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Photograph: (THESOOTR)
मध्यप्रदेश के सरकारी कर्मचारियों के प्रमोशन का मामला एक बार फिर ठंडे बस्ते में जा सकता है। thesootr ने ही सबसे पहले आपको बताया था सीएम डॉ. मोहन यादव इस विवाद को खत्म करना चाहते हैं। इसके लिए अगली केबिनेट में प्रस्ताव लाने की तैयारियां भी हो चुकी हैं। SC-ST कर्मचारियों के संगठन अजाक्स ने तो मिठाइयां बांटने की तैयारी भी कर ली थी, मगर सपाक्स इस फैसले से खुश नहीं है। जाहिर है वल्लभ भवन में विरोध के स्वर तेज हो चुके हैं। पहले निवेदन की तैयारी है और बात न बनी तो कोर्ट का रास्ता तो खुला ही है… चलिए लाखों कर्मचारियों से जुड़ी इस खबर को विस्तार से समझते हैं…
मंगलवार को सीएम से मिलेगा सपाक्स
Thesootr को मिली अधिकृत जानकारी के अनुसार सरकार की प्रमोशन संबंधी घोषणा से सपाक्स यानी सामान्य वर्ग से आने वाले कर्मचारी बिल्कुल खुश नहीं है। उनका कहना है कि इस विवाद का जो मूल कारण है, वो तो जस का तस है। ऐसे में SC-ST वर्ग के जूनियर कर्मचारी प्रमोशन के बाद हमारे सीनियर हो जाएंगे। बहरहाल सपाक्स ने कर्मचारियों के समर्थन के लिए हस्ताक्षर अभियान शुरू कर दिया है। दूसरी ओर सीएम मोहन यादव से मंगलवार को मिलने का समय मांगा है। सपाक्स के अधिकृत जिम्मेदारों के अनुसार मामला अभी भी हाईकोर्ट में स्टेटस को है। ऐसे में नए नियम का क्या अर्थ है। हम फिलहाल सीएम से मिलकर इस नियम को पास न करने का आग्रह करेंगे। अगर सपाक्स के कर्मचारियों का अहित हुआ तो कोर्ट भी जाएंगे।
समझें क्यों फंसा है मप्र में कर्मचारियों का प्रमोशन
मध्य प्रदेश में कर्मचारियों का प्रमोशन एक लंबी कानूनी और प्रशासनिक उलझन में फंसा हुआ है। 2002 के पदोन्नति नियमों में SC-ST वर्ग को आरक्षण देने का प्रावधान था, जिसे 2016 में हाई कोर्ट ने असंवैधानिक घोषित कर दिया था। इसके बाद से एक लाख से अधिक कर्मचारी बिना पदोन्नति के रिटायर हो गए। विभागीय पदोन्नति समितियों की बैठकें नौ साल से नहीं हुईं, जिसके कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई।
शिवराज सरकार ने उच्च पदों का प्रभार देने की कोशिश की, लेकिन इससे भी संतुष्टि नहीं मिली। अब मोहन सरकार ने कर्मचारियों की नाराजगी को देखते हुए नए नियमों पर काम शुरू किया है। यदि सभी प्रक्रिया सही रही, तो नए नियम आनेवाली कैबिनेट मीटिंग में मंजूर किए जा सकते हैं। इससे कर्मचारियों को राहत मिलेगी और प्रशासनिक स्तर पर मजबूत नेतृत्व सुनिश्चित होगा।
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रिटायर हो गए लाखों कर्मचारी, नहीं मिला प्रमोशन
मध्य प्रदेश लोक सेवा पदोन्नति नियम 2002 को 2016 में हाई कोर्ट जबलपुर ने निरस्त किया था। इसके बाद एक लाख से अधिक अधिकारी-कर्मचारी बिना पदोन्नति के सेवानिवृत्त हो गए। ये सभी पदोन्नति के पात्र थे, लेकिन नियम न होने के कारण विभागीय पदोन्नति समिति की बैठकें नौ साल से नहीं हुईं।
सीएम मोहन यादव की सरकार ने कर्मचारियों की नाराजगी को देखते हुए नए नियम का खाका तैयार किया है। शिवराज सरकार ने उच्च पदों का प्रभार देने की व्यवस्था बनाई थी, लेकिन यह भी संतुष्ट नहीं कर पाई। मोहन सरकार ने इसे अन्याय माना और नए नियम पर काम शुरू किया। यदि सब कुछ सही रहा, तो जून में नए नियम कैबिनेट से अनुमोदित होकर अधिसूचित हो जाएंगे।
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शिवराज सरकार की कोशिश
हाईकोर्ट के निर्णय के बाद शिवराज सिंह चौहान सरकार ने कर्मचारियों को उच्च पद का प्रभार दिया था। यह समाधान सभी को संतुष्ट नहीं कर सका। शिवराज के "कोई माई का लाल आरक्षण खत्म नहीं कर सकता" बयान ने सामान्य वर्ग के कर्मचारियों को नाराज कर दिया। इसका राजनीतिक नुकसान भाजपा को 2018 के चुनाव में हुआ।
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सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित
कमलनाथ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जल्द सुनवाई की अपील की, लेकिन कोई ठोस समाधान नहीं निकल पाया। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता मनोज गोरकेला से नए नियम का ड्राफ्ट भी बनवाया गया, लेकिन उस पर निर्णय नहीं हो सका। इसके बाद यह मुद्दा डॉ. नरोत्तम मिश्रा की समिति के पास गया जिसने रिपोर्ट तैयार की, मगर 2023 चुनाव के कारण मामला फिर अटक गया।
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पदोन्नति नियम 2002
पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में बनाए गए नियमों के तहत sc-st वर्ग को पदोन्नति में आरक्षण दिया गया था। यह आरक्षण जनसंख्या के अनुपात में निर्धारित किया गया था। 2016 में हाई कोर्ट ने इस नियम को असंवैधानिक बताते हुए इसे रद्द कर दिया। कोर्ट का कहना था कि सुप्रीम कोर्ट के एम. नागराज केस के निर्देशों का पालन नहीं किया गया था।
पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान | सरकारी कर्मचारी
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