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INDORE. मप्र की राजनीति की सबसे उठापटक वाले 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के पहले बड़ा विवाद हो गया है। मप्र शासन ने हाईकोर्ट में 15 हजार पन्ने की रिपोर्ट पेश की है। इसमें विविध आयोगों की रिपोर्ट भी लगी हुई है। इसी में लगी एक महाजन रिपोर्ट के कुछ पन्ने बाहर आए हैं, जिसे लेकर बीजेपी सरकार को सोशल मीडिया पर घेरा जा रहा है और आरोप लग रहे हैं कि बीजेपी सरकार हिंदू विरोधी है।
इन पन्नों के बाहर आने और सरकार के घिरने के बाद मप्र सरकार ने दो पन्नों का चेतावनी पत्र जारी किया है।साथ ही कहा है कि गलत टिप्पणी करना और गलत प्रचारित करने पर सरकार कार्रवाई करेगी। हालांकि सरकार ने माना है कि यह महाजन आयोग के रिपोर्ट के पन्ने हैं, लेकिन यह राज्य सरकार का हलफनामा नहीं है, केवल संलग्न रिपोर्ट है।
पहले बताते हैं कि क्या पन्ने चल रहे हैं, इसमें क्या है
यदि निम्न जाति का व्यक्ति अच्छे कर्म करता है, सम्मान प्राप्त करता है, जप-तप करता है, तो उसका कार्य विधि-विधान के विरुद्ध माना जाता है। इसलिए ऋषि शम्बूक की हत्या करवाकर मर्यादा पुरुषोत्तम राजा रामचंद्र उसे सामाजिक व्यवस्था भंग करने का दंड देते हैं।
भील बालक एकलव्य शिक्षा प्राप्त करने के लिए आचार्य द्रोणाचार्य के पास जाता है। लेकिन भील पुत्र होने के कारण उसे शिक्षा देने से मना कर दिया जाता है। एकलव्य अपनी साधना से धनुर्विद्या में निपुण हो जाता है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि निम्न जाति का निषिद्ध एकलव्य शिक्षित न रह जाए और अपने उद्देश्य में विफल हो जाए, दाहिने हाथ का अंगूठा काट दिया गया।
पिछड़ा वर्ग शूद्र वर्ण का ही एक अंग है। अनुसूचित जातियों को अछूत वर्ग में शामिल किया गया है, जिन्हें छूने की मनाही थी, जिन्हें निम्न, नीच और अछूत आदि कहा जाता था। लेकिन आयोग को केवल उन्हीं का अध्ययन करना है जिनका प्रभाव पिछड़े वर्ग से संबंधित है। जिन्हें स्पृश्य शूद्र माना गया है, भले ही वे स्वयं को क्षत्रिय वर्ण में मानते रहे हों। स्मृतियों और पुराणों में इस संबंध में अनेक प्रमाण उपलब्ध हैं। अर्थात्: बढ़ई, नाई, अहीर, चमार, कुम्हार, बंजारा, किरात, कायस्थ, माली, कुर्मी, बांसफोर, स्थावर, चांडाल, बारी, श्वपंच, कोरी और समान स्तर के सभी अछूत शूद्र हैं।
वर्ण व्यवस्था के सिद्धांत ने 80 प्रतिशत बहुजन शूद्र वर्ण को हज़ारों वर्षों से अधिकारों से वंचित रखा है और उनका शोषण किया है। और इस व्यवस्था ने ईश्वरीय व्यवस्था, पुनर्जन्म के सिद्धांत, भाग्यवाद आदि के कारण शूद्रों को इतना पंगु बना दिया है कि वे अन्याय के विरुद्ध लड़ने की सोच भी नहीं सकते। इसलिए, वे पशुओं के समान शारीरिक श्रम करने के बाद भी अपनी दयनीय स्थिति के विरुद्ध विद्रोह नहीं कर सकते। बल्कि, वे अपने पूर्वजन्मों के बुरे कर्मों को कोसते रहते हैं और यह मानते रहते हैं कि जो उनके भाग्य में लिखा है, उसे उन्हें भोगना ही होगा।
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मप्र शासन ने यह जारी किया प्रेस नोट
राज्य शासन के संज्ञान में यह आया है कि कतिपय शरारती तत्वों द्वारा सोशल मीडिया पर यह कहते हुए कुछ टिप्पणियां/सामग्री वायरल की जा रही है कि वह टिप्पणियां माननीय उच्चतम न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत मध्यप्रदेश शासन के ओबीसी आरक्षण से संबंधित प्रकरण के हलफनामे का भाग है।
शासन द्वारा उक्त शरारती सामग्री का गंभीरता से परीक्षण कराया गया है। माननीय उच्चतम न्यायालय के समक्ष पिछड़ा वर्ग आरक्षण के प्रचलित प्रकरण में अभिलेख के प्रारंभिक परीक्षण से यह तथ्य सामने आया है कि ये सोशल मीडिया की टिप्पणियां एवं कथन पूर्णतः असत्य, मिथ्या एवं भ्रामक है एवं दुष्प्रचार की भावना से किए गए हैं। यह स्पष्ट किया जाता है कि वायरल की जा रही सामग्री मध्यप्रदेश शासन के हलफनामे में उल्लेखित नहीं है एवं ना ही राज्य की किसी घोषित या स्वीकृत नीति अथवा निर्णय का भाग हैं।
उल्लेखित सामग्री मध्यप्रदेश राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग, अध्यक्ष रामजी महाजन द्वारा प्रस्तुत अंतिम प्रतिवेदन (भाग-1) का हिस्सा हैं। उक्त आयोग का गठन दिनांक 17-11-1980 को किया गया था। आयोग द्वारा दिनांक 22-12-1983 को अपना अंतिम प्रतिवेदन तत्कालीन राज्य शासन को प्रेषित किया था।
राज्य शासन ने माननीय उच्चतम न्यायालय में ओबीसी आरक्षण संबंधित प्रकरण में राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के विभिन्न प्रतिवेदन भी प्रस्तुत किए हैं, जो शासन के अभिलेखों में सुरक्षित हैं। इन प्रतिवेदनों में महाजन आयोग की रिपोर्ट के साथ-साथ 1994 से 2011 तक के वार्षिक प्रतिवेदन तथा वर्ष 2022 का राज्य पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग का प्रतिवेदन भी सम्मिलित है। महाजन आयोग का उक्त प्रतिवेदन हाईकोर्ट के समक्ष भी पेश रिकार्ड का हिस्सा है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट में भी यह स्वतः ही हिस्सा है।
महाजन रिपोर्ट में 35 फीसदी आरक्षण की अनुशंसा
शासन ने यह भी प्रेस नोट में लिखा है कि-मध्यप्रदेश सरकार 'सबका साथ, सबका विकास' एवं सामाजिक सद्भावना के प्रति पूर्णतः प्रतिबद्ध है। शासन स्पष्ट करता है कि वायरल की जा रही सामग्री शासन के हलफनामे में उल्लेखित नहीं है एवं ना ही राज्य शासन के किसी स्वीकृत या आधिकारिक नीति या निर्णय का हिस्सा है। यह उल्लेखनीय है कि महाजन रिपोर्ट में 35% आरक्षण की अनुशंसा की गई थी, जबकि राज्य शासन ने 27% आरक्षण लागू किया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि राज्य शासन का निर्णय महाजन रिपोर्ट पर आधारित नहीं है।
हमेशा सभी रिपोर्ट पेश करते हैं
शासन ने आगे यह भी लिखा कि आरक्षण को लेकर विविध आयोग, समितियों की रिपोर्ट पेश की जाती रही है, इसी क्रम में इसमें भी यह हुआ है। इन विस्तृत प्रतिवेदनों एवं रिपोर्ट के किसी एक भाग को, बिना किसी संदर्भ के स्पष्ट किए सोशल मीडिया पर दुष्प्रचार के रूप में प्रस्तुत किया जाना एक निंदनीय प्रयास है। इसके संबंध में राज्य शासन द्वारा गंभीरता से जांच कर आवश्यक कार्रवाई की जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट पहले कर चुका टिप्णणी, 8 अक्टूबर को सुनवाई
उल्लेखनीय है कि 24 सितंबर को इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा था कि आप लोग आगर्यूमेंट के लिए तैयार नहीं, कोई पहल नहीं कर रहा है, जबकि सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के लिए तैयार है। अब इसमें 8 अक्टूबर को सुनवाई की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने यहां तक कहा था कि यह कोई मजाक नहीं यह गंभीर मसला है। इसके पूर्व सुप्रीम कोर्ट कह चुकी है कि 6 साल से राज्य सरकार सोई हुई थी, यह पूरी समस्या उनके द्वारा ही पैदा की गई है और कोई अंतरिम राहत नहीं देकर पूरा फैसला किया जाएगा।