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Photograph: (THESOOTR)
मध्य प्रदेश ट्रांसपोर्ट विभाग की 2012 की भर्ती ने 12 साल बाद विवाद खड़ा किया है। विभाग ने महिला आरक्षित पदों पर पुरुषों को नियुक्त किया था। अब अदालत के आदेश से इन नियुक्तियों को रद्द कर दिया गया है। जिन कर्मचारियों ने एक दशक से अधिक सेवा की, उन्हें बाहर कर दिया गया। हाईकोर्ट ने मानवीय दृष्टिकोण से इस मामले को देखा है। सरकार को समाधान निकालने का निर्देश दिया गया है ताकि महिला आरक्षण सुरक्षित रहे और कर्मचारियों का अहित न हो।
महिला पदों पर पुरुषों की नियुक्ति से उलझा था मामला
साल 2012 में मध्य प्रदेश सरकार के ट्रांसपोर्ट विभाग ने परिवहन कांस्टेबल के 332 पदों के लिए भर्ती निकाली थी। इस भर्ती में 100 पद केवल महिला उम्मीदवारों के लिए आरक्षित रखे गए थे। इनमें 50 सामान्य वर्ग, 15 अनुसूचित जाति, 20 अनुसूचित जनजाति और 15 ओबीसी वर्ग की महिलाएं शामिल थीं। भर्ती की प्रक्रिया पूरी होने पर यह सामने आया कि केवल 8 महिला अभ्यर्थी ही पात्र पाई गईं। ऐसे में विभाग ने शेष महिला पदों को भरने के लिए पुरुष उम्मीदवारों की नियुक्ति कर दी, ताकि पद खाली न रहें और विभागीय कार्य प्रभावित न हो।
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महिलाओं और पुरुषों से मांगी थी एक सी शारीरिक योग्यता
कुछ महिला अभ्यर्थियों ने इस प्रक्रिया को कोर्ट में चुनौती दी। उनका तर्क था कि भर्ती विज्ञापन में महिलाओं के लिए भी वही शारीरिक मापदंड रखे गए थे जो पुरुषों के लिए थे 1.68 मीटर की ऊंचाई और 81-86 सेमी छाती का माप। यह मानक महिला शरीर संरचना के अनुसार अव्यावहारिक थे, जिससे बहुत सी योग्य महिला अभ्यर्थी आवेदन ही नहीं कर सकीं। इस असमानता को लेकर हिमाद्री राजे और अन्य महिला अभ्यर्थियों ने ग्वालियर खंडपीठ में याचिका दायर की।
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महिला पदों पर पुरुषों की नियुक्ति हुई थी अमान्य
ग्वालियर खंडपीठ ने 27 जनवरी 2014 को इस याचिका पर फैसला सुनाया था। आदेश के निर्देश क्रमांक-3 में साफ कहा गया कि "महिला उम्मीदवारों के लिए आरक्षित पदों पर की गई पुरुष अभ्यर्थियों की नियुक्तियाँ रद्द मानी जाएंगी।" कोर्ट का यह फैसला ट्रांसपोर्ट विभाग के लिए एक बड़ा झटका था, क्योंकि जिन पदों पर पुरुषों की नियुक्ति की गई थी, वे अब अवैध मानी जाने लगीं।
राज्य सरकार गई सुप्रीम कोर्ट, वहां भी नहीं मिली राहत
हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर की, जिसकी संख्या 29839/2014 थी। सरकार ने केवल उस निर्देश को चुनौती दी जिसमें पुरुषों की नियुक्ति को रद्द करने की बात कही गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर नोटिस तो जारी किया, लेकिन महिला पदों पर नई नियुक्तियों पर रोक लगा दी। आखिरकार 29 अगस्त 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की यह याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि इसमें कोई दम नहीं है।
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बर्खास्त कर्मचारियों ने कोर्ट से पूछा हमारी क्या गलती
इस आदेश के बाद ट्रांसपोर्ट विभाग ने 25 सितंबर 2024 को उन सभी पुरुष अभ्यर्थियों की नियुक्तियाँ रद्द कर दीं जो महिला आरक्षित कोटे में शामिल किए गए थे। इससे प्रभावित कर्मचारी हाईकोर्ट की शरण में गए। उनका कहना था कि उन्होंने विभाग को कोई झूठी जानकारी नहीं दी थी। उन्हें नियुक्त इसीलिए किया गया था क्योंकि पर्याप्त योग्य महिला अभ्यर्थी नहीं मिली थीं। विभाग में वर्तमान में 342 पद रिक्त हैं और केवल 308 कर्मचारी कार्यरत हैं, ऐसे में उनके लिए समायोजन संभव है।
कम अंक वालों की नौकरी बची, ज्यादा अंक वाले बाहर
बर्खास्त कर्मचारियों ने कोर्ट में यह भी तर्क दिया कि उनके हटाए जाने के बाद विभाग में अभी भी ऐसे अभ्यर्थी कार्यरत हैं जिनकी मेरिट उनसे कम थी। इन अभ्यर्थियों को हटाया नहीं गया क्योंकि उनके नियुक्ति पत्र में यह नहीं लिखा गया था कि नियुक्ति कोर्ट के आदेश पर निर्भर करेगी। जबकि बर्खास्त कर्मचारियों के अपॉइंटमेंट लेटर में स्पष्ट लिखा गया था कि उनकी नियुक्ति अदालत के निर्णय के अधीन रहेगी।
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जस्टिस विशाल मिश्रा की कोर्ट में उठा था सवाल
ग्वालियर हाईकोर्ट के बाद यह मामला दोबारा जस्टिस विशाल मिश्रा की अदालत में भी पहुंचा था तब उन्होंने पाया था कि विभाग ने एकतरफा निर्णय लेते हुए महिला पदों पर पुरुषों को नियुक्त कर दिया और बाद में जब कानूनी अड़चन आई, तो पूरा दोष उन्हीं कर्मचारियों पर डाल दिया गया जो पूरी निष्ठा से 12 साल से काम कर रहे थे। कोर्ट में यह भी बताया गया कि जब हिमाद्री राजे केस में महिला उम्मीदवारों के लिए शारीरिक मापदंड बदलने के निर्देश दिए गए थे, तब ही महिला आरक्षण के तहत नई चयन प्रक्रिया शुरू होनी थी। मगर विभाग ने ऐसा नहीं किया और अब वर्षों बाद पुराने कर्मचारियों को हटाया जा रहा है।
अक्टूबर 2024 में जस्टिस विशाल मिश्रा की कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा था कि कर्मचारियों से नौकरी छीनना प्रशासन की गलती का समाधान नहीं है। उन्होंने राज्य के मुख्य सचिव को निर्देश दिया कि वे वरिष्ठ अधिकारियों की एक समिति बनाकर जांच करें और यह स्पष्ट करें कि किस अधिकारी की गलती से यह स्थिति बनी। कोर्ट ने कहा कि यदि कर्मचारियों को सेवा में बनाए रखने के लिए अनधिकृत वेतन दिया गया हो, तो उसे संबंधित दोषी अधिकारी से वसूल किया जाए न कि उन कर्मचारियों से जो वर्षों तक सेवा करते रहे।
मानवीय दृष्टिकोण से निकला जाए हल: HC
16 जून 2025 को यह मामला जस्टिस अतुल श्रीधरन की डिवीजन बेंच के सामने आया। बेंच ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह केवल एक तकनीकी या कानूनी मामला नहीं है, बल्कि इसमें मानवीय पहलू भी शामिल है। कोर्ट ने यह टिप्पणी की कि जिन कर्मचारियों ने विभाग को 12 सालों तक सेवा दी, उन्हें अब इस तरह से बाहर किया जाना न केवल अन्याय है, बल्कि यह प्रशासनिक असंवेदनशीलता का भी उदाहरण है।
समाधान निकालें, नौकरियां बचाएं: HC
हाईकोर्ट ने ट्रांसपोर्ट विभाग के कमिश्नर को निर्देशित किया है कि वे अगली सुनवाई में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अदालत से जुड़ें और यह बताएं कि सरकार इस मसले को कैसे हल करने जा रही है। कोर्ट ने यह भी कहा कि एक ऐसा समाधान निकाला जाए जिससे महिला आरक्षण का सम्मान बना रहे और साथ ही, वर्षों से कार्यरत कर्मचारियों को नौकरी से हाथ न धोना पड़े।
आरक्षक | मध्यप्रदेश | जबलपुर
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