महाकाल और ओंकारेश्वर मंदिर में हुआ भोलेबाबा का अनोखा श्रृंगार, दो पवित्र धामों में मंत्रमुग्ध हुए भक्त

उज्जैन में श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर की मंगलवार की भस्म आरती का विशेष महत्व है, जहां भगवान महाकाल का भांग-चंदन और त्रिपुण्ड से श्रृंगार होता है। दूसरी ओर श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का मंगला आरती श्रृंगार भक्तों को दिव्य दर्शन दे रहा है।

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Kaushiki
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उज्जैन में स्थित श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर, बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और यहां की भस्म आरती विश्व भर में प्रसिद्ध है। मंगलवार की भस्म आरती का एक विशेष महत्व है, जब भगवान महाकाल का विशेष श्रृंगार किया जाता है।

इस दिन होने वाले श्रृंगार और आरती की भव्यता भक्तों को मंत्रमुग्ध कर देती है। यह सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक दिव्य अनुभव है जो भक्तों को सीधे भगवान से जोड़ता है। सुबह 4 बजे मंदिर के कपाट खुलते ही एक अलग ही माहौल बन जाता है।

सबसे पहले सभा मंडप में वीरभद्र जी के कान में स्वस्ति वाचन कर घंटी बजाई जाती है, जिसके बाद भगवान से आज्ञा लेकर सभा मंडप के चांदी के पट खोले जाते हैं। यह प्रक्रिया दर्शाती है कि महाकाल सिर्फ एक देव नहीं, बल्कि इस पूरी सृष्टि के राजा हैं और हर कार्य उनकी आज्ञा से ही होता है।

दूसरी ओर, आज 12 अगस्त 2025 को श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का मंगला आरती श्रृंगार भक्तों को दिव्य दर्शन दे रहा है, जो नर्मदा नदी के बीच स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है।

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मंगलवार की भस्म आरती का दिव्य श्रृंगार

आज मंगलवार की भस्म आरती का श्रृंगार बेहद खास होता है। सबसे पहले भगवान का अभिषेक करने से पहले उनका श्रृंगार उतारा जाता है और फिर पंचामृत से पूजन किया जाता है।

दूध, दही, घी, शक्कर और शहद के साथ फलों के रस से बने पंचामृत से भगवान का अभिषेक किया जाता है। इसके बाद कर्पूर आरती होती है, जो पूरे वातावरण को सुगंधित कर देती है।

आज के दिन, भगवान महाकाल का श्रृंगार भांग और चन्दन से किया गया। उनके माथे पर त्रिपुण्ड बनाया गया, जो शिव के तीन नेत्रों का प्रतीक है।

इसके साथ ही उन्हें त्रिशूल भी अर्पित किया गया, जो भगवान शिव के शक्ति का प्रतीक है। रुद्राक्ष की माला और रजत मुकुट से भगवान को सजाया गया। यह श्रृंगार न केवल देखने में सुंदर होता है बल्कि इसका हर एक तत्व गहरा आध्यात्मिक अर्थ रखता है।

  • त्रिपुण्ड (Tripund): यह तीन क्षैतिज रेखाओं से बना होता है, जो भगवान शिव के तीन नेत्रों, तीन गुणों (सत, रज, तम), और तीन कालों (भूत, वर्तमान, भविष्य) का प्रतीक है।
  • त्रिशूल (Trishul): यह भगवान शिव का सबसे शक्तिशाली शस्त्र है। इसके तीन भाग तीन शक्तियों - इच्छा, ज्ञान और क्रिया को दर्शाते हैं।
  • त्रिनेत्र (Trinetra): भगवान शिव का तीसरा नेत्र ज्ञान और अंतर्दृष्टि का प्रतीक है। इसे खोलने पर अज्ञानता और बुराई का नाश होता है।

भस्म आरती की धार्मिक मान्यताएं

भस्म आरती के बारे में कई मान्यताएं हैं। सबसे प्रमुख मान्यता यह है कि महा निर्वाणी अखाड़े की ओर से भगवान महाकाल को जो भस्म अर्पित की जाती है, वह श्मशान की भस्म होती है। इस भस्म को अर्पित करने के बाद भगवान निराकार से साकार रूप में भक्तों को दर्शन देते हैं।

यह भस्म जीवन और मृत्यु के चक्र को दर्शाती है और हमें यह याद दिलाती है कि जीवन क्षणभंगुर है और अंत में सब कुछ भस्म में ही मिल जाता है। आरती में झांझ, मंजीरे और डमरू की ध्वनि से पूरा मंदिर गूंज उठता है।

यह ध्वनि भक्तों को एक अलग ही ऊर्जा प्रदान करती है। इस दौरान हजारों की संख्या में श्रद्धालु नंदी हॉल में बैठकर बाबा महाकाल का आशीर्वाद लेते हैं। इस आरती का हिस्सा बनना अपने आप में एक सौभाग्य माना जाता है।

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नंदी जी का विशेष पूजन

भस्म आरती से पहले नंदी हॉल में भगवान शिव के वाहन नंदी जी का भी स्नान, ध्यान और पूजन किया जाता है। नंदी को शिव का परम भक्त और द्वारपाल माना जाता है।

नंदी जी के पूजन के बाद ही भगवान महाकाल की भस्म आरती शुरू होती है। यह दर्शाता है कि हर पूजा और अनुष्ठान में भगवान के प्रिय गणों का भी सम्मान किया जाता है।

भक्तों का उत्साह और अटूट श्रद्धा

मंगलवार की भस्म आरती में भक्तों का उत्साह देखते ही बनता है। दूर-दूर से आए श्रद्धालु कतारों में लगकर महाकाल के दर्शन का इंतजार करते हैं। भस्म आरती के बाद जब भगवान निराकार से साकार रूप में दर्शन देते हैं, तो भक्तों की आंखों में आंसू आ जाते हैं।

यह उनकी अटूट श्रद्धा और भक्ति का प्रमाण है। उज्जैन का श्री महाकालेश्वर मंदिर सिर्फ एक तीर्थस्थल नहीं, बल्कि एक ऐसा स्थान है जहां भगवान और भक्त के बीच का रिश्ता सबसे गहरा होता है। यहां की भस्म आरती इसी रिश्ते का सबसे जीवंत उदाहरण है।

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग में मंगला आरती

आज 12 अगस्त 2025 को श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के मंगला आरती श्रृंगार दर्शन का अद्भुत दृश्य है। भगवान ओंकारेश्वर का दिव्य रूप भक्तों को मंत्रमुग्ध कर रहा है। ओंकारेश्वर मंदिरमें आज उन्हें फूलों और विशेष अलंकरणों से सजाया गया। भक्तों ने आरती और भजनों के साथ उनका आशीर्वाद लिया। यह पवित्र दर्शन जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लेकर आता है।

श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में स्थित है। यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर नर्मदा नदी के बीच एक द्वीप पर है, जिसका आकार 'ॐ' जैसा दिखता है, इसलिए इसका नाम ओंकारेश्वर पड़ा।

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