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पिछले छह सालों से अदालत में लंबित 27% ओबीसी आरक्षण के मामले को लेकर मध्यप्रदेश सरकार अब गंभीर दिखाई दे रही है। आज सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी आरक्षण से जुड़े दो अहम मुद्दों पर सुनवाई होगी। इनमें 27% ओबीसी आरक्षण और ओबीसी वर्ग के चयनित अभ्यर्थियों के 13% पदों को होल्ड पर रखने का मामला शामिल है।
सुप्रीम कोर्ट ने 12 अगस्त को हुई सुनवाई के दौरान इस केस को टॉप ऑफ द बोर्ड में लिस्ट किया था। उस समय कोर्ट ने 23 सितंबर से मामले की रोजाना सुनवाई करने की बात कही थी। हालांकि अब अदालत आज इस मुद्दे पर सुनवाई करेगी। मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की दो नंबर कोर्ट में डबल बेंच द्वारा की जाएगी।
सीएम मोहन ने ओबीसी आरक्षण पर क्या कहा?
आज सुप्रीम कोर्ट में मध्यप्रदेश लोकसेवा आयोग की परीक्षा में भाग लेने वाले ओबीसी उम्मीदवारों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई होगी। यह याचिका ओबीसी वर्ग के 13% पदों को होल्ड करने के मामले से जुड़ी है, जो आज की सुनवाई के दौरान अहम मोड़ पर पहुंचेगी। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने लगातार यह बयान दिया है कि राज्य सरकार ओबीसी को 27% आरक्षण देने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है।
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सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी आरक्षण से संबंधित सुनवाई के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के साथ मिलकर वकीलों की टीम बनाई है। इस टीम में तमिलनाडु के सीनियर एडवोकेट और राज्यसभा सांसद पी. बिल्सन तथा एडवोकेट शशांक रतनू को ओबीसी आरक्षण के मामलों में ओबीसी का पक्ष रखने के लिए अधिकृत किया गया है।
इतने पैसे लेंगे वकील
इस सुनवाई के मद्देनजर मध्य प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में राज्य का पक्ष रखने के लिए जिन दो वरिष्ठ अधिवक्ताओं को नियुक्त किया है और उनकी फीस का आदेश भी जारी कर दिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता फीस
मध्य प्रदेश शासन ने अधिवक्ताओं की सेवाओं और फीस की स्पष्ट रूपरेखा तय की है। आदेश के अनुसार-
- वरिष्ठ अधिवक्ता पी. विल्सन, को प्रत्यक्ष हाजिरी के लिए 5 लाख 50 हजार रुपए और वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से हाजिरी के लिए 1 लाख 50 हजार रुपए। समान विषय की अन्य याचिकाओं में अलग से फीस नहीं दी जाएगी।
- अधिवक्ता शशांक रत्नू को प्रत्यक्ष हाजिरी और वीडियो कांफ्रेंस के जरिए हाजिरी के लिए 2 लाख 40 हजार रुपए। अतिरिक्त वीडियो कांफ्रेंस के लिए 60 हजार रुपए, उल्लेख करने के लिए 60 हजार रुपए और मसौदे, आवेदन पत्र या अतिरिक्त हलफनामों की जांच एवं अंतिम रूप देने के लिए 60 हजार रुपए।
- सभी भुगतान राज्यपाल के नाम से जारी आदेश के अनुसार पारदर्शिता और नियमों के अनुरूप सुनिश्चित किए जाएंगे। समान विषय की अन्य याचिकाओं में अलग से कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा।
ओबीसी आरक्षण मामले में अब तक क्या-क्या हुआमार्च 2019कमलनाथ सरकार ने ओबीसी आरक्षण को 14% से बढ़ाकर 27% करने का निर्णय लिया। मार्च 2020हाईकोर्ट ने इस फैसले पर रोक लगाते हुए कहा कि कुल आरक्षण 50% से अधिक नहीं हो सकता। सितंबर 2021तत्कालीन महाधिवक्ता की सलाह के बाद सरकार ने ओबीसी को 27% आरक्षण देने के लिए नई गाइडलाइन जारी कीं। अगस्त 2023हाईकोर्ट ने 87:13 का फॉर्मूला लागू किया, जिसके तहत 87% पदों पर भर्तियां होंगी और 13% पद होल्ड पर रखे जाएंगे। 28 जनवरी 2025हाईकोर्ट ने 87:13 फॉर्मूले को चुनौती देने वाली याचिकाएं खारिज कर दीं, जिससे 27% ओबीसी आरक्षण का रास्ता साफ हो गया। 13 फरवरी 2025मध्य प्रदेश सरकार ने 27% ओबीसी आरक्षण के मामले को सुप्रीम कोर्ट ले जाने का फैसला किया। मुख्यमंत्री ने एडवोकेट जनरल को जल्द सुनवाई के लिए आवेदन देने को कहा। 22 मार्च 2025मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 27% ओबीसी आरक्षण से जुड़े किसी भी मामले की सुनवाई नहीं करने का निर्देश दिया। 7 अप्रैल 2025सुप्रीम कोर्ट ने 'यूथ फॉर इक्वलिटी' की याचिका पर कहा कि इस कानून पर कोई रोक नहीं है। 22 अप्रैल 2025ओबीसी आरक्षण से संबंधित 52 याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर की गईं और सुप्रीम कोर्ट ने सभी को स्वीकार कर लिया। 25 जुलाई 2025सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर विशेष सुनवाई की। |
पटवारी ने शिवराज और मोहन यादव पर कसा तंज
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने कहा कि यदि ओबीसी का आरक्षण पिछले छह सालों से लागू नहीं हो रहा है, तो इसके लिए शिवराज सिंह चौहान और मोहन यादव जिम्मेदार हैं। उन्होंने यह भी कहा कि ओबीसी का आरक्षण उन्हें देना ही होगा। पटवारी ने यह स्पष्ट किया कि ओबीसी आरक्षण के मामले की सुनवाई में कांग्रेस का पक्ष रखने के लिए कांग्रेस के वकील अदालत में खड़े रहेंगे और वह खुद भी सुप्रीम कोर्ट में उनके साथ उपस्थित रहेंगे।
लगातार दिल्ली में मीटिंग कर रहे हैं मोहन यादव
इस बीच मुख्यमंत्री मोहन यादव पिछले दो दिनों से दिल्ली में ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर वकीलों से मिलकर चर्चा कर रहे हैं। सोमवार (22 सितंबर) को उन्होंने दिल्ली स्थित मध्यप्रदेश भवन में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से बातचीत की थी। इसके अगले दिन मंगलवार को भी वह दिल्ली पहुंचे और ओबीसी आरक्षण के संबंध में वकीलों से और चर्चा की।एमपी सरकार सो रही है क्या- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने 12 अगस्त को मध्यप्रदेश सरकार को फटकार लगाते हुए सवाल किया कि क्या वह सो रही है। यह टिप्पणी ओबीसी वर्ग के 13% होल्ड पदों के मामले में की गई, जिन पर पिछले छह सालों से कोई कदम नहीं उठाए गए थे। ओबीसी महासभा के वकील वरुण ठाकुर ने बताया कि कोर्ट ने कहा है कि एमपी सरकार सो रही है क्या? OBC के 13% होल्ड पदों पर 6 साल में क्या किया?
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जानें 12 अगस्त को कोर्ट में क्या हुआ
ठाकुर के अनुसार, यह याचिका मध्यप्रदेश लोकसेवा आयोग (MPPSC) के चयनित अभ्यर्थियों ने दायर की थी, जिनकी नियुक्ति अब तक नहीं की गई है। मामले में मध्यप्रदेश सरकार ने 29 सितंबर 2022 को एक नोटिफिकेशन जारी किया था, जिसे कोर्ट में चुनौती दी गई है। सरकार ने कोर्ट में कहा था कि वह ओबीसी को आरक्षण देना चाहती है और इसलिए ऑर्डिनेंस पर लगे स्टे को हटाया जाए।
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इस पर कोर्ट ने टिप्पणी की कि जो जनप्रतिनिधि यह दावा करते हैं कि वे ओबीसी को 27% आरक्षण देने के लिए प्रतिबद्ध हैं, उनके वकील तब सुनवाई में पहुंचते हैं, जब आदेश पहले ही डिक्टेट हो चुका होता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि जब यह नेता कहते हैं कि स्टे हटाने से प्रशासनिक दिक्कतें उत्पन्न हो रही हैं।