ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी ने गिरफ्तारी वारंट पर ली हाईकोर्ट की शरण, सुनवाई पूरी, फैसला सुरक्षित

टीएमसी सांसद अभिषेक बनर्जी की 12 नवंबर को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। उन्होंने गिरफ्तारी वारंट को चुनौती दी है। यह वारंट भोपाल की एमपी/एमएलए कोर्ट ने जारी किया था।

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Neel Tiwari
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Abhishek Banerjee
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JABALPUR. टीएमसी सांसद अभिषेक बनर्जी की मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में  12 नवंबर को सुनवाई हुई। फैसला हर्ड एंड रिजर्व रखा गया है। दरअसल पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी ने गिरफ्तारी वारंट को चुनौती दी है। यह वारंट भोपाल की एमपी/एमएलए कोर्ट ने जारी किया था। अभिषेक बार-बार पेशी में अनुपस्थित रहे। 12 नवंबर को सुनवाई के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा है।

2020 के बयान से जुड़ा विवाद

पूरा मामला नवंबर 2020 का है। अभिषेक ने कोलकाता में एक जनसभा के दौरान भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय के बेटे आकाश को गुंडा कहा था। इस बयान को लेकर आकाश विजयवर्गीय ने 2021 में मानहानि का मुकदमा दायर किया था। मामला भोपाल की एमपी/एमएलए कोर्ट में 1 मई 2021 से लंबित है। लेकिन अभिषेक अब तक किसी भी सुनवाई में उपस्थित नहीं हुए।

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कोर्ट ने जारी किया वारंट

लगातार अनुपस्थिति के बाद 26 अगस्त 2024 को भोपाल सेशन कोर्ट ने उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया। इसके बाद अभिषेक बनर्जी ने इस वारंट को चुनौती देते हुए जबलपुर हाईकोर्ट में याचिका दायर की। यह याचिका 5 नवंबर को रजिस्टर्ड हुई थी। 10 नवंबर को प्रतिवादियों को नोटिस जारी किए गए। 10 नवंबर के आदेश के अनुसार ही इस मामले की सुनवाई 12 नवंबर तय की गई थी।

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जस्टिस प्रमोद अग्रवाल की बेंच ने फैसला सुरक्षित रखा

इस मामले की सुनवाई 12 नवंबर को जस्टिस प्रमोद अग्रवाल की एकल पीठ के समक्ष हुई। जहां बहस पूरी होने के बाद अदालत ने मामले को हर्ड एंड रिजर्व कर लिया है।

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लेकिन सुनवाई से पहले ही खबर कैसे छप गई?

इस पूरे घटनाक्रम में एक दिलचस्प मोड़ यह रहा कि 11 नवंबर को ही कई अखबारों और मीडिया में यह खबर छप गई थी। कि हाईकोर्ट ने मामले को हर्ड एंड रिजर्व कर लिया है। जबकि वास्तविक सुनवाई 12 नवंबर को हुई। यह तथ्य अदालत के रिकॉर्ड और रिपोर्टों के बीच तारीखों के अंतर पर सवाल खड़ा करता है। सवाल है कि सुनवाई से पहले ही फैसले की स्थिति की खबर कैसे प्रकाशित की गई?

अब निगाहें हाईकोर्ट के फैसले पर हैं, जो तय करेगा कि अभिषेक बनर्जी को गिरफ्तारी वारंट से राहत मिलेगी या नहीं। यह मामला न केवल राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि मीडिया रिपोर्टिंग की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़ा कर रहा है।

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