BHOPAL : फिर हमारा प्रदेश खाद के संकट से जूझ रहा है। यही स्थिति पूरे देश में है और एक महीना बीत गया है। किसान खाद के लिए कहीं सहकारी समितियों के सामने आंदोलनरत दिख रहे हैं तो कहीं बाजारों में हंगामे-हुल्लड़ के हालात नजर आ रहे हैं। समय पर खाद न मिलने की वजह से फसलों के खराब होने को लेकर आशंकित हैं। सरकार-प्रशासन की ओर से केवल कोरे आश्वासन ही मिल रहे हैं, ऐसे में किसान घबराएं न तो क्या करें। प्रदेश में रबी और खरीफ सीजन में 295 लाख हेक्टेयर जमीन पर किसान खेती करते हैं। इस अनुमान के आधार पर सरकार खाद की व्यवस्था करती है और इतना ही खुले आजार से भी बिकता है। इसके बावजूद हर सीजन में खाद को लेकर मारामारी होना तय है।
खाद के संकट के हालात क्यों
प्रदेश में खाद के भंवर में फंसे किसान सरकार की ओर टकटकी लगाए बैठे हैं। कभी उनमें चिंता नजर आती है तो कभी आक्रोश उभर आता है। लेकिन हर बार खाद के संकट के हालात क्यों बनते हैं। सरकार के तमाम दावों के बाद इस बार फिर किसानों मुसीबत में क्यों है, द सूत्र ने इसको लेकर गहरी पड़ताल की है। खाद की समस्या को लेकर किसानों का क्या कहना है, सरकार के क्या दावे हैं इसके अलावा उस फैक्टर को भी उठाया है जो इस संकट की वजह बनता रहा है। पहले आपको बताते हैं प्रदेश में खाद के मुख्य फैक्टर यूरिया और डीएपी की कितनी जरूरत होती है और उनकी उपलब्धता की स्थिति क्या है। साल 2024 में खरीफ सीजन में प्रदेश में 32 लाख मीट्रिक टन खाद की जरूरत थी जबकि रबी सीजन यानी अक्टूबर माह से शुरू हुई बोवनी की फसलों के लिए यह डिमांड बढ़कर 41 लाख मीट्रिक टन पहुंच गई है। रबी सीजन में बोवनी का काम पूरा हो चुका है और अब फसलों में डीएपी, यूरिया की छिड़काव बेहद जरूरी है। यानी अब तक किसानों को डिमांड के आधार पर शत-प्रतिशत मात्रा में खाद उपलब्ध हो जाना चाहिए। लेकिन सरकारी आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि अब तक केवल 60 फीसदी खाद ही किसानों तक पहुंचा है। अभी भी किसानों को 40 फीसदी खाद के लिए दिन-रात मशक्कत करनी पड़ रही है जबकि ये समय खेतों में मौजूदगी का है।
खाद का संकट या आंकड़ों की बाजीगरी
प्रदेश के किसानों को कितने खाद की जरूरत होती है इसे आंकड़ों से समझते हैं। दरअसल प्रदेश में खेती का रकबा लगातार बढ़ रहा है। साल 2023 के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में खरीफ सीजन में 146.08 लाख हैक्टर जबकि रबी सीजन में 141.62 लाख हैक्टर में खेती की गई थी। साल 2024 में खेती का यह रकबा कुछ कम या ज्यादा हो सकता है। साल 2023 में खेती के रकबे के आधार पर खरीफ सीजन में 32 लाख मीट्रिक टन खाद की डिमांड थी जबकि साल 2024 में खरीफ सीजन की फसलों के लिए 33 लाख मीट्रिक खाद की मांग थी। पिछले साल रबी सीजन में साल 2024 में खाद की डिमांड बढ़कर 41 लाख मीट्रिक टन तक पहुंच गई है। इसमें से अक्टूबर महीने में बोवनी शुरू होने के बाद से अब तक यानी नवम्बर माह के आखिरी सप्ताह तक 20 से 24 लाख मीट्रिक टन खाद किसानों को मुहैया कराया जा चुका है। यानी सीजन का सबसे अहम दौर पूरा होने के बावजूद किसानों के हिस्से में केवल 60 फीसदी खाद ही आया है। जबकि अब तक 80 फीसदी तक खाद उन्हें मिल जाना था। किसानों को जो खाद मिला है उसमें यूरिया करीब 8 लाख टन, डीएपी 6 लाख टन है। जबकि शेष हिस्सा दूसरे उर्वरकों का है। कुल मिलाकर किसानों को अपनी जरूरत से बेहद कम खाद ही मिल पाई है।
खाद उपलब्धता में आत्मनिर्भर नहीं
भारत की अर्थव्यवस्था कृषि आधारित है। यानी 70 फीसदी आबादी अब भी खेती-किसानी से अपनी आजीविका चलाता है या उस पर अप्रत्यक्ष रूप से निर्भर है। इसके बाद भी देश में खाद निर्माण के संयंत्र लगाने पर सरकार ने ध्यान नहीं दिया। आजादी के 77 साल हो गए हैं लेकिन कृषि प्रधान देश यूरिया, डीएपी से लेकर अन्य जरूरी रासायनिक उर्वरक दूसरे देशों से मंगाता है। खाद बनाने और उसे सहकारी संस्थाओं के जरिए किसानों तक पहुंचाने वाली इफको, कृभको जैसे बड़ी कंपनियां तो हैं लेकिन फास्फोरस, जिंक या दूसरे रॉ मटेरियल के लिए ये भी दूसरे देशों पर निर्भर हैं। उससे भी बड़ी बात ये है कि मध्यप्रदेश कृषि क्षेत्र में अव्वल प्रदर्शन करने वाला राज्य है। यानी खेती के मामले में हम देश के दूसरे राज्यों से कहीं आगे हैं। इसका प्रमाण केंद्र सरकार से मिलने वाला कृषि कर्मण अवार्ड है। खेती में बेहतर प्रदर्शन के चलते मध्यप्रदेश को ये अवार्ड सात बार मिल चुका है। अब सवाल ये है कि कृषि के क्षेत्र में सबसे बेहतर राज्य में ही किसानों को समय पर खाद नहीं मिल रही। उन्हें यूरिया-डीएपी के कृत्रिम संकट में उलझाकर मोटा मुनाफा कमाया जाता है और सरकार बस अगले साल व्यवस्था सुधारने का दावा कर चुप्पी साध जाती है। इस बार भी बुआई का सीजन पूरा बीत चुका है और किसान डेढ़ या दोगुनी कीमत चुका कर खाद की पूर्ति करने मजबूर हैं।
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सहकारी दुकानों पर डीएपी, यूरिया के रेट
केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह ने संसद में बयान देकर खाद की कीमत और उस पर मिलने वाले अनुदान के बारे में बताया था। जिसके अनुसार यूरिया की बोरी पर सरकार 2100 रुपये की सब्सिडी देती है, तब किसानों को यह 266 रुपये में मिल पाती हे। वहीं डीएपी पर प्रति बोरी सब्सिडी 1083 रुपए से ज्यादा है और इसी वजह से किसानों को यह 1350 रुपए की कीमत पर मिल रहा है। यह बात तो केंद्रीय कृषि मंत्री के संसद में दिए भाषण की है लेकिन हकीकत कुछ और है। सहकारी दुकानों पर खाद उपलब्ध न होने के कारण खुले बाजार में जमकर वसूली हो रही है। जमाखोर यूरिया की एक बोरी पर 300 से 600 रुपए तक कमा रहे हैं। यही हालत डीएपी की बोरी पर है। यानी किसान को एक बोरी यूरिया 266 की जगह 600 या 700 रुपए और डीएपी के लिए 11 सौ की जगह 1400 या 1600 रुपए चुकाने पड़ रहे हैं। कई जगह तो किसानों को यूरिया और डीएपी लेने पर क्रॉप एंजाइम या दूसरे कीटनाशक थमाए जा रहे हैं।
पूरे प्रदेश में खाद के लिए हो रहा बवाल
खाद की किल्लत के कारण जगह-जगह विवादों की खबरें भी आ रही हैं। बीते दिनों में खाद की कालाबाजारी, अवैध भंडारण, मुनाफाखोरी की शिकायतों पर 70 से ज्यादा अपराध दर्ज किए जा चुके हैं। कालाबाजारी, मुनाफाखोरी के चलत 45 दुकानों के लाइसेंस निरस्त भी किए गए हैं। विदिशा, जबलपुर में कालाबाजारी की शिकायतों पर कार्रवाई की गई। छतरपुर में अवैध भंडारण पर केस दर्ज किए गए। आगर-मालवा, बैतूल, देवास, बालाघाट, बुरहानपुर, झाबुआ, शिवपुरी, मंदसौर, श्योपुर, हरदा और खंडवा जिलों में भी बीते दिनों कार्रवाई की गई है। विवादों की वजह से सहकारी दुकानों पर पुलिस के पहरे में खाद बांटना पड़ रहा है। कई जगहों पर किसानों को थानों में पर्ची बनाकर दी जाती है और खाद उन्हें किसी दूसरी जगह पर दिया जाता है ताकि भीड़ के कारण विवाद न हो जाएं। किसान रात-रात भर सहकारी समितियों के परिसर और सड़कों पर बैठकर खाद का इंतजार करने मजबूर हैं। किसानों को अपने हिस्से के 20 लाख टन खाद का इंतजार है। वहीं अधिकारी कभी रैक लगने तो कभी दूसरे जिले से खाद की खेप बुलाने का भरोसा दिलाकर स्थिति संभाल रहे हैं। इसके बावजूद कई स्थानों पर सब्र का बांध टूटने पर किसान प्रशासन और अपने ही साथियों से झगड़ भी रहे हैं। निवाड़ी, अशोकनगर, शिवपुरी जिलों में किसानों और अफसरों की झड़प के मामले सामने आ चुके हैं।
हर बार की तरह अफसरों की सफाई
प्रदेश के कृषि अधिकारी खाद के संकट पर सरकार की साख बचाने में जुटे हैं। कृषि सचिव एम.सेल्वेन्द्रम का कहना है सरकार पूरी कोशिश कर रही है किसानों तक पर्याप्त खाद पहुंचे। खाद पर्याप्त मात्रा में आ रहा है जल्द ही रैक लगने से स्थिति सामान्य हो जाएगी। आने वाले महीनों में ऐसा संकट खड़ा न हो उसके लिए नई कार्ययोजना तैयार करेंगे। वहीं दूसरे अधिकारियों का कहना है खाद दूसरे देशों से आयात किया जाता है। कुछ देशों में चल रहे विवाद भी खाद पहुंचने की राह में बाधा बने हैं। अधिकारियों की सफाई नई नहीं है। हर बार खरीफ रबी सीजन की बोवनी से पहले खाद का संकट शुरू होता है और अफसरों की बयानबाजी का दौर चल पड़ता है। किसानी का रकबा और खाद की डिमांड पहले से कृषि विभाग के पास दर्ज होती है इसके बावजूद समय से पहले खाद क्यों उपलब्ध नहीं कराई जाती।
फैक्ट फाइल
खरीफ सीजन की मांग 32 लाख मीट्रिक टन
रबी सीजन में डिमांड 41 लाख मीट्रिक टन
सीजन में नवम्बर माह तक मिला 25 लाख टन
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