अंग्रेजों के जमाने के जेल नियम दफन, अब साल में 5 बार होगी बंदियों की रिहाई, फरलो की मिलेगी सुविधा

मध्यप्रदेश सरकार ने 57 साल पुराने जेल नियमों में बदलाव किया है। अब उम्रकैद के बंदियों को साल में पांच बार रिहाई मिलेगी और पेरोल के साथ फरलो की सुविधा भी मिलेगी। जेलों में तकनीकी सुधार किए जाएंगे और बंदियों की बुनियादी जरूरतों पर ध्यान दिया जाएगा।

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Ravi Kant Dixit
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Photograph: (THESOOTR)

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BHOPAL. मध्यप्रदेश की जेलों से अंग्रेजी हुकूमत के दौर के पुराने और बेजान कानून अब रुख्सत होने जा रहे हैं। मोहन सरकार ने बंदियों की जिंदगी को आसान बनाने के लिए 57 साल पुराने नियमों को बदलने का फैसला किया है।

अब उम्रकैद की सजा काट रहे बंदियों को साल में पांच बार रिहाई का मौका मिलेगा। पेरोल के साथ अब फरलो की सहूलियत भी दी जाएगी। इस बड़े बदलाव का ड्राफ्ट तैयार हो चुका है। जल्द ही इसे अमल में लाया जाएगा।

राज्य की जेलें अब भी 131 साल पुराने 1894 जेल एक्ट और 1968 में बने जेल मैन्युअल से चल रही थीं। वक्त के साथ कायदे पुराने होते चले गए, लेकिन बदलते वक्त के साथ सुधार कभी नहीं हुए। अब बड़ा बदलाव होने जा रहा है।

नई जेल नीति में बंदियों की बुनियादी जरूरतों और सहूलियतों पर जोर दिया गया है। खासकर महिला बंदियों के लिए उनकी गरिमा  का ख्याल रखा गया है। उन्हें सुहाग का सामान, सैनिटरी पैड और रोजमर्रा की दूसरी जरूरी चीजें मुहैया कराई जाएंगी। 

सबसे अहम तब्दीली तकनीक के मैदान में होगी। प्रदेश की जेलों को अब कम्प्यूटराइज्ड किया जा रहा है। बायोमैट्रिक हाजिरी, टेलीमेडिसिन, हाईटेक CCTV और अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का इस्तेमाल जेलों में होगा। इससे जेलों में निगरानी, पारदर्शिता और सुरक्षा तीनों में बढ़ोतरी होगी। 

खुराक में होगा सुधार

अब बंदियों की प्लेट में सिर्फ रोटी-सब्जी ही नहीं, सलाद भी होगा। चाय की पत्ती की मात्रा 4 ग्राम से बढ़ाकर 6 ग्राम की जाएगी। पहले साल में 13 त्योहारों पर ही स्पेशल खाना मिलता था, अब ये लिस्ट भी लंबी कर दी गई है। जन्माष्टमी, राम नवमी, जनजातीय गौरव दिवस और आंबेडकर जयंती को भी इसमें शामिल किया गया है। यानी अब बंदियों को साल में 18 बार 'बड़ा खाना' मिलेगा।

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रिहाई के लिए नियम

आजीवन बंदियों की अभी सरकार के आदेश पर साल में चार बार रिहाई की जाती है। 15 अगस्त, 26 जनवरी, गांधी जयंती और आंबेडकर जयंती पर अच्छे आचरण वाले बंदी रिहा किए जाते थे। नए नियमों के हिसाब से बंदियों की पांच बार रिहाई हो सकेगी। इसमें जनजातीय गौरव दिवस को शामिल किया गया है। पहले रिहाई का काम सरकार के आदेश पर होता था, अब इसके लिए नियम बनाए गए हैं।

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काम का पूरा पैसा मिलेगा

पेरोल के नियमों में भी बदलाव किया गया है। पहले सजायाफ्ता कैदियों को साल में तीन बार पेरोल मिलती थी। अब महाराष्ट्र की तर्ज पर फरलो का नियम जोड़ा गया है। इस तरह कैदी सालभर में चार बार जेल से बाहर आ सकेंगे। आपको बता दें कि जेल में काम करने वाले नॉन स्किल्ड बंदियों को सरकार रोजाना के हिसाब से 93 रुपए देती है।

पहले के नियम के हिसाब से इसमें से 50 फीसदी पैसा पीड़ित पक्ष को चला जाता था, लेकिन अब सरकार ने नई व्यवस्था की है। इसके तहत पूरा 100 प्रतिशत यानी 93 रुपए बंदी के खाते में ही जाएंगे। 

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रिहाई के बाद रोजगार की राह

जेल सिर्फ सजा काटने की जगह न रहे, बल्कि वहां से निकलकर कोई बंदी आत्मनिर्भर जीवन जी सके, इसके लिए भी सरकार ने पुख्ता बंदोबस्त किए हैं। उनके पुनर्वास का ध्यान रखा जाएगा। जेल में रहते हुए बंदियों को आईटीआई ट्रेनिंग मिलेगी। उनके बनाए सामान को बाजार तक पहुंचाया जाएगा। ओपन जेल का सिस्टम भी अब दुरुस्त किया जा रहा है, ताकि छूटने के बाद बंदी समाज में घुल-मिल सकें और दोबारा गलत राह पर न जाए।

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