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Photograph: (laft to right-CONGRESS MLA JAIVARDHAN, MLA VIKRANT BHURIYA AND FOREST MINISTAR DILIP SINGH)
BHOPAL. मध्य प्रदेश की सिंगरौली कोयला बेल्ट में स्थित धिरौली ब्लॉक को लेकर राजनीति गरमा गई है। यहां अडानी ग्रुप की एक कंपनी के लिए करीब 6 लाख पेड़ों को काटने की तैयारी है।
इस मुद्दे पर शुक्रवार को राज्य विधानसभा में विपक्ष ने जमकर हंगामा किया। कांग्रेस विधायक डॉ. विक्रांत भूरिया और कांग्रेस विधायक जयवर्धन सिंह ने यह मुद्दा ध्यानाकर्षण प्रस्ताव में उठाया था। इस चर्चा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार व पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने भी हिस्सा लिया।
भूरिया ने कहा कि 9 अगस्त 2023 को सांसद शालिनी सिंह ने लोकसभा में सवाल उठाया था। जवाब में केंद्र सरकार ने लोकसभा में बताया था कि सिंगरौली का धिरौली कोल ब्लॉक पांचवी अनुसूची में आता है। इसके चलते यहां पेसा एक्ट लागू है।
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नहीं दे सके जवाब,की इधर-उधर की बात
कांग्रेस सदस्यों का एक सीधा सवाल था कि दो साल के भीतर धिरौली ब्लॉक की 'श्रेणी' कैसे बदल गई। उनका कहना था कि यह इलाका पहले संविधान की पांचवी अनुसूची में आता था। पांचवी अनुसूची का मतलब है कि यहां पेसा एक्ट (PESA Act) लागू होता है। यह एक्ट आदिवासी क्षेत्रों के लिए विशेष संवैधानिक सुरक्षा देता है। 9 अगस्त 2023 को केंद्र सरकार ने भी लोकसभा में यही बात ऑफिशियल तौर पर कही थी। अब अचानक सरकार कह रही है कि यहां पेसा एक्ट लागू नहीं है।
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सिंगरौली कोल ब्लाॅक को लेकर विपक्ष के सवालों को ऐसे समझेंविवाद की जड़: सिंगरौली कोयला खदान के धिरौली कोल ब्लॉक में 6 लाख पेड़ काटे जाने पर बवाल, यह मुद्दा मध्यप्रदेश विधानसभा में विपक्ष ने उठाया। पेसा एक्ट पर प्रश्न: विपक्ष ने पूछा कि ब्लॉक केवल दो साल में पांचवी अनुसूची (Fifth Schedule) से बाहर कैसे हुआ, जिससे पेसा एक्ट लागू नहीं हो रहा। मंत्री की चुप्पी: वन राज्य मंत्री दिलीप अहिरवार इस सीधे सवाल का स्पष्ट जवाब नहीं दे पाए, बस 'नियम-प्रक्रिया' का हवाला देते रहे। आदिवासी शोषण का आरोप: कांग्रेस ने आरोप लगाया कि कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए आदिवासियों को उजाड़कर उन पर झूठे मामले दर्ज किए जा रहे हैं। सरकार का बचाव: संसदीय कार्यमंत्री ने तर्क दिया कि सिंगरौली में आदिवासियों की आबादी कम है, इसलिए वहां पेसा एक्ट लागू नहीं होता है। |
वन मंत्री का 'नियम-प्रक्रिया' वाला जवाब
वन राज्य मंत्री दिलीप अहिरवार विपक्ष के इस बुनियादी सवाल का कोई स्पष्ट जवाब नहीं दे पाए। जब कांग्रेस सदस्यों ने बार-बार पूछा कि ब्लॉक की कैटेगरी कैसे बदल गई, तो उन्होंने गोलमोल बात की। उन्होंने कहा कि सब कुछ नियम और प्रक्रिया के तहत ही होता है। वर्तमान में धिरौली ब्लॉक पेसा एक्ट के तहत नहीं आता है। यहां तक कि विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने भी मंत्री से सीधा जवाब देने के लिए कहा।
ऐसे मंत्री जी,क्या मतलब:​सिंघार
वन राज्य मंत्री के जवाब से असंतुष्ट नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि सिंगरौली के लोग इसका जवाब जानना चाहते हैं। मंत्री जी,जवाब नहीं दे पा रहे हैं। ऐसे मंत्री जी,क्या मतलब है? सिंघार ने अध्यक्ष से जवाब दिलवाने का आग्रह किया,लेकिन कार्यवाही आगे बढ़ गई।
ये सवाल भी पूछे गए,नहीं आया जवाब
कांग्रेस के जयवर्धन सिंह ने धिरौली कोल ब्लॉक से जुड़े कुछ और स्पेसिफिक सवाल भी पूछे। इनका भी स्पष्ट जवाब उन्हें नहीं मिला। ये सवाल हैं..क्या सिंगरौली धिरौली व क्षेत्र में वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972,वन संरक्षण अधिनियम 1980 व पर्यावरण संरक्षण
अधिनियम 1986 का पालन हुआ है? कांग्रेस सदस्यों ने आरोप लगाया कि एक कंपनी को फायदा पहुंचाने आदिवासियों को बलपर्वूक उजाड़ा जा रहा है। विरोध करने वालों पर आपराधिक मामले दर्ज हो रहे हैं। कांग्रेस सदस्य ​डॉ भूरिया ने कहा कि संबंधित वन क्षेत्र में 15 सौ अधिक पुलिस कर्मी तैनात करने का क्या मतलब है। आवाजाही पर रोक लगा दी गई है। उन्हें स्वयं वहां चोरी-छिपे जाना पड़ा।
सिंगरौली में पेसा एक्ट लागू नहीं:विजयवर्गीय
ध्यानाकर्षण के जवाब में संसदीय कार्यमंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि सिंगरौली जिले में पेसा एक्ट लागू नहीं है।यहां आदिवासियों की संख्या कम होने के कारण वहां एक्ट नहीं है। यह बात वह अधिकारियों से जानकारी जुटाने के बाद ही जिम्मेदारी से कह रहे हैं।
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पांचवी अनुसूची और पेसा एक्ट का क्या मतलब है?
पांचवी अनुसूची (Fifth Schedule) भारतीय संविधान का वह हिस्सा है। यह कुछ राज्यों में आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों को विशेष सुरक्षा और प्रशासनिक अधिकार प्रदान करता है।
पेसा एक्ट (The Provisions of the Panchayats (Extension to the Scheduled Areas) Act, 1996) इसी सूची के क्षेत्रों में लागू होता है। यह आदिवासी ग्राम सभाओं को उनकी जमीन, वन और प्राकृतिक संसाधनों पर विशेष अधिकार देता है। इसका उद्देश्य आदिवासी समुदायों को उनकी परंपराओं के अनुसार खुद को शासित करने की शक्ति देना है। खनन जैसे बड़े प्रोजेक्ट में उनकी सहमति जरूरी होती है.
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