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Photograph: (THESOOTR)
मध्यप्रदेश की उच्च शिक्षा व्यवस्था इस वक्त गहरे संकट से गुजर रही है। मंत्री से लेकर संत्री तक सब सिर्फ रस्म अदायगी में व्यस्त हैं, जबकि कॉलेजों में शिक्षकों की भारी कमी है। प्रदेश के 571 कॉलेजों में केवल 4 प्राचार्य कार्यरत हैं और हजारों प्राचार्य पद रिक्त पड़े हैं।
भर्ती प्रक्रिया की सुस्ती और प्रशासनिक लापरवाही ने शिक्षा की गुणवत्ता को बुरी तरह प्रभावित किया है। आज स्थिति यह है कि कई कॉलेजों में पढ़ाई कॉन्ट्रैक्ट शिक्षकों के भरोसे चल रही है। शिक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक अगर यही हाल रहा, तो आने वाले समय में युवाओं का भविष्य गंभीर संकट में पड़ सकता है।
उच्च शिक्षा विभाग में रस्म अदायगी का माहौल
मध्यप्रदेश में युवाओं की रीढ़ माने जाने वाले उच्च शिक्षा विभाग में मंत्री से लेकर संत्री तक सिर्फ औपचारिकता निभाने में जुटे हुए हैं। इसका असर प्रदेश की शिक्षा प्रणाली पर साफ दिख रहा है। शिक्षा का स्तर दिन-ब-दिन गिरता जा रहा है। प्रदेश में कुल 571 महाविद्यालय (Colleges) हैं, जिनमें से सिर्फ 4 कॉलेजों में नियमित प्राचार्य (Principals) कार्यरत हैं। बाकी 567 कॉलेजों में प्राचार्य का पद खाली है।
यही नहीं, सहायक प्राध्यापकों (Assistant Professors) और प्राध्यापकों (Professors) की स्थिति भी बेहद खराब है। करीब 5,000 से ज्यादा पद खाली पड़े हैं। इस वजह से प्रदेश के कई कॉलेजों में योग्य शिक्षकों का अभाव है और छात्रों को कॉन्ट्रैक्ट (Contract) आधार पर शिक्षा दी जा रही है। नतीजतन, शिक्षा की गुणवत्ता लगातार गिरती जा रही है।
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मंत्री इंदर सिंह परमार ने माना- 75% पद खाली
प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने विधानसभा में एक सवाल के जवाब में जानकारी दी कि प्रदेश में सहायक प्राध्यापकों के 1069 स्वीकृत पदों में से केवल 236 पद भरे हुए हैं। इसका मतलब है कि लगभग 75 फीसदी पद खाली हैं। यह आंकड़ा खुद सरकार की निष्क्रियता को उजागर करता है।
सिर्फ चार कॉलेजों में नियमित प्राचार्य
MP उच्च शिक्षा विभाग का स्तर कितना कमजोर हो चुका है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 571 कॉलेजों में से केवल चार कॉलेजों में नियमित प्राचार्य कार्यरत हैं। बाकी सभी कॉलेज प्रभारियों के भरोसे चल रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि शिक्षा की गुणवत्ता के लिए आखिर जिम्मेदार कौन है?
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नियमित प्राचार्य वाले ये चार कॉलेज हैं...
- कन्या महाविद्यालय, होशंगाबाद
- शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बीना
- कन्या महाविद्यालय, विदिशा
- झलकारी बाई महाविद्यालय, ग्वालियर
कछुआ चाल से चल रही है भर्ती प्रक्रिया
प्रदेश में 5,000 से ज्यादा पद खाली हैं, लेकिन भर्ती की रफ्तार बेहद धीमी है। पिछले तीन वर्षों में कुल 16,289 पदों में से केवल 3,599 पदों पर ही भर्ती पूरी हुई। यहां तक कि साल 2022 में 3,715 रिक्त पदों में से सिर्फ 1,669 पदों पर ही भर्ती हुई। वहीं, 2024 में 7,248 रिक्त पदों में से सिर्फ 1,930 पर भर्ती की कार्यवाही पूरी की गई। यह स्पष्ट करता है कि भर्ती प्रक्रिया में लापरवाही और प्रशासनिक सुस्ती जारी है।
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सहायक प्राध्यापक के पदों की स्थिति चिंताजनक
उच्च शिक्षा विभाग में पद तो स्वीकृत कर दिए गए हैं, लेकिन सहायक प्राध्यापक भर्ती (assistant professor recruitment) की प्रक्रिया लगातार नजरअंदाज की जा रही है।
साल दर साल खाली पोस्ट की स्थिति इस प्रकार है...
वर्ष | स्वीकृत पद | पदस्थ | रिक्त |
---|---|---|---|
2020 | 8600 | 6500 | 2562 |
2021 | 9633 | 6273 | 3360 |
2022 | 9988 | 6273 | 3715 |
2023 | 11078 | 5788 | 5290 |
2024 | 12895 | 5611 | 7284 |
हर साल रिक्त पदों की संख्या बढ़ती जा रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सरकार को शिक्षा की परवाह है?
डीपीसी नहीं होने से प्राचार्य पदोन्नति अटकी
विभाग की कार्यशैली इतनी धीमी है कि 2009-10 से अब तक प्रोफेसरों के प्रमोशन के लिए डीपीसी (Departmental Promotion Committee) की बैठक ही नहीं हुई। हालांकि, प्रोफेसरों की वरिष्ठता सूची (Seniority List) तैयार की गई थी, लेकिन सिस्टम के “शह-मात” खेल में मामला उलझ गया।
सीधी भर्ती और पदोन्नति दोनों तरह के प्रोफेसर विभाग में कार्यरत हैं, लेकिन समिति ने कहा कि दोनों की वरिष्ठता सूची अलग-अलग बनाई जाए। विशेषज्ञों के अनुसार, ऐसा करने का GAD (सामान्य प्रशासन विभाग) के नियमों में कोई प्रावधान नहीं है।
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वरिष्ठता सूची में हो रही गड़बड़ी
वरिष्ठता सूची बनाने के लिए नियम और गाइडलाइन स्पष्ट हैं, लेकिन फिर भी उसमें गड़बड़ी की जा रही है। इससे न सिर्फ प्रोफेसरों का करियर प्रभावित हो रहा है, बल्कि युवाओं का भविष्य भी खतरे में है। करीब एक साल पहले इस मामले में एक समिति बनाई गई थी, लेकिन अब तक कोई नतीजा नहीं निकला।
कोर्ट के आदेशों के बाद भी सुधार नहीं
न्यायालय ने भी अपने फैसले में कहा है कि प्राध्यापकों की नियुक्ति दो माध्यमों से होती है- सीधी भर्ती और पदोन्नति। ऐसे में दोनों की संयुक्त वरिष्ठता सूची बननी चाहिए, लेकिन शासन स्तर पर बनी समिति भी सिर्फ औपचारिकता निभाने तक सीमित रह गई। इस वजह से आज भी प्रदेश के कई कॉलेजों में प्राचार्य की नियुक्ति नहीं हो पा रही है।
रिक्त पदों पर भर्ती की प्रक्रिया जारी है
इस पूरे मामले पर उच्च शिक्षा विभाग के कमिश्नर प्रबल सिपाहा का कहना है कि शासन स्तर से जो निर्देश मिलेंगे, उनका पालन करते हुए आगे की कार्रवाई की जाएगी। रिक्त पदों पर भर्ती की प्रक्रिया लगातार चल रही है। हालांकि, जमीनी हकीकत कुछ और ही बयान करती है।