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Photograph: (THESOOTR)
मध्यप्रदेश के लगभग 10 हजार होमगार्ड्स के लंबे संघर्ष को आखिरकार बड़ी जीत मिल गई है। जबलपुर हाईकोर्ट की डिविजनल बेंच ने शुक्रवार 26 सितंबर को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए राज्य सरकार की "कॉल ऑफ सिस्टम" प्रक्रिया को पूरी तरह से समाप्त कर दिया। अब प्रदेश के सभी होमगार्ड जवानों को पूरे 12 महीने नियमित रूप से काम मिलेगा और उन्हें समस्त लाभ प्रदान किए जाएंगे।
486 याचिकाएं की थी दायर
इस मामले में प्रदेशभर से करीब 486 अलग-अलग याचिकाएं व्यक्तिगत तौर पर हाईकोर्ट में दायर की गई थीं। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि "कॉल ऑफ" की व्यवस्था भेदभावपूर्ण है और उनके मौलिक अधिकारों का हनन करती है। लंबे समय से लंबित इन याचिकाओं की सुनवाई चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की डिविजनल बेंच ने की और 29 जुलाई 2025 को मामले को "हर्ड एंड रिजर्व" रखते हुए फैसला सुरक्षित किया था। लगभग दो महीने बाद आज आदेश सुनाया गया।
संगठन की शुरुआत से लेकर आज तक
होमगार्ड संगठन की स्थापना 1948 में पुलिस की मदद के लिए एक स्वयंसेवी बल के रूप में की गई थी। यह संगठन 1947 के "होमगार्ड एक्ट" के तहत गठित हुआ था। शुरुआती वर्षों में इसे केवल आपातकालीन परिस्थितियों में ही बुलाया जाता था। लेकिन 1962 के बाद से संगठन की भूमिका बदली और नियमित सेवाएं लेने का सिलसिला शुरू हुआ। धीरे-धीरे संगठन ने स्थायी स्वरूप ले लिया।
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विवाद की जड़: कॉल ऑफ की व्यवस्था
हालांकि 1962 के बाद से होमगार्ड नियमित सेवाएं दे रहे हैं, लेकिन हर साल 2 से 3 महीने उन्हें "कॉल ऑफ" कर घर भेज दिया जाता था। यानी इस अवधि में वेतन और काम दोनों से वंचित रहना पड़ता था। दूसरी ओर, संगठन के अन्य अधिकारी और सैनिक पूरे वर्ष कार्यरत रहते थे। इस असमानता को लेकर होमगार्ड्स ने विरोध दर्ज कराया और 2008 में मानवाधिकार आयोग तक शिकायत पहुंची।
मानवाधिकार आयोग की अनदेखी
2008 में आयोग ने जांच कर राज्य शासन को स्पष्ट रूप से अनुशंसा की थी कि "कॉल ऑफ" प्रक्रिया अन्यायपूर्ण है और इसे खत्म किया जाना चाहिए। आयोग ने सुझाव दिया था कि होमगार्ड एक्ट की जगह नया विधान लाया जाए। लेकिन सरकार ने इन अनुशंसाओं को लागू नहीं किया।
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2011 में हाईकोर्ट ने दिया दखल
आखिरकार 2011 में मामला हाईकोर्ट पहुंचा। उस समय अदालत ने स्पष्ट आदेश दिए कि कॉल ऑफ प्रक्रिया समाप्त की जाए और शासन नए नियम बनाए। हालांकि, सरकार ने इस आदेश को चुनौती देते हुए रिट अपील और बाद में एसएलपी भी दाखिल की, लेकिन उच्च अदालतों ने भी हाईकोर्ट का आदेश बरकरार रखा।
बार-बार बदले नियम, फिर चुनौती
हाइकोर्ट के ही पिछले पर शासन ने कमेटी बनाई थी और नियम बनाए, लेकिन उनमें 2 माह का कॉल ऑफ प्रावधान रखा। इसे भी याचिकाकर्ताओं ने चुनौती दी। बाद में नियम संशोधित कर 3 वर्ष में 2 माह का कॉल ऑफ प्रावधान कर दिया गया। यह प्रावधान भी अदालत में चुनौती का विषय बना था।
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15 साल से ज्यादा चला कोर्ट में मामला
होमगार्ड सैनिकों के द्वारा यह याचिका साल 2011 में दायर की गई थी। इस मामले की कई बार हुई सुनवाई में याचिकाकर्ता पक्ष की ओर से अधिवक्ता विकास महावर ने जोरदार दलीलें पेश कीं है। उन्होंने कोर्ट को बताया कि कॉल ऑफ प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 23 का उल्लंघन है।
साथ ही होमगार्ड अब केवल स्वयंसेवी संगठन नहीं है, बल्कि एक नियमित सुरक्षा बल की तरह काम करता है। होमगार्ड के जवान भी वही कार्य कर रहे हैं जो पुलिसकर्मी और संगठन के अन्य नियमित सैनिक करते हैं।
ऐसे में उनके साथ भेदभावपूर्ण रवैया उचित नहीं है। इसलिए उन्हें पूरे वर्ष कार्य और परिवार का भरण-पोषण करने योग्य वेतन मिलना चाहिए। वहीं राज्य शासन ने दलील दी कि होमगार्ड अब भी एक स्वयंसेवी संगठन है और इसे पूरे वर्ष कार्य पर नहीं रखा जा सकता। लेकिन कोर्ट ने शासन की इस आपत्ति को खारिज कर दिया।
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होमगार्ड जवानों के पक्ष में फैसला
हाई कोर्ट में इस मामले की पिछली सुनवाई 29 जुलाई 2025 को हुई थी जिसके बाद इस मामले को हर्ड एंड रिजर्व रखा गया था। शुक्रवार 26 सितंबर को कोर्ट के द्वारा जारी किए गए आदेश में कोर्ट ने लिखा कि कॉल ऑफ प्रक्रिया पूरी तरह अनुचित और असंवैधानिक है।कोर्ट ने आदेश दिया कि सभी होमगार्ड्स को पूरे 12 माह सेवाएं दी जाएं। उन्हें नियमित कर्मचारियों की तरह ही सभी लाभ प्रदान किए जाएं।
होमगार्ड्स में खुशी की लहर
जैसे ही आदेश की जानकारी सामने आई, पूरे प्रदेश में होमगार्ड संगठन के जवानों और उनके परिवारों में खुशी की लहर दौड़ गई। वर्षों से चल रही कानूनी लड़ाई के बाद यह फैसला उनके जीवन में स्थिरता और सम्मान लेकर आया है।
अब इस फैसले से न केवल होमगार्ड्स की सामाजिक-आर्थिक स्थिति मजबूत होगी, बल्कि राज्य की सुरक्षा व्यवस्था भी अधिक सुदृढ़ और संगठित रूप में काम करेगी।