जबलपुर हाईकोर्ट: कोई रोया, कोई गिड़गिड़ाया और किसी ने पारित करवा लिए आदेश

भोपाल के मुस्तफा मेमोरियल हायर सेकेंडरी स्कूल की मान्यता रिन्यू न किए जाने को लेकर घनश्याम दास शर्मा ने कोर्ट में याचिका दायर की थी। इस मामले में उनकी ओर से पैरवी करने के लिए उनके बेटे अंकुश शर्मा कोर्ट के समक्ष आए थे।

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Neel Tiwari
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Madhya Pradesh High Court Jabalpur
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हाईकोर्ट की जबलपुर मुख्य पीठ में वकीलों के कोर्ट में उपस्थित न होने के कारण याचिकाकर्ता खुद जजों से निवेदन और जिरह करते हुए नजर आए। ऐसे में कुछ याचिकाकर्ता भावनाओं में बहकर जजों के सामने रोने लगे तो कुछ ने अपने मामले के तथ्य बताकर अपने पक्ष में आदेश भी पारित करवा लिए।

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पहला मामला

हिनोतिया भोपाल के मुस्तफा मेमोरियल हायर सेकेंडरी स्कूल की मान्यता रिन्यू न किए जाने को लेकर घनश्याम दास शर्मा ने कोर्ट में याचिका दायर की थी। इस मामले में उनकी ओर से पैरवी करने के लिए उनके बेटे अंकुश शर्मा कोर्ट के समक्ष आए थे। अंकित ने कोर्ट को बताया कि उनके स्कूल की मान्यता जुलाई 2024 तक थी। जिसके बाद उनकी मान्यता इस कारण से रिन्यू नहीं की जा रही है कि उनके तीन मंजिला स्कूल में ग्राउंड फ्लोर पर प्राथमिक कक्षाएं भी लगती हैं। उन्होंने कोर्ट के सामने यह गुहार लगाई कि स्कूल में पढ़ रहे बच्चों का भविष्य अधर में है। जिस पर कोर्ट ने उनसे पूछा कि फिर आपने कोर्ट आने में इतनी देरी क्यों की? अंकुश ने कोर्ट को बताया कि उन्होंने एक याचिका कोर्ट में दायर की हुई है, लेकिन अब जल्द ही परीक्षाएं शुरू होने वाली हैं।

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कोर्ट ने पहले इस मामले को अगली तारीख दे दी लेकिन अंकुश जस्टिस विवेक अग्रवाल के सामने प्लीज- प्लीज कहते हुए डटे रहे। आमतौर पर किसी मामले में अगली तारीख दिए जाने के बाद अगले मामले की जब पुकार हो जाती है तो अधिवक्ता भी जज के सामने से हट जाते हैं। पर कोर्ट के नियमों की जानकारी न होने के साथ ही इस मामले से अंकुश के खुद जुड़ा हुआ होने के कारण वह लगातार कोर्ट से गुहार लगाते रहे और कई बार प्लीज बोलने के बाद आखिरकार कोर्ट ने यह आदेश पारित कर दिया कि इस स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे परीक्षाएं देंगे। हालांकि, इसके बाद उन्हें नियमित छात्र माना जाएगा या प्राइवेट यह इस याचिका में आने वाले फैसले के अधीन होगा।

दूसरा मामला कटनी जिले का

कटनी की रहने वाली अभया सिंह गौंड ने पब्लिक सर्विस कमिशन की परीक्षा 2018 में पास की थी। मेरिट लिस्ट में होने के बाद भी उन्हें जब नियुक्ति नहीं मिली तो उन्होंने कोर्ट की शरण ली थी। पब्लिक सर्विस कमीशन के द्वारा साल 2018 में सिफारिश दिए जाने के बाद भी अभया को नियुक्ति न दिए जाने पर कोर्ट ने पब्लिक सर्विस कमीशन और सरकार को फटकार लगाते हुए 30 दिनों के भीतर नियुक्ति आदेश जारी करने के निर्देश दिए थे। इसके साथ ही 1 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया था। यह जुर्माना याचिकाकर्ता अभया के खाते में दिया जाना था। लेकिन इस आदेश के पालन में नियुक्ति देने की बजाय सरकार ने इस आदेश पर एक रिट याचिका लगा दी। इसके बाद आज जब अभया कोर्ट के समक्ष पेश हुई तो वह फूट-फूट कर रोने लगीं। उन्होंने कोर्ट को बताया कि मेरिट लिस्ट में आने के बाद भी वह 6 साल से प्रताड़ित हो रही हैं। चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत की डिविजनल बेंच के द्वारा नोटिस जारी करते हुए अब सरकार से जवाब मांगा है।

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तीसरा मामला: बुरहानपुर में अवैध पेड़ों की कटाई का

भोपाल की सोशल एक्टिविस्ट माधुरी कृष्णा स्वामी ने बुरहानपुर में हो रही अवैध पेड़ों की कटाई की जब शिकायत की तो बुरहानपुर कलेक्टर के द्वारा राज्य सुरक्षा अधिनियम के तहत उनके ऊपर कार्यवाही कर दी गई। कोर्ट के द्वारा इस मामले में हुई अन्य सुनवाई के बाद उनके खिलाफ जारी आदेश को तो रद्द कर दिया गया है पर उन्होंने आज कोर्ट के समक्ष आकर बताया कि उनके खिलाफ 16 केस रजिस्टर्ड किए गए हैं जो कभी कोर्ट भी नहीं पहुंचे और इनमें से चार केस ऐसे हैं जिनमें उनका नाम ही नहीं है और दो क्रिमिनल केसेस (केस) ऐसे हैं जिनका इन्वेस्टिगेशन 2 सालों से चल रहा है। इन क्रिमिनल केस में उनके ऊपर सीआरपीसी 107 और 116 की कार्यवाही की गई है। इस मामले में कोर्ट ने याचिकाकर्ता को अपने सभी दस्तावेज 7 दिनों में सबमिट करने के लिए आदेशित किया है और मामले की अगली सुनवाई 5 मार्च को तय की है।

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चौथा मामला: महात्मा गांधी चित्रकूट यूनिवर्सिटी का

चित्रकूट सतना की निवासी अंजली सोनी महात्मा गांधी चित्रकूट यूनिवर्सिटी में पढ़ रही थी। उन्होंने बीएससी बायो में मेरिट में स्थान प्राप्त किया इसके बावजूद यूनिवर्सिटी के द्वारा पदक दिए जाने के लिए किसी और का नाम भेज दिया गया। अंजलि ने यूनिवर्सिटी को इस मामले में पक्षकार बनाया था। उनके अधिवक्ता के कोर्ट में न आने के बाद भी अंजलि ने दमदार ढंग से कोर्ट के सामने अपना पक्ष रखा और कोर्ट को बताया कि यूनिवर्सिटी में प्रतिवेदन दिए जाने के बाद भी उनका नाम नहीं भेजा जा रहा है। जिसके बाद जस्टिस विवेक अग्रवाल ने यह आदेश दिया कि 7 दिनों में अंजलि अपना अभ्यावेदन प्रिंसिपल सचिव डिपार्टमेंट ऑफ हायर एजुकेशन को देंगी और प्रिंसिपल सचिव को इस अभ्यावेदन में 30 दिनों के अंदर निर्णय लेने के लिए कोर्ट ने आदेश दिया है।

इसी तरह अन्य आपराधिक मामलों में जमानत की गुहार लगाने के लिए आरोपियों की ओर से कहीं माता-पिता तो कहीं उनकी पत्नी कोर्ट के समक्ष पेश हुई। अपनों को बेगुनाह बताते हुए कुछ लोग कोर्ट के समक्ष रोने लगे तो कुछ ने बीमारी की दुहाई का हवाला भी दी। इन सभी को कोर्ट के द्वारा यह समझाया गया कि दूसरा पक्ष सुने बिना कोर्ट में न्याय नहीं होता है। इसलिए इन्हें आगे की तारीख दी गई है और यह बताया गया है कि दूसरे पक्ष को सुनने के बाद इस जमानत आवेदन पर विचार हो सकेगा।

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