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गांधी मेडिकल कॉलेज भोपाल में नियुक्ति प्रक्रिया में भारी गड़बड़ी उजागर हुई है। पूर्व डीन सलील भार्गव पर फर्जी हलफनामा देने का आरोप है। कोर्ट ने रिटायरमेंट की उम्र को देखते हुए एफआईआर की जगह 2 लाख रुपए का जुर्माना लगाया है।
भोपाल के मनोहर सिंह को गांधी मेडिकल कॉलेज में अस्पताल प्रबंधक और सहायक प्रबंधक की नौकरी से अयोग्य बताते हुए वंचित कर दिया गया था। अब जबलपुर हाईकोर्ट में जस्टिस विवेक जैन ने कॉलेज की भर्ती प्रक्रिया को अवैध मानते हुए, मनोहर की उम्मीदवारी रद्द करने को गैरकानूनी ठहराया और संबंधित नियुक्तियां रद्द कर दी हैं। इसके साथ ही तत्कालीन डीन डॉ. सलील भार्गव पर कोर्ट में फर्जी हलफनामा दाखिल करने पर दो लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया गया है।
गांधी मेडिकल कॉलेज की भर्तियों से जुड़ा है मामला
मनोहर सिंह ने भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज में अस्पताल प्रबंधक, सहायक प्रबंधक और डिप्टी रजिस्ट्रार के पदों पर आवेदन किया था। कॉलेज ने उन्हें पहले डिप्टी रजिस्ट्रार के लिए तो पात्र माना, लेकिन अस्पताल प्रबंधक और सहायक प्रबंधक के लिए अयोग्य घोषित कर दिया।
कारण बताया गया कि उनकी डिग्री मास्टर ऑफ हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन नहीं है, बल्कि सामान्य एमबीए है। जबकि मनोहर ने पंजाब टेक्निकल यूनिवर्सिटी, जालंधर से एमबीए (हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन) की पढ़ाई की थी और इसका उल्लेख उनकी मार्कशीट में साफ-साफ दर्ज था। हद तो यह थी कि जिस डिप्टी रजिस्ट्रार पद के लिए उन्हें उपयुक्त बताया गया था, उसके लिए भी उन्हें इंटरव्यू कॉल नहीं आया।
डीन ने कहा कि सिर्फ डिग्री देखी, मार्कशीट नहीं
पूर्व डीन भार्गव और कॉलेज की ओर से कोर्ट में तर्क दिया गया कि आवेदन में सिर्फ डिग्री की प्रति मांगी गई थी, इसलिए उन्होंने केवल डिग्री को देखा और उसमें हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन शब्द नहीं होने के कारण मनोहर को अयोग्य मान लिया। लेकिन कोर्ट ने पाया कि आवेदन पत्र में साफ लिखा था कि सभी मार्कशीट की सत्यापित प्रतियां भी देना जरूरी है।
मनोहर ने सभी जरूरी दस्तावेज लगाए थे। इसमें उनकी विशेषज्ञता स्पष्ट लिखी हुई थी। कोर्ट ने यह भी माना कि अगर उप पंजीयक के लिए मनोहर को अस्थायी रूप से पात्र माना गया, तो वही तर्क बाकी दोनों पदों पर लागू क्यों नहीं हुआ और डिप्टी रजिस्ट्रार पद के लिए उसे इंटरव्यू के लिए क्यों नहीं बुलाया गया। लेकिन इसका कोई संतोषजनक जवाब कॉलेज के पास नहीं था।
गांधी मेडिकल कॉलेज भोपाल में भर्ती घोटाला मामले पर एक नजर...
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डीन ने कोर्ट को दिया झूठा हलफनामा
कोर्ट ने गांधी मेडिकल कॉलेज के तत्कालीन डीन डॉ. सलील भार्गव पर झूठा हलफनामा देने का गंभीर आरोप लगाया। उन्होंने यह दावा किया कि मनोहर का ओबीसी सर्टिफिकेट डिजिटल नहीं था, जबकि कोर्ट ने रिकॉर्ड से पाया कि वह बाकायदा डिजिटल था। इसमें क्यूआर कोड है और वेबसाइट से भी इसका वेरिफिकेशन सही पाया गया है।
रिटायरमेंट की उम्र, इसलिए नहीं कराई एफआईआर – हाईकोर्ट
कोर्ट ने कहा कि तत्कालीन डीन सलील भार्गव ने कोर्ट को गुमराह किया है। कोर्ट की मंशा तो यह थी कि उनके खिलाफ बीएनएस की धारा 227 के तहत एफआईआर दर्ज कराई जाए। लेकिन उनकी उम्र 64 वर्ष है और वह रिटायरमेंट के करीब हैं, जिसे देखते हुए क्रिमिनल केस दर्ज न कर उन्हें 2 लाख रुपए का जुर्माना भरने का आदेश दिया गया है। यह जुर्माना इन मदों में भरना होगा:
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मध्य प्रदेश पुलिस कल्याण कोष में 80 हजार रुपए
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राष्ट्रीय रक्षा कोष में 40 हजार रुपए
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सशस्त्र बल झंडा दिवस कोष में 40 हजार रुपए
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राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में 20 हजार रुपए
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हाईकोर्ट बार एसोसिएशन को 20 हजार रुपए
यदि यह जुर्माना राशि 90 दिनों में जमा नहीं होती, तो पुलिस कमिश्नर, भोपाल को डॉ. सलील भार्गव के खिलाफ उचित कानूनी कार्रवाई करने का आदेश भी कोर्ट ने दिया है।
नए सिरे से बनेगी मेरिट लिस्ट, 3 महीने में नियुक्तियां
कोर्ट ने अंतिम आदेश देते हुए मनोहर सिंह की उम्मीदवारी को रद्द करने को गैरकानूनी घोषित कर दिया है। साथ ही वर्तमान में नियुक्त प्रतिवादी नितिन अग्रवाल, महेंद्र कुमार सोनी और रविंद्र कुशवाहा की नियुक्तियाँ रद्द कर दी हैं।
याचिकाकर्ता मनोहर सिंह का नए सिरे से इंटरव्यू लिया जाएगा और नई मेरिट लिस्ट बनाकर योग्य व्यक्तियों को नियुक्ति दी जाएगी और सभी पदों के लिए नए नियुक्ति आदेश जारी होंगे। कोर्ट ने आदेश में कहा कि अगर तीन महीने के भीतर नई प्रक्रिया पूरी कर नियुक्ति आदेश जारी नहीं होते, तो हॉस्पिटल मैनेजर और असिस्टेंट मैनेजर के पद पर पदस्थ वर्तमान प्रतिवादी कर्मचारियों को अपने पद छोड़ने होंगे।
इस मामले ने एक ओर जहां भर्ती प्रक्रिया में मनमानी को उजागर किया, वहीं दूसरी ओर यह भी दिखाया कि कैसे कभी-कभी योग्य उम्मीदवारों को गलत तरीके से बाहर कर दिया जाता है। कोर्ट ने भी कहा है कि नियुक्ति आदेशों के पीछे दुर्भावना झलकती है और कॉलेज ने पूरे मामले में मनमानी की।
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