को प्रत्यक्ष हाजिरी के लिए 5 लाख 50 हजार रुपए और वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से हाजिरी के लिए 1 लाख 50 हजार रुपए। समान विषय की अन्य याचिकाओं में अलग से फीस नहीं दी जाएगी।
- अधिवक्ता शशांक रत्नू को प्रत्यक्ष हाजिरी और वीडियो कांफ्रेंस के जरिए हाजिरी के लिए 2 लाख 40 हजार रुपए। अतिरिक्त वीडियो कांफ्रेंस के लिए 60 हजार रुपए, उल्लेख करने के लिए 60 हजार रुपए और मसौदे, आवेदन पत्र या अतिरिक्त हलफनामों की जांच एवं अंतिम रूप देने के लिए 60 हजार रुपए।
- सभी भुगतान राज्यपाल के नाम से जारी आदेश के अनुसार पारदर्शिता और नियमों के अनुरूप सुनिश्चित किए जाएंगे। समान विषय की अन्य याचिकाओं में अलग से कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा।
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कई बैठकों के बाद तय हुए अधिवक्ता
सरकार के द्वारा ओबीसी वर्ग के संगठनो और अधिवक्ताओं के साथ लगातार बैठक के बाद इन वकीलों के नाम तय हुए हैं जो सरकार का पक्ष सुप्रीम कोर्ट में रखेंगे। इससे अब राज्य का पक्ष सुप्रीम कोर्ट में प्रभावी और व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत किया जा सकेगा।
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अधिवक्ताओं की सुप्रीम कोर्ट फीस पर चर्चा तेज
ओबीसी वर्ग के ही सूत्रों की अगर माने तो सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ताओं को मिलने वाली भारी भरकम फीस भी विवाद की एक वजह है। आरोप प्रत्यारोप के दौर में यह बात भी सामने आ रही है कि ओबीसी वर्ग के अधिवक्ता और ओबीसी महासभा इसी भुगतान को लेकर दो गुटों में बट गए हैं।
हालांकि, ओबीसी आरक्षण में सुनवाई से पहले ही आंतरिक मतभेद और गुटबाजी उजागर हो चुकी है। ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय कोर कमेटी सदस्य एडवोकेट वैभव सिंह लोधी ने कुछ अधिवक्ताओं पर जान से मारने की धमकी और गाली-गलौज करने का आरोप पुलिस में दर्ज कराया है।
वहीं कुछ अधिवक्ताओं ने इस पूरे घटनाक्रम को षड्यंत्र बताया है और महाधिवक्ता प्रशांत सिंह पर इसका आरोप लगाया है। इस विवाद ने यह दिखा दिया है कि सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई के साथ-साथ ओबीसी वर्ग के भीतर राजनीतिक और व्यक्तिगत खींचतान भी जारी है।