BHOPAL. ग्रामीण परिवारों को रोजगार की गारंटी देने वाली मनरेगा परिषद प्रदेश में भगवानभरोसे चल रही है। परिषद के प्रदेश मुख्यालय में एक भी स्थाई अधिकारी अथवा कर्मचारी नहीं है। आयुक्त का कार्यभार प्रतिनियुक्ति पर आए अधिकारी संभाल रहे हैं। कुछ अन्य कर्मचारी भी जो आउटसोर्स और प्रतिनियुक्ति के आधार पर कार्यरत हैं। शीर्ष से लेकर सबसे छोटे कर्मचारी के पद पर भी नियमित अधिकारी या कर्मचारी नहीं है। इस वजह से प्रदेश में मनरेगा यानी रोजगार गारंटी योजना दुर्दशा का शिकार है। योजना के तहत गिने- चुने काम ही चल रहे हैं, नए प्रस्ताव अटके हुए हैं। जिन कामों को स्वीकृति मिली है वे भी मशीनों के जरिए कराए जा रहे हैं। यानी रोजगार की गारंटी देने वाली परिषद अपनी ही गारंटी खो बैठी हैं।
आउटसोर्सकर्मियों के सहारे परिषद
मध्यप्रदेश में राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत राज्य रोजगार गारंटी परिषद काम कर रही है। इसके माध्यम से ही इस राष्ट्रीय अभियान के तहत होने वाले कार्यों की कार्ययोजना का निर्धारण, निगरानी और बजट प्रावधान होते हैं। इन महत्वपूर्ण कामों के संचालन की जिम्मेदारी संभालने फिलहाल परिषद के पास एक भी नियमित अधिकारी या कर्मचारी नहीं है। यहां आयुक्त के पद पर प्रतिनियुक्ति पर आए अधिकारी कार्यरत हैं। वहीं यानी परिषद का सर्वोच्च पद ही दूसरे विभाग से आए अधिकारी के भरोसे है।
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आयुक्त-सीइओ भी नहीं नियमित
रोजगार गारंटी परिषद मुख्यालय में आयुक्त के अलावा सीईओ, ज्वाइंट कमिश्नर (निगरानी), संचालक, उपायुक्त लेखा, चीफ इंजीनियर, कार्यपालन यंत्री सहित अधिकारियों के प्रमुख सभी पदों पर आउटसोर्स या प्रतिनियुक्ति के सहारे भरा गया है। मुख्यालय में अधिकारी-कर्मचारियों के 207 पद स्वीकृत हैं लेकिन पर 55 से 60 ही भरे हैं जबकि 150 से ज्यादा पद खाली हैं। वहीं संभाग, जिला और विकासखंड स्तर पर भी कोई नियमित अधिकारी या कर्मचारी नहीं हैं। इन सभी पदों पर आउटसोर्स ही काम कर रहे हैं। परिषद के जिला और विकासखंड कार्यालयों में डाक वाहन, सुरक्षाकर्मी, भृत्य जैसे कर्मचारी भी आउटसोर्स एजेंसी के जरिए काम पर रखे गए हैं।
नहीं हो रही नियमित निगरानी
परिषद में मुख्यालय से लेकर ब्लॉकस्तर तक नियमित अधिकारियों की कमी ने पूरी व्यवस्था चौपट कर दी है। प्रदेश में मनरेगा के तहत अधिकारी- कर्मचारियों के 28412 पद स्वीकृत हैं। इनमें से कुछ प्रतिनियुक्ति से भरे गए हैं तो ज्यादातर आउटसोर्स हैं। आउटसोर्स कर्मचारियों पर सीधे- सीधे जिम्मेदारी नहीं होती इसलिए परिषद के कामों को लेकर लगातार शिकायतें सामने आती हैं। मैदानी स्तर पर नियमित निगरानी का सिस्टम फेल होने से मजदूरों की जगह काम मशीनों से करा लिए जाते हैं। इनका सत्यापन और भुगतान भी आसानी से हो जाता है।
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पंचायत विभाग का भी नहीं सहारा
रोजगार गारंटी परिषद पंचायतों में रहने वाले परिवारों के लिए काम करती है। रोजगार की गारंटी के लिए परिषद ही मजदूरों के माध्यम से होने वाले कामों को स्वीकृति देती है और उनके सत्यापन के बाद भुगतान कराती है। मैदानी अमला नियमित नहीं होने से पंचायतों में मनरेगा के कामों में खुलेआम भ्रष्टाचार जारी है। आउटसोर्स अधिकारी और कर्मचारी मौके पर काम नहीं होने के बाद भी भुगतान को स्वीकृति दे रहे हैं। इसकी शिकायत जब तब मुख्यालय तक पहुंचती हैं लेकिन नियमित अधिकारी न होने से उनकी सुनवाई ही नहीं हो पाती। लाखों रुपए के इन कामों की निगरानी में परिषद को पंचायत विभाग का भी आसरा नहीं है। इसी वजह से अज्ञात, अपात्र,नाबालिगों को मजदूर दिखाकर रुपया निकाल लिया जाता है। जबकि असलियत में यह काम मशीनों से करा लिया जाता है और लाखों रुपए अधिकारी- ठेकेदारों की जेब में चला जाता है।
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