पूर्व मंत्री, विधायक सुरेंद्र पटवा को झटका, सीबीआई की FIR नहीं होगी खत्म, ऐसे किया 29 करोड़ का बैंक लोन घोटाला

पूर्व मंत्री सुरेंद्र पटवा के खिलाफ बैंक लोन घोटाले के मामले में सीबीआई की एफआईआर को हाईकोर्ट ने खत्म नहीं किया। जानिए इस बड़े घोटाले के बारे में, सीबीआई की जांच, और पटवा की मुश्किलें बढ़ने के कारण के बारे में विस्तार से...

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Sanjay Gupta
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मध्यप्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री और वर्तमान में रायसेन जिले की भोजपुर विधानसभा के विधायक सुरेंद्र पटवा (Bhojpur MLA Surendra Patwa) की मुश्किलें बढ़ गई हैं। इंदौर की एमपी-एमएलए (MP-MLA) कोर्ट ने उनका गिरफ्तारी वारंट जारी किया हुआ है, वहीं हाईकोर्ट इंदौर से भी उन्हें झटका लगा है। सीबीआई द्वारा दर्ज एफआईआर को क्वैश करने का आवेदन खारिज कर दिया गया है। हाईकोर्ट ने आदेश में साफ लिखा कि एफआईआर और जांच को रोका नहीं जा सकता है।

पटवा को लेकर हाईकोर्ट बेंच ने यह दिया आदेश

हाईकोर्ट डबल बेंच ने आदेश में लिखा कि- जहां तक एफआईआर दर्ज करने को चुनौती देने का सवाल है, याचिकाकर्ताओं के वकील इसे वापस लेने की अनुमति चाहते हैं। बाद में कानून के अनुसार इसे चुनौती देने की स्वतंत्रता चाहते हैं। वैसे भी, सर्वोच्च न्यायालय ने 25.04.2025 के अपने फैसले में स्पष्ट रूप से कहा है कि किसी अपराध का संज्ञान लेकर एफआईआर केवल कानून को लागू करती है। इसका किसी अन्य प्राधिकारी द्वारा लिए गए प्रशासनिक निर्णय से कोई लेना-देना नहीं है।

यहां तक कि ऐसे मामले में भी जहां एफआईआर किसी अन्य प्राधिकारी द्वारा लिए गए निर्णय के आधार पर दर्ज की जाती है। हालांकि हाईकोर्ट ने बैंक द्वारा धोखाधड़ी की घोषणा को रद्द किया है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट के राजेश अग्रवाल मामले में आए फैसले के बाद आरबीआई द्वारा जारी की गई नई गाइडलाइन के तहत इस मामले में प्रक्रिया करने के लिए कहा है।

साथ ही लिखा है कि धोखाधड़ी की घोषणा को रद्द करने से याचिकाकर्ताओं के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज करने वाले प्रतिवादियों की कार्रवाई प्रभावित नहीं होगी। यानी एफआईआर को लेकर चल रही कार्रवाई प्रभावित नहीं होगी और इसकी स्वतंत्रता होगी।

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एक बार हो गई थी एफआईआर क्वैश

इस मामले में बीजेपी विधायक सुरेंद्र पटवा को जुलाई 2023 में बड़ी राहत मिली थी। जब हाईकोर्ट बेंच ने पटवा की याचिका पर फैसला करते हुए एफआईआर को क्वैश कर दिया था। लेकिन फिर इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर हुई।

सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2025 में अपने आदेश में हाईकोर्ट के एफआईआर क्वैश के आदेश को दरकिनार कर दिया और आरबीआई की नई गाइडलाइन के तहत फिर से विचार के लिए हाईकोर्ट में भेजा। इसके बाद अब हाईकोर्ट ने इस मामले में ताजा आदेश जारी किया है और इसमें बैंकों को निर्देश दिए हैं कि आरबीआई की नई गाइडलाइन के तहत फिर से धोखाधड़ी घोषणा पर विचार करें और इससे दर्ज एफआईआर और कार्रवाई पर असर नहीं होगा।

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अब पटवा के इस पूरे घोटाले को समझते हैं

मेसर्स पटवा ऑटोमोटिव प्रा. लि. (PAPL) इंदौर द्वारा बैंक ऑफ बड़ौदा निपानिया इंदौर की ब्रांच से सितंबर 2014 में मिली क्रेडिट लिमिट के जरिए 36 करोड़ का लोन लिया। लेकिन यह मई 2017 में ही एनपीए (Non-Performing Asset) घोषित हो गया।

जून 2018 की स्थिति में बैंकों को पटवा से 29.41 करोड़ रुपए की वसूली चाहिए। इस लोन में गारंटर कॉर्पोरेट गारंटी स्टार सिटी कंस्ट्रक्शन की थी और निजी गारंटी सुरेंद्र पटवा, मोनिका पटवा, भरत पटवा, महेंद्र पटवा और फूल पटवा की थी।

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पटवा ने खुद माना था पत्र लिखकर

यह भी चौंकाने वाली बात है कि सुरेंद्र पटवा ने 18 फरवरी 2017 को एक पत्र लिखा और इसमें माना था कि उनके द्वारा 3.79 करोड़ के फंड को डायवर्ट किया गया है। यानी बैंक लोन का जमकर खेल किया गया और इसका जिस काम के लिए उपयोग होना था उसकी जगह अन्य कार्यों में इसका उपयोग किया गया।

बैंक ऑफ बड़ौदा की रिपोर्ट में खुलासा

इस मामले में बैंक ऑफ बड़ौदा की फॉरेंसिक ऑडिट रिपोर्ट में खुलासा है कि इस लोन को कंपनी ने डायवर्ट किया और अन्य कामों में उपयोग में लिया। मेसर्स पटवा अभिकरण रतलाम प्रा. लि. (PAPRl) के खातों में राशि गई। पटवा ऑटोमोटिव इंदौर ने PAPRl से 64 करोड़ की खरीदी दिखाई लेकिन PAPRl खातों में यह राशि नहीं है। इसी तरह फर्जी बैलेंस शीट बनाई गई। कंपनी ने 9.52 करोड़ की राशि लोन की बैंक को बिना बताए अपनी दूसरी देनदारी में उपयोग की।

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सीबीआई ने यह किया है केस

सीबीआई ने बैंक ऑफ बड़ौदा के रीजनल मैनेजर इंदौर की रिपोर्ट पर 21 अक्टूबर 2021 को मेसर्स पटवा ऑटोमोटिव (जिसका नया नाम मेसर्स भगवती पटवा ऑटोमोटिव) और भोजपुर विधायक सुरेंद्र पटवा, मोनिका पटवा व अन्य के खिलाफ आईपीसी धारा 120B, 420 और अन्य के तहत केस दर्ज किया।

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