साल में कितनी बार बदलता है महाकाल की आरती का समय, क्या है इसके पीछे का रहस्य

महाकाल मंदिर में कार्तिक मास प्रतिपदा से फाल्गुन पूर्णिमा तक आरतियों के समय में बदलाव होता है। यह परिवर्तन मुख्य रूप से जलवायु परिवर्तन और पंचांग के नियमों पर आधारित है, ताकि बाबा महाकाल की शीत ऋतु की सेवा विधि-विधान से हो सके।

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Kaushiki
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महाकाल की आरती: धर्म और अध्यात्म की नगरी श्री महाकालेश्वर मंदिर उज्जैन में विराजमान देवाधिदेव की हर परंपरा अपने आप में एक रहस्य और वैज्ञानिक सच समेटे हुए है। उनकी हर परंपरा के पीछे कोई न कोई गहरा धार्मिक या वैज्ञानिक रहस्य छिपा होता है। यहां बाबा की दिनचर्या, उनके नहलाने से लेकर रात को सोने तक सब कुछ मौसम, पंचांग और पुरानी मान्यताओं के नियम से बंधा हुआ है। 

यहां साल में दो बार एक बड़ा बदलाव होता है। वो है महाकाल की आरतियों के समय में फेरबदल। ये टाइमिंग का बदलाव कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होता है और चलता है फाल्गुन महीने की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा (यानी होली) तक। हाल ही में जब शरद पूर्णिमा का त्योहार खत्म हुआ तो मंदिर में आरती के समय में भी यह जरूरी बदलाव कर दिया गया है।

ऐसे में भक्तों के मन में सवाल आता है कि आखिर ये कार्तिक और फाल्गुन की तारीखें ही बाबा महाकाल के टाइम-टेबल को क्यों बदलती हैं? आइए, जानते हैं इसके पीछे की पूरी कहानी।

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कार्तिक-फाल्गुन का मौसमी कनेक्शन

महाकाल की आरतियों के समय का यह बदलाव केवल घड़ी आगे-पीछे करना नहीं है बल्कि यह कार्तिक प्रतिपदा से फाल्गुन पूर्णिमा तक चलने वाला एक सालाना धार्मिक चक्र है, जिसे 'शीतकालीन सेवा काल' भी कह सकते हैं। इसमें ठंड का आगमन और बाबा की खास सेवा होती है।

कार्तिक प्रतिपदा से शुरुआत: 

भारतीय पंचांग के हिसाब से, कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा (जो लगभग दिवाली के ठीक बाद आती है) से ही हमारे देश के मध्य हिस्से में तेज ठंड पड़नी शुरू हो जाती है। मान्यता है कि हमारे बाबा महाकाल, जो सबके कष्ट हरने वाले हैं, उनकी सेवा-पूजा में भी इस ठंड का ध्यान रखना जरूरी है।

इसीलिए, इसी दौरान से बाबा महाकाल को गर्म पानी से नहलाने की परंपरा शुरू होती है (जो रूप चौदस से होती है)। इस तरह कार्तिक प्रतिपदा से लेकर फाल्गुन पूर्णिमा तक की अवधि में बाबा की पूजा-अर्चना के नियम ठंड के हिसाब से बदल जाते हैं, और आरतियों का समय भी इसी का हिस्सा है।

फाल्गुन पूर्णिमा: ठंड की विदाई

वहीं, फाल्गुन पूर्णिमा का मतलब है होली का त्योहार। यह तारीख साफ संकेत देती है कि अब सर्दी खत्म हो गई है और गरमी शुरू होने वाली है।

जब गरमी बढ़ने लगती है, तो बाबा महाकाल की सेवा में फिर से सामान्य या ठंडे जल का इस्तेमाल शुरू हो जाता है। इस तरह यह पूरा चक्र पूरा होता है।

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आरती का समय बदलने के दो बड़े कारण

मंदिर में आरतियों के समय में बदलाव का सीधा संबंध भक्तों की सुविधा और सूरज की चाल से जुड़ा है:

  • सूरज की चाल और दिन की लंबाई

    सर्दियों में सूरज देरी से उगता है और जल्दी डूब जाता है और दिन छोटे हो जाते हैं। चूंकि शाम की आरती (संध्या आरती) समेत कई पूजा-पाठ सूरज की गति के हिसाब से होते हैं, इसलिए उन्हें थोड़ा पहले करना पड़ता है।

  • ठंड से भक्तों को राहत

    कड़ाके की ठंड में, दूर-दराज से आए श्रद्धालुओं के लिए सुबह की आरती (द्दयोदक आरती) का समय थोड़ा आगे बढ़ा दिया जाता है। ताकि लोग सुबह की तेज ठंड से बचकर, सूरज निकलने के बाद आराम से दर्शन और पुण्य लाभ ले सकें। पुजारी बताते हैं कि यह कोई नया नियम नहीं है बल्कि सदियों से चली आ रही एक पुरानी और जरूरी परंपरा है जिसका पालन करना जरूरी होता है।

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किन आरतियों का टाइम बदला है

ये बदलाव दिन के बीच की तीन आरतियों पर लागू होता है:

  • सुबह की आरती (द्दयोदक आरती):

    नया समय: सुबह 7:30 बजे से 8:15 बजे तक।

    (पुराना/गर्मियों का समय करीब 7:00 बजे था)।

  • भोग आरती (दोपहर की):

    नया समय: सुबह 10:30 बजे से 11:15 बजे तक।

    (पुराना/गर्मियों का समय करीब 10:00 बजे था)।

  • शाम की आरती (संध्या आरती):

    नया समय: शाम 6:30 बजे से 07:15 बजे तक।

    (पुराना/गर्मियों का समय करीब 7:00 बजे था)।

ध्यान दें: उज्जैन के बाबा महाकाल की भस्मारती (बाबा महाकालभस्म आरती), शाम का पूजन और शयन आरती का समय पूरे साल नहीं बदलता है। इस तरह, कार्तिक प्रतिपदा से फाल्गुन पूर्णिमा तक भक्तों को ठंड के मौसम में भी बाबा महाकाल के दर्शन का मौका मिलता है।

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