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Indore. मध्यप्रदेश की राजनीति को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाले मुद्दे ओबीसी आरक्षण को लेकर अब नजरें 8 अक्टूबर से फिर सुप्रीम कोर्ट पर होंगी। बीती सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा था कि आप लोगों की ओर से कोई पहल नहीं है और ना ही आर्ग्युमेंट के लिए तैयार हो, जबकि हम तैयार हैं। इसके पहले सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि मप्र सरकार 6 साल से सो रही थी और यह पूरा मामला आपके द्वारा ही उलझाया हुआ है। इसलिए लंबा समय देखते हुए कोई अंतरिम राहत नहीं देकर सीधे अंतिम फैसला देंगे।
इस केस की कहानी और कहां कैसे सरकार झुलाती रही
इस पूरे केस की कहानी कमलनाथ सरकार के समय ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण एक्ट पास करने से होती है। इसके बाद इसमें याचिकाएं लगना शुरू हुई और हाईकोर्ट ने अंतरिम राहत देते हुए इसमें संबंधित भर्ती परीक्षा की याचिका में 14 फीसदी से अधिक ओबीसी आरक्षण देने पर रोक लगा दी।
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हाईकोर्ट में- सबसे पहले याचिका 5901/19 लगी, जिसमें 19 मार्च 2019 को 14 फीसदी से अधिक आरक्षण पर रोक लगाई।
सुप्रीम कोर्ट- ट्रांसफर पिटीशन 1226 व 1227 लगी, जून 2019 में।
सुप्रीम कोर्ट- ट्रांसफर याचिका पर जुलाई 2019 में ट्रांसफर याचिकाएं खारिज हुईं।
मप्र हाईकोर्ट- में मूल याचिका 5901 चली, 17 फरवरी 2021 में अंतरिम राहत जारी रही, सरकार ने जवाब के लिए समय मांगा।
मप्र हाईकोर्ट- फिर अक्टूबर 2021 में सुनवाई, यह बात उठी कि अंतरिम राहत की जगह फैसला दिया जाए।
सुप्रीम कोर्ट में एसएसपी 4753 लगी, इसमें 21 मार्च 2022 को आदेश हुआ कि हाईकोर्ट इस मुद्दे को जल्द सुनकर डिस्पोज़ करे।
मप्र हाईकोर्ट- फिर मूल याचिका 5901 पर सुनवाई में 25 जुलाई 2022 को इसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तारतम्य में 1 अगस्त को सुनने की बात हुई।
हाईकोर्ट- फिर केस को 16 अगस्त को अन्य केस के साथ लिंक किया गया।
हाईकोर्ट- 13 सितंबर 2022 में इस केस पर शासन ने कहा कि कुछ मामले अभी भी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन हैं, मामला फिर टल गया। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में केस चलने की बात कहकर मामला बढ़वा दिया।
हाईकोर्ट- 17 फरवरी 2023 को पक्षकारों से जवाब मांगा गया खासकर सुप्रीम कोर्ट से कुछ हो तो।
हाईकोर्ट- फिर 19 अप्रैल 2023 में शासन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में विविध याचिकाएं हैं, इसलिए उनकी सुनवाई होने तक मामले को आगे बढ़ाया जाए।
सुप्रीम कोर्ट- शासन से ट्रांसफर याचिका 1120 लगी 28 अप्रैल 2023 में।
हाईकोर्ट- 24 अप्रैल 2023 को फिर सुप्रीम कोर्ट की बात कहकर मामला टल गया।
सुप्रीम कोर्ट- सुप्रीम कोर्ट में डायरी नंबर 17765 पर 28 अगस्त 2024 को सुनवाई और ट्रांसफर याचिकाएं मंजूर हुई। फिर 15 जनवरी 2025 को मप्र शासन ने फिर कुछ और ट्रांसफर याचिकाएं पेश की, यही 21 अप्रैल 2025 को भी हुआ।
सुप्रीम कोर्ट- सुप्रीम कोर्ट ने डायरी नंबर 6682 पर 12 अगस्त 2025 को सुनवाई की, इसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अंतरिम राहत की जगह फैसला करेंगे, 22 सितंबर को सुनवाई करेंगे।
सुप्रीम कोर्ट में केस- 24 सितंबर को लगा, इससे एक दिन पहले मप्र शासन ने 15 हजार पन्नों की रिपोर्ट पुटअप की। इसके चलते अन्य पक्षकारों को इसे पढ़ने का समय ही नहीं मिला और सभी अधिवक्ताओं ने 24 सितंबर को आर्ग्युमेंट के लिए समय मांग लिया। इसमें अब 8 अक्टूबर की तारीख लगी है।
पहले भी 27 फीसदी आरक्षण के आए बिल
मप्र में मंडल आयोग के बाद ओबीसी आरक्षण शुरू हुआ। तत्कालीन सीएम दिग्विजय सिंह के समय मप्र लोक सेवा आरक्षण (एससी, एसटी, ओबीसी) 1994 एक्ट पास हुआ और एससी को 13 फीसदी, एसटी को 20 और ओबीसी को 14 फीसदी आरक्षण मिला।
मप्र पिछड़ा वर्ग आयोग ने मप्र में ओबीसी आरक्षण 14 से बढ़ाकर 27 फीसदी की अनुशंसा की। 1996-1997 में यह रिपोर्ट आई।
इसके बाद मप्र में आरक्षण को 27 फीसदी का बिल दिग्विजय सिंह के समय पास हुआ लेकिन इसे राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति को भेजा गया और वहां से 2000-01 में यह इंकार कर दिया गया और इसके लिए इंदिरा साहनी केस में तय 50 फीसदी आरक्षण सीमा का हवाला दिया गया।
इसके बाद मप्र में अप्रैल 2002 में नया आरक्षण बिल पास हुआ और आरक्षण एससी का 16, एसटी का 20 और ओबीसी का 14 फीसदी किया गया।
इसी दौरान नवंबर 2002 में फिर ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण बढ़ाने की बात उठी लेकिन इस बिल को फिर राष्ट्रपति के पास भेजा गया और इस पर ना मिली और ना ही यह ठंडे बस्ते में चला गया।
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हाईकोर्ट ने जीएडी का प्रस्ताव क्वैश किया
जीएडी ने 13 अक्टूबर 2014 में भी 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण का आदेश पास किया था लेकिन इसे हाईकोर्ट में लगी याचिका के तहत क्वैश कर दिया गया। फिर इसमें सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर हुई एसएसपी (सी) 21195/2015, आश्चर्यजनक रूप से यह अभी भी चल रही है और वर्तमान में चल रहे केस के साथ यह केस भी लिंक है।
इस आधार पर आरक्षण का दावा
इंदिरा साहनी केस में 1992 में आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसदी तय कर दी गई। लेकिन साथ ही कहा कि असाधारण स्थितियों में इसे बढ़ाया जा सकता है। मप्र द्वारा 15 हजार पन्नों में अभी तक के विविध आयोग के प्रतिवेदन, रिपोर्ट पेश की गई है। इसमें महाजन रिपोर्ट के साथ ही राज्य पिछड़ा वर्ग की अलग-अलग रिपोर्ट है।
विविध पिछड़ा वर्ग रिपोर्ट, राम महाजन रिपोर्ट इन सभी में मप्र में ओबीसी की जनसंख्या 50 फीसदी के करीब मानी गई है और इसी आधार पर आरक्षण बढ़ाने की मांग लगातार उठती रही है। महाजन रिपोर्ट में तो 1982-1983 में 35 फीसदी आरक्षण ओबीसी को देने की बात कही थी।
पिछड़ा वर्ग रिपोर्ट 1999 में ओबीसी जनसंख्या 50 फीसदी मानी गई, महाजन रिपोर्ट में 1982 में 48 फीसदी बताई गई, बीआर आंबेडकर रिपोर्ट में 48 फीसदी मानी गई। महाजन आयोग ने 35 फीसदी तो बाकी ने ओबीसी आरक्षण 27 फीसदी की बात की।
मप्र में 73 फीसदी हो जाएगा आरक्षण
उधर इस आरक्षण को लेकर अनारक्षित वर्ग का भारी विरोध है। ओपन अनारक्षित वर्ग का तर्क है कि अभी मप्र में एससी 16, एसटी 20, ओबीसी 14 और ईडब्ल्यूएस 10 फीसदी मिलाकर 60 फीसदी आरक्षण है। वहीं ओबीसी को 13 फीसदी और मिलेगा, कुल 27 फीसदी होने पर मप्र में आरक्षण की सीमा 73 फीसदी हो जाएगी। ऐसे में ओपन कैटेगरी के लिए केवल 27 फीसदी पद बचेंगे। इसके चलते अनारक्षित ओपन वर्ग द्वारा इसका भारी विरोध किया जा रहा है और उन्होंने भी सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता उतार दिए हैं।