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पूरी खबर को 5 पॉइंट में पढ़ें-
- MP हाई कोर्ट में 53 में से 11 जजों के पद वर्तमान में खाली पड़े हैं।
- कुल 4.82 लाख केस पेंडिंग हैं, जिनमें 2.86 लाख सिविल मामले हैं।
- जबलपुर में 3 हजार जमानत अर्जियां सुनवाई के इंतजार में है।
- बार काउंसिल ने CJI और विधि मंत्रालय को पद भरने के लिए पत्र लिखा है।
- 2013 के बाद से जजों के स्वीकृत पदों में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई।
16 जज की कुर्सियां खाली
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट कोर्ट के गलियारों में इन दिनों एक नई चिंता चर्चा का विषय बनी हुई है। साल 2026 में पांच वरिष्ठ जज रिटायरमेंट लेने वाले हैं। वर्तमान में हाई कोर्ट में जजों के 53 पद स्वीकृत है। इनमें से 11 पहले से ही खाली पड़े हैं। असली चुनौती तब खड़ी होगी जब अगले साल 5 जज एक साथ रिटायर हो जाएंगे।
इस रिटायरमेंट के बाद हाई कोर्ट में जज की संख्या 42 से घटकर सिर्फ 37 रह जाएगी। इसका सीधा मतलब यह है कि प्रदेश की सबसे बड़ी अदालत में जजों की 16 कुर्सियां खाली हो जाएंगी। यह केवल एक आंकड़ा नहीं है, बल्कि उन लाखों लोगों के लिए बुरी खबर है जो सालों से न्याय का इंतजार कर रहे हैं।
जजों की भारी कमी
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की मुख्यपीठ जबलपुर,इंदौर और ग्वालियर खंडपीठ में जजों की कमी नई बात नहीं है। 2025 की शुरुआत में कुछ नियुक्तियों से राहत मिली थी। जजों की संख्या 44 तक पहुंची थी, लेकिन समय के साथ यह फिर कम हो गई।
चेयरमैन राधेलाल गुप्ता और अधिवक्ताओं के अनुसार नामों पर जल्द मुहर लगना जरूरी है। वरना कॉलेजियम द्वारा नियुक्तियों में देरी से स्थिति बेकाबू हो जाएगी। रिक्त पदों के बढ़ने से जजों पर काम का बोझ बढ़ेगा। इससे मुकदमों की सुनवाई में और भी ज्यादा देरी होगी।
4.82 लाख मुकदमों का बोझ
जजों की संख्या घटेगी और रिक्त पद 16 हो जाएंगे। तब सबसे बड़ा सवाल उन 4 लाख 82 हजार 627 लंबित मुकदमों का होगा जो धूल फांक रहे हैं। इनमें 2.86 लाख सिविल और 1.96 लाख क्रिमिनल मामले शामिल हैं।
आंकड़े बताते हैं कि-
| 25 साल पुराने केस | 2 हजार 507 मामले अभी भी फैसले का इंतजार कर रहे हैं। |
| जमानत अर्जियां | अकेले जबलपुर में 3 हजार बेल एप्लिकेशन पेंडिंग हैं क्योंकि उन्हें सुनवाई के लिए समय ही नहीं मिल पा रहा। |
| धीमी रफ्तार | जजों की कमी के कारण 11 से 25 साल पुराने करीब 60 हजार केसों का निपटारा कछुआ गति से हो रहा है। |
53 पद भी पड़ रहे कम
पूर्व अध्यक्ष संजय वर्मा के अनुसार जजों के पद 2013 से नहीं बढ़े। वर्तमान में स्वीकृत पदों की संख्या केवल 53 ही है। पूर्व चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत ने केंद्र को प्रस्ताव भेजा था। इसमें उन्होंने प्रदेश हेतु 85 जजों की जरूरत बताई।
वाइस चेयरमैन आरके सिंह सेनी ने चेतावनी दी है कि यदि पदों को भरकर संख्या 70 के पार नहीं ले जाई गई, तो पुराने मुकदमों को निपटाने में आधी सदी यानी 50 साल लग जाएंगे। इसका कारण यह है कि एक जज की भी अपनी कार्यक्षमता होती है और वह चाहकर भी एक महीने में मुकदमों के इस अंबार को अकेले कम नहीं कर सकता।
पदोन्नति और नई नियुक्तियां ही एकमात्र रास्ता
इस संकट से बचने के लिए अब केवल दो ही रास्ते नजर आते हैं। पहला यह कि हाई कोर्ट कॉलेजियम जल्द से जल्द नए नामों की सिफारिश करे। केंद्र सरकार उन्हें तत्काल मंजूरी दे।
दूसरा, उच्च न्यायिक सेवा से काबिल जजों की हाई कोर्ट जज के रूप में पदोन्नति का रास्ता साफ किया जाए। ऐसा नहीं हुआ, तो 2026 में 16 रिक्त पदों के साथ मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में न्याय की रफ्तार और भी सुस्त हो जाएगी।
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