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BHOPAL. केंद्र सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के हक में बड़ा फैसला लेते हुए आठवें वेतन आयोग के गठन को मंजूरी दे दी है। देश में 1 जनवरी 2026 से आठवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने की पूरी संभावना है। इससे देश के 45 लाख केंद्रीय कर्मचारियों और 65 लाख पेंशनर्स को सीधा लाभ मिलेगा। इसके उलट मध्य प्रदेश में सातवें वेतन आयोग की विसंगतियां अब भी बरकरार हैं। प्रदेश के लाखों अधिकारी-कर्मचारी वेतन विसंगति दूर कराने के लिए संघर्षरत हैं और अब आर-पार की लड़ाई के मूड में आ गए हैं।
गौरतलब है कि केंद्र सरकार हर वेतन आयोग लागू कर कर्मचारियों के वेतन में वृद्धि करती है, लेकिन मध्य प्रदेश में कर्मचारी आज भी सातवें वेतन आयोग की विसंगतियों के बीच संघर्ष कर रहे हैं। कई विभागों में छठवें और यहां तक कि पांचवें वेतनमान पर कार्यरत कर्मचारी अपनी स्थिति सुधारने के लिए प्रयासरत हैं। विशेष रूप से निगम-मंडल और प्राधिकरणों के कर्मचारी वेतन विसंगति का शिकार हैं। राज्य सरकार की ओर से वेतनमान में सुधार को लेकर बार-बार आश्वासन दिए गए हैं, लेकिन वास्तविक समाधान अब तक नहीं निकला है।
मांगों को लेकर 16 फरवरी को भोपाल में महारैली
अब चूंकि सातवें वेतन आयोग की मियाद 31 दिसंबर 2025 तक है, ऐसे में अपनी मांगें पूरी करवाने के लिए कर्मचारी संगठनों ने आंदोलन का रुख अपना लिया है। मध्य प्रदेश अधिकारी-कर्मचारी संयुक्त मोर्चा ने अपनी 51 सूत्रीय मांगों को लेकर चार चरणों का आंदोलन छेड़ा है, जिसमें तीन चरण पूरे हो चुके हैं। अब 16 फरवरी को भोपाल में महारैली होगी, जिसमें पूरे प्रदेश से हजारों कर्मचारी शामिल होंगे।
पांचवें-छठवें वेतनमान पर अटके कई कर्मचारी
प्रदेश में कुछ कर्मचारी ऐसे भी हैं, जो पांचवें और छठे वेतनमान पर अटके हैं। सातवां वेतनमान पाने के लिए वे संघर्ष कर रहे हैं। ज्यादातर कर्मचारी निगम-मंडल, प्राधिकारण आदि के हैं। इनमें आवास संघ, उपभोक्ता संघ, हस्तशिल्प विकास निगम, औद्योगिक केंद्र विकास निगम, खादी ग्रामोद्योग बोर्ड आदि शामिल हैं। वहीं, तिलहन संघ, परिवहन निगम के कर्मचारियों को तो पांचवां वेतनमान ही मिल रहा। हालांकि इन दोनों निगमों को सरकार बंद कर चुकी है, लेकिन यहां कुछ कर्मचारी पदस्थ हैं। कुछ मामले अदालत तक भी पहुंचे हैं। राज्य के कर्मचारी केंद्र सरकार के समान महंगाई भत्ता और एरियर के भुगतान की भी मांग कर रहे हैं, लेकिन यह पूरी नहीं हो रही है।
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क्या कहते हैं कर्मचारी संगठन
मंत्रालय सेवा अधिकारी कर्मचारी संघ के अध्यक्ष सुधीर नायक, मध्य प्रदेश अधिकारी कर्मचारी संयुक्त मोर्चा के जिलाध्यक्ष उमाशंकर तिवारी और कहते हैं, आठवां वेतनमान लागू होने के पहले मध्य प्रदेश सरकार वेतन विसंगतियां दूर करे।
सरकार के सामने संकट बजट का
सरकार के सामने सबसे बड़ी समस्या खाली खजाने की है। प्रदेश में करीब साढ़े छह लाख अधिकारी-कर्मचारी हैं। हर साल करीब 88 हजार 581 करोड़ रुपए अधिकारी-कर्मचारियों के वेतन-भत्तों पर खर्च होते हैं। यह राज्य सरकार के बजट का 16.65 प्रतिशत है। 8वां वेतनमान लागू होने पर खर्च एक लाख करोड़ रुपए तक पहुंचने का अनुमान जताया जा रहा है।
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मध्य प्रदेश में कर्मचारी एक नजर
- 5,90,550 नियमित कर्मचारी हैं सरकारी विभागों में
- 37,330 कर्मचारी सार्वजनिक उपक्रम, अर्द्धशासकीय संस्थानों में
- 30,972 अधिकारी कर्मचारी नगरीय स्थानीय निकायों में
- 5,413 कर्मचारी ग्रामीण स्थानीय निकायों में पदस्थ
- 4,498 कर्मचारी राज्य के विश्वविद्यालयों में पदस्थ
- 688 कर्मचारी विकास प्राधिकरण व विशेष क्षेत्र प्राधिकरणों में
1. छठवें वेतनमान की स्थिति
केंद्र सरकार ने 1 जनवरी 2006 से लाभ दिया। मध्य प्रदेश में यह 2008 से लागू किया गया। हालांकि सरकार ने इसका लाभ 2006 से ही दिया।
2. सातवें वेतनमान की स्थिति
केंद्रीय कर्मचारियों को सातवें वेतनमान का लाभ 1 जनवरी 2016 से मिला। मध्य प्रदेश में यह जुलाई 2017 से लागू हुआ। कर्मचारियों को 18 महीने का एरियर दिया गया।
विस्तार से समझिए वेतन आयोगों का मामला
देश में पहला वेतन आयोग आजादी के पहले 1946 में गठित हुआ था। इसके अध्यक्ष श्रीनिवास वरदाचार्य थे। इसके बाद साल 1957, 1970, 1983, 1994, 2006 एवं 2013 में केंद्रीय वेतन आयोग गठित होते रहे हैं। 2013 में जस्टिस अशोक कुमार माथुर की अध्यक्षता में 7वां वेतन आयोग गठित हुआ था, जिसकी अनुशंसाएं 1 जनवरी 2016 से लागू हुईं। अभी मध्य प्रदेश में यह प्रभावशील है। 8वां वेतनमान 1 जनवरी 2026 से लागू किया जाना प्रस्तावित है। उल्लेखनीय है कि बाजार को देखते हुए केंद्र सरकार हर 10 साल में कर्मचारियों के वेतन में वृद्धि करती है।
1989 में राज्य के कर्मचारियों ने लिया पहली बार केंद्रीय वेतनमान
केंद्रीय वेतन आयोग की अनुशंसाएं केवल केंद्रीय कर्मचारियों के लिए होती हैं, पर राज्यों के कर्मचारी संघर्ष कर वेतनमान सहित कुछ अनुशंसाएं अपने लिए लागू कराने में सफल होते आए हैं। मध्य प्रदेश के कर्मचारी 1989 में पहली बार केंद्रीय वेतनमान लेने में सफल हुए थे, जिसको 1986 से लागू माना गया था, तभी से यहां के कर्मचारियों को केंद्रीय वेतन आयोग की अनुशंसाओं का लाभ मिलता आ रहा है।
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क्या फायदा होता है वेतनमान बढ़ने से
इसे लेकर ईवाई इंडिया के मुख्य नीति सलाहकार डीके श्रीवास्तव कहते हैं, 1947 से अब तक आए सातों वेतनमान ने सरकारी खर्च तो बढ़ाए, लेकिन लाखों लोगों की वित्तीय स्थिति भी सुधारी है। सातवें वेतनमान में सरकारी खर्च एक लाख करोड़ रुपए बढ़ा था। इससे देश में दो बदलाव सामने आए थे। इसमें पहला तो यह हुआ कि पैसा या तो बैंक में गया है या फिर बाजार में आया। इसका असर हुआ कि मांग बढ़ी और लाभ हुआ।
कर्मचारी संगठनों की 51 सूत्रीय मांगें और संघर्ष
- पुरानी पेंशन योजना की बहाली।
- केंद्र के समान महंगाई भत्ता और एरियर का भुगतान।
- लिपिक संवर्ग को मंत्रालयीन कर्मचारियों के समान वेतनमान।
- पटवारियों का ग्रेड पे 2800 रुपए किया जाए।
- स्वास्थ्य कर्मचारियों की लंबित मांगों का शीघ्र निराकरण।
- दैनिक वेतनभोगी, संविदा कर्मचारी और स्थाई कर्मियों का नियमितीकरण।
- तृतीय और चतुर्थ श्रेणी पदों पर आउटसोर्स भर्ती पर रोक।
- अनुकंपा नियुक्तियों के मामलों का शीघ्र निपटारा।
सरकार के लिए अग्निपरीक्षा
अब सवाल यह उठता है कि क्या मध्य प्रदेश की डॉ.मोहन यादव सरकार कर्मचारियों की इन मांगों को गंभीरता से लेकर कोई ठोस निर्णय लेगी या यह आंदोलन और बड़ा रूप लेगा? 16 फरवरी की महारैली इस मुद्दे की दिशा तय करेगी। यदि सरकार समय रहते कोई ठोस कदम नहीं उठाती तो लाखों कर्मचारी और उनके परिवार असंतोष की स्थिति में आ सकते हैं।
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