गुर्जर समाज का फरमान, महिलाएं न करें सड़क पर डांस, DJ बजाया तो लगेगा 11 हजार का जुर्माना
हरदा जिले में गुर्जर समाज ने शादी-विवाह और अन्य आयोजनों में डीजे, सड़क पर महिलाओं के डांस और शराब के सेवन पर प्रतिबंध लगा दिया है। नियम तोड़ने पर 11 हजार रुपए जुर्माना और समाज से छह महीने का बहिष्कार तय किया गया है।
मध्य प्रदेश के हरदा जिले में गुर्जर समाज ने अपने समुदाय के विवाह और मंगल अवसरों के लिए सख्त सामाजिक फरमान जारी किया है। अब किसी भी शादी समारोह में डीजे बजाने (DJ Ban) पर पूरी तरह प्रतिबंध रहेगा। नियम तोड़ने पर संबंधित व्यक्ति को 11 हजार रुपये जुर्माना देना होगा और न चुकाने की स्थिति में छह महीने का सामाजिक बहिष्कार भुगतना होगा। डीजे पर प्रतिबंध के अलावा समाज ने कई और नियम भी बनाए हैं।
जुर्माना नहीं चुकाया तो होगा समाज से बहिष्कार
गुर्जर समाज (Gurjar) की यह सख्ती समाजिक अनुशासन बनाए रखने की दिशा में उठाया गया कदम बताया गया है। यदि कोई व्यक्ति डीजे बजाता है और जुर्माना नहीं देता है, तो उस परिवार को छह महीने तक समाजिक कार्यक्रमों से बाहर रखा जाएगा। इस अवधि में समाज के लोग न तो उसके यहां आएंगे और न ही उसे अपने समारोह में आमंत्रित करेंगे।
महिलाओं के सड़क पर डांस पर रोक
समाज ने विवाह या अन्य आयोजनों में महिलाओं के सड़क पर डांस करने पर भी रोक लगाई है। समाज के लोगों का कहना है कि यह निर्णय महिलाओं की गरिमा और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। हालांकि महिलाएं घर या निजी परिसर में डांस करती हैं तो इसपर कोई पाबंदी नहीं रहेगी।
शराब पर भी लगी रोक
गुर्जर समाज ने शादी-विवाह के मौकों पर शराब सेवन पर भी प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया है। साथ ही समाज की कार्यकारिणी से एकत्र राशि को शिक्षा के उत्थान में खर्च करने का ऐलान किया गया है। इस निर्णय को सभी सदस्यों की सहमति से पारित किया गया है और इसे तत्काल प्रभाव से लागू कर दिया गया है।
हरदा में हुई सभा में लिया गया निर्णय
हरदा के गुर्जर मंगल भवन में आयोजित भुआणा प्रांतीय गुर्जर सभा की पहली कार्यकारिणी बैठक में यह निर्णय लिया गया। अध्यक्ष हरगोविंद मोकाती की अगुआई में डॉ. रामकृष्ण दुगाया सहित अन्य पदाधिकारियों ने शपथ ली और समाजहित में निर्णयों को अमल में लाने की बात कही।
गुर्जर समाज के इस निर्णय में खास बात यह रही कि महिलाओं के सड़क पर नाचने पर रोक तो लगाई गई, लेकिन पुरुषों के डांस पर कोई चर्चा नहीं हुई। यानी 'संस्कृति' की रक्षा केवल महिलाओं के कंधों पर ही टिकी है। क्या शादी-ब्याह में नाचने के नाम पर सिर्फ महिलाओं की मर्यादा प्रभावित होती है? समाज की इस एकतरफा सोच पर सवाल उठना लाजमी है।