हाई कोर्ट : शनिवार को मुकदमों की सुनवाई पर एडवोकेट अलग-थलग, 5 के बाद तय होगी रणनीति

राजस्थान हाई कोर्ट में शनिवार को काम करने पर एडवोकेट की अलग-अलग राय है। वे पांच जनवरी के बाद अपनी रणनीति तय कर बताने के बारे में विचार कर रहे हैं। गौरतलब है कि हाई कोर्ट 2026 में हर महीने दो शनिवार मुकदमों की सुनवाई करने पर विचार कर रहा है।

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Mukesh Sharma
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Photograph: (the sootr)

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Jaipur. राजस्थान हाई कोर्ट में नए साल में हर महीने के दो शनिवार को मुकदमों की सुनवाई करने के फैसले का एडवोकेट ने विरोध किया है। हालांकि फिलहाल हाई कोर्ट ने अपने फैसले से पीछे हटने से इनकार कर दिया है और अगले साल के कैलेंडर में कुल 17 शनिवार को कार्य दिवस घोषित कर दिया है। 

फुल कोर्ट में लिया फैसला

राजस्थान हाई कोर्ट ने 14 दिसंबर को फुल कोर्ट की बैठक में साल 2026 में हर महीने दो शनिवार को मुकदमों की सुनवाई करने का फैसला लिया ​था। अभी तक हाई कोर्ट सोमवार से शुक्रवार को ही मुकदमों की सुनवाई करता है। शनिवार को ऑफिस तो खुलता है, लेकिन मुकदमों की सुनवाई नहीं होती। 

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बार ने कहा पनर्विचार हो

हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के नवनिर्वाचित अध्यक्ष राजीव सोगरवाल व महासचिव दीपेश शर्मा ने एक्टिंग चीफ जस्टिस संजीव प्रकाश शर्मा से मुलाकात की थी। बार ने उन्हें लिखित में प्रतिवेदन देकर शनिवार को कार्य दिवस घोषित करने के फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया था।

बार का कहना था कि शनिवार को मुकदमों की सुनवाई करने से लंबित मुकदमों की समस्या का समाधान संभव नहीं है। हालांकि एक्टिंग सीजे ने फिलहाल फैसले से पीछे हटने से इनकार कर दिया है।

अधिवक्ता ही नहीं, जज भी होंगे परेशान

शनिवार को भी मुकदमों की सुनवाई करने के फैसले पर हाई कोर्ट के अधिकांश एडवोकेट सहमत नहीं हैं। सीनियर एडवोकेट अरविंद कुमार गुप्ता का कहना है कि शनिवार को काम करना सही नहीं है। इससे न केवल एडवोकेट, कोर्ट स्टाफ, बल्कि जजों की सेहत पर भी विपरीत प्रभाव होगा।

मुकदमों का निपटारा सामान्य बात नहीं है। किसी विवाद को संवैधानिक व कानूनी आधार पर सुलझाने में एडवोकेट्स और जजों को बहुत पढ़ना और समझना व समझाना पड़ता है। इस प्रक्रिया में समय लगता है। 

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हर दिन 300 से 400 केस

गुप्ता ने कहा कि हर जज की कोर्ट में हर दिन 300 से 400 केस लगते हैं। ऐसे में जज को बहुत तेजी से काम करना होता है। शनिवार को कोर्ट नहीं लगने के बावजूद जज अपने घरों पर फैसले लिखवाते हैं। रविवार को उन्हें सोमवार को लगने वाले मुकदमों की फाइल पढ़नी पड़ती है।

यही हाल एडवोकेट्स का रहता है। उन्हें भी शनिवार और रविवार को अपने क्लाइंट से मिलना व मुकदमों की तैयारियां करनी होती है। स्टाफ को भी बहुत काम करना होता है। अनेक बार स्टाफ देर रात तक रुककर काम करता है। ऐसे में शनिवार को मुकदमों की सुनवाई करना उचित नहीं होगा। 

काम करना उचित नहीं

पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता जगमोहन सक्सेना के अनुसार, मुद्दा सिर्फ एडवोकेट्स की इच्छा का नहीं है, बल्कि जज और कोर्ट स्टाफ से जुड़ा हुआ भी है। शनिवार को मुकदमों की सुनवाई नहीं करने के बावजूद जज घर पर शनिवार और रविवार दोनों दिन काम करते हैं। एडवोकेट को भी मुकदमों से संबंधित तैयारी करनी होती है। क्लाइंट्स से भी मुलाकात इन्हीं दो दिन में होती है। एडवोकेट हों या जज या स्टाफ, सभी का पारिवारिक व सामाजिक जीवन भी होता है। इसलिए शनिवार को काम करना उचित नहीं है।

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हाई कोर्ट में अवकाश कम होने चाहिए

एडवोकेट लोकेश शर्मा का कहना है कि हाई कोर्ट में शनिवार को मुकदमों की सुनवाई करने का फैसला सही है। हमें याद रखना चाहिए कि ट्रायल कोर्ट भी तो शनिवार को काम करते हैं और उन्हें हाई कोर्ट के मुकाबले अवकाश भी कम मिलते हैं, जबकि उनको तो मुकदमों की ट्रायल करनी पड़ती है, जो कि बेहद थकाने वाला काम है। इसके बावजूद वह शनिवार को काम करते हैं। 

सर्दियों और ​गर्मियों के अवकाश बंद हों

इसके अतिक्ति अब तो हाई कोर्ट को सर्दियों और ​गर्मियों के अवकाश भी बंद करने चाहिए। गर्मियों में सुबह 8 बजे से एक बजे तक कोर्ट चलाने की परंपरा भी अब बंद होनी चाहिए। अब तो हाई कोर्ट में कोर्ट रूम व कॉरिडोर तक एसी हैं। एडवोकेट्स के चैंबर में एसी लगे हैं। ऐसे में गर्मियों के अवकाश व सुबह की कोर्ट करने का कोई औचित्य नहीं है। सर्दियों के अवकाश की तो कोई जरूरत ही नहीं है, क्योंकि जयपुर व जोधपुर में ऐसी सर्दी नहीं होती कि काम ही नहीं हो सके।  

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अवधि घटाकर 15 दिन कर दें

एडवोकेट अश्विनी चौबीसा के अनुसार, शनिवार को मुकदमों की सुनवाई करने से जनता का फायदा होगा। हालांकि जजों की संख्या बढ़ाए बिना लंबित मुकदमों का ​उचित निपटारा होना संभव नहीं है। फिर भी कार्य दिवस बढ़ने से फायदा होगा।

अब तो समय आ गया है कि कम से कम हाई कोर्ट में तो सुबह का समय नहीं किया जाए। चौबीसा ने सर्दियों के अवकाश को भी व्यर्थ बताते कहा कि इसकी कोई जरूरत नहीं है, क्यों​कि राजस्थान में ऐसी सर्दी नहीं पड़ती की काम करना ही मुश्किल हो जाए। गर्मियों का अवकाश पूरी तरह​ बंद ना हो, तो इसकी अवधि घटाकर 15 दिन कर देनी चाहिए। 

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विचार-विमर्श कर निर्णय लेंगे

स्टेट बार एसोसिएशन के नवनिर्वाचित महासचिव दीपेश शर्मा ने कहा कि बार ने एक्टिंग सीजे से मुलाकात कर उनसे शनिवार को काम करने का फैसला वापस लेने का आग्रह किया था, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया है। इस संबंध में अब आगे क्या करना है, इस पर पांच जनवरी को कोर्ट खुलने के बाद विचार-विमर्श कर निर्णय लिया जाएगा।

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