फरार खनन माफिया अमित खम्परिया पर हाईकोर्ट की सख्ती, पुलिस की लापरवाही उजागर

कुख्यात जालसाज और खनन माफिया अमित खम्परिया की गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने कई प्रयास किए। इन प्रयासों की रिपोर्ट पर हाईकोर्ट ने नाराजगी जताई। कोर्ट ने इसे सिर्फ औपचारिकता और दिखावा बताया।

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Neel Tiwari
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जबलपुर हाईकोर्ट ने फरार आरोपी अमित खम्परिया मामले में एमपी पुलिस की कार्रवाई को लेकर तीखी नाराजगी जताई है। हाई कोर्ट के पिछले आदेश के अनुसार जस्टिस विशाल मिश्रा की बेंच में हुई सुनवाई में पुलिस ने अपनी रिपोर्ट दाखिल की। वहीं, कोर्ट ने इसे अधूरी और औपचारिक करार दिया।

कोर्ट में दाखिल किए गए रिपोर्ट में केवल यह कहा गया कि आरोपी खमरिया दिसंबर 2023 से फरार है, उसकी जमानत रद्द हो चुकी है। इस पर पहले 10 हजार रुपए तथा बाद में 30 हजार रुपए का इनाम घोषित किया गया है। साथ ही तलाशी पंचनामा की जानकारी दी गई। लेकिन, अदालत ने पाया कि न तो सभी जरूरी दस्तावेज पेश किए गए और न ही यह दिखाया गया कि आरोपी को पकड़ने के लिए ठोस प्रयास किए गए।

जस्टिस विशाल मिश्रा ने अपने आदेश में लिखा कि उसकी तलाशी के लिए जो एक पंचनामा कोर्ट के सामने पेश किया गया है, वह सिर्फ यह बताने के लिए है कि साल 2025 में भी पुलिस ने उसकी तलाश करने की कोशिश की है। कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि पुलिस सिर्फ दिखावे के लिए कार्रवाई कर रही है। वास्तविकता में आरोपी की तलाश में गंभीरता नहीं दिखा रही। इसी आधार पर एसपी जबलपुर को विस्तृत हलफनामा पेश करने का एक और मौका दिया गया और मामले को 22 सितंबर 2025 के सप्ताह में लिस्ट कर दिया गया।

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पिछली सुनवाई में भी लगे थे पुलिस पर मिलीभगत के आरोप

इससे पहले 1 अगस्त 2025 को जस्टिस दिनेश कुमार पालीवाल की बेंच ने भी पुलिस की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े किए थे। उस दौरान याचिकाकर्ता सचिन गुप्ता की ओर से यह तर्क रखा गया कि खम्परिया को अक्सर जबलपुर शहर और आसपास देखा जाता है। लेकिन पुलिस उसे पकड़ने से बच रही है।

याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि यह आरोपी बेहद रसूखदार है और उसके खिलाफ दर्ज मामलों के बावजूद वह खुलेआम घूमता रहता है। इससे स्पष्ट है कि पुलिस और आरोपी के बीच मिलीभगत हो सकती है।

कोर्ट ने इसके बाद जबलपुर एसपी को आदेश दिया था कि वे शपथपत्र दाखिल करें और विस्तार से बताएं कि आरोपी को गिरफ्तार करने के लिए कौन-से कदम उठाए गए। साथ ही, उसकी संपत्ति जब्ती की कार्रवाई किस स्तर तक पहुंची।

कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की थी कि ऐसे खतरनाक अपराधी को लेकर पुलिस का रवैया बेहद ढीला है, जो कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाता है। हालांकि कोर्ट के आदेश के बाद भी जब पुलिस ने अपना जवाब पेश किया तो वह आधा अधूरा ही रहा, इसके बाद जबलपुर पुलिस की भूमिका भी इस मामले में संदिग्ध हो गई है।

खनन माफिया अमित खम्परिया की खबर पर एक नजर

  • जबलपुर हाईकोर्ट ने फरार खनन माफिया अमित खम्परिया की गिरफ्तारी के लिए पुलिस की आधी-अधूरी रिपोर्ट को औपचारिकता और दिखावा बताया।

  • कोर्ट ने पाया कि पुलिस ने केवल दिखावे के लिए कार्रवाई की, असल में आरोपी की गिरफ्तारी के लिए गंभीर प्रयास नहीं किए गए।

  • अमित खम्परिया पर करोड़ों की धोखाधड़ी के 18 आपराधिक मामले लंबित हैं, लेकिन पुलिस ने उसे गिरफ्तार करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए।

  • खम्परिया ने पीडब्ल्यूडी विभाग से जुड़े ठेकों में फर्जी एफडीआर का इस्तेमाल किया, लेकिन पुलिस ने मामले की जांच नहीं की।

  • हाईकोर्ट की सख्ती के बाद पुलिस पर खम्परिया की गिरफ्तारी का दबाव बढ़ा और प्रशासनिक निष्क्रियता पर सवाल उठाए गए।

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फर्जी FDR पर ठेका लेने से जुड़ा मामला

खनन माफिया अमित खम्परिया का यह मामला उमरिया पीडब्ल्यूडी विभाग से जुड़ा है। यहां उसने सोन मसीरा घाट जयसिंह नगर मानपुर पुल पर टैक्स वसूली का ठेका लेने के लिए फर्जी एफडीआर जमा की। बैंक की जांच में यह एफडीआर पूरी तरह जाली निकली।

सामान्य परिस्थितियों में पीडब्ल्यूडी विभाग को आरोपी के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए थी। लेकिन खम्परिया के रसूख और पैसों के दबदबे के चलते कोई कदम नहीं उठाया गया।

यहां तक कि विभागीय स्तर पर अनुभागीय अधिकारी ने उमरिया थाने को पत्र भेजकर कार्रवाई के लिए कहा, यदि पुलिस ने न तो मामला दर्ज किया और न ही कोई जांच आगे बढ़ाई। इस चुप्पी और लापरवाही के बाद याचिकाकर्ता सचिन गुप्ता ने हाईकोर्ट की शरण ली।

18 FIR करोड़ों का फर्जीवाड़ा

याचिकाकर्ता सचिन गुप्ता ने हाईकोर्ट में बताया कि अमित खम्परिया पर पहले से ही करोड़ों की धोखाधड़ी के कई मामले दर्ज हैं। जबलपुर सहित अन्य जिलों में उसके खिलाफ लगभग 18 आपराधिक प्रकरण लंबित हैं। इसके बावजूद पुलिस की उदासीनता और आरोपी का खुलेआम घूमना न्याय व्यवस्था का मजाक उड़ाता है।

इस याचिका में अमित खम्परिया ने खुद को हस्तक्षेपकर्ता बनाने की कोशिश की थी। लेकिन कोर्ट ने इस आवेदन को खारिज कर दिया। साफ कहा कि आरोपी पहले से फरार है और गंभीर आरोपों में वांछित है। इसके बाद ही कोर्ट ने पुलिस को जवाब पेश करने के लिए आदेश दिया था।

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अपने नाम पर किसी और को कटवा चुका है जेल

अमित खम्परिया के पुराने कारनामों की फेहरिस्त भी चौंकाने वाली है। एक मामले में कोर्ट ने उसे जेल की सजा सुनाई थी। लेकिन इस शातिर जालसाज ने न्यायिक व्यवस्था को चकमा देते हुए अपने कर्मचारी को ही जेल भिजवा दिया और खुद आजादी का मजा लेता रहा।

लगभग एक साल बाद यह फर्जीवाड़ा सामने आया, तब जाकर असलियत उजागर हुई। इस घटना ने यह साबित कर दिया कि खम्परिया किस तरह पैसों और रसूख का इस्तेमाल कर कानून को गुमराह करता रहा है।

अब पुलिस पर गिरफ्तारी का दबाव

हाईकोर्ट की लगातार सख्ती ने पुलिस और प्रशासन की निष्क्रियता पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। अमित खम्परिया का मामला केवल एक फर्जी एफडीआर या धोखाधड़ी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह प्रशासनिक तंत्र और पुलिस की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़ा कर रहा है।

हाईकोर्ट के द्वारा पुलिस पर उठाए सवालों ने रसूखदारों को मिलने वाले संरक्षण का भी सवाल खड़ा कर दिया है। अब कोर्ट का कड़ा रुख यह संकेत दे चुका है कि अब इस आरोपी को बच पाना आसान नहीं होगा और उसकी गिरफ्तारी को लेकर पुलिस पर दबाव और बढ़ेगा।

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