मऊगंज हिंसा पर HC ने मांगी स्टेटस रिपोर्ट, सरकार सहित कलेक्टर और पुलिस अफसरों को भेजा नोटिस

मऊगंज हिंसा पर मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने जनहित याचिका पर सुनवाई की। बेंच ने सरकार, डीजीपी, कलेक्टर और पुलिस अधिकारियों को नोटिस जारी कर स्टेटस रिपोर्ट तलब की है। पूर्व विधायक सुखेंद्र सिंह बन्ना ने सीबीआई जांच की मांग की है।

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Neel Tiwari
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Photograph: (the sootr)

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JABALPUR. रीवा जिले के मऊगंज क्षेत्र में हुई हिंसक घटना और साम्प्रदायिक तनाव के मामले में जनहित याचिका लगाई है। इस याचिका में सीबीआई जांच की मांग की गई है। बुधवार को इस जनहित याचिका पर जबलपुर हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस की डिविजन बेंच ने सुनवाई की। बेंच ने इस मामले मध्यप्रदेश सरकार सहित डीजीपी, आईजी रीवा, एसपी और कलेक्टर मऊगंज को नोटिस जारी करते हुए विस्तृत स्टेटस रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया है। 

अदालत ने यह निर्देश क्षेत्र के पूर्व विधायक सुखेंद्र सिंह बन्ना की दायर जनहित याचिका पर दिया। इसमें मऊगंज हिंसा सहित मुख्य मामले में सीबीआई जांच की मांग की गई है। अब इस मामले की अगली सुनवाई 19 नवंबर को होगी।

पूर्व विधायक ने उठाई CBI जांच की मांग

याचिकाकर्ता पूर्व विधायक सुखेंद्र सिंह बन्ना की ओर से अधिवक्ता काजी फखरुद्दीन ने अदालत को बताया कि मऊगंज क्षेत्र में कुछ वर्ष पूर्व दो लोगों की संदिग्ध परिस्थितियों में हत्या कर दी गई थी। पुलिस ने उसे एक्सीडेंट बताकर मामला दबा दिया। मृतकों के परिजनों ने एसपी से लेकर डीजीपी तक आवेदन दिए। आरोपियों के नाम भी बताए, परंतु राजनीतिक दबाव के चलते किसी पर कार्रवाई नहीं की गई।

याचिका में यह भी कहा गया है कि उस घटना के बाद से ही गांव में कई लोगों की रहस्यमय मौतें हुई हैं और कुछ लोग अब भी लापता बताए जा रहे हैं। बावजूद इसके, पुलिस ने किसी भी घटना की निष्पक्ष जांच नहीं की। इस घटना के पीछे आदिवासी जमीनों पर कब्जे के भी आरोप लगाए जा रहे हैं। 

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पुलिस की निष्क्रियता पर सवाल

याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि मऊगंज में हुए साम्प्रदायिक तनाव के बाद प्रशासन ने हालात काबू में लाने के लिए धारा 144 और 163 तक लागू की थी। लेकिन पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने गंभीरता से कार्रवाई नहीं की। याचिका में आरोप लगाया गया है कि प्रभावशाली लोगों को बचाने के लिए जांच को भटकाया जा रहा है। इसी कारण अब मामले की सीबीआई जांच कराने की मांग की गई है।

ऐसे हुई थी हिंसा की शुरुआत

मऊगंज हिंसा की शुरुआत मार्च 2025 में उस समय हुई जब कुछ दिनों पहले हुए एक सड़क हादसे से जुड़ा विवाद अचानक भड़क उठा। उस सड़क दुर्घटना में अशोक कोल नामक आदिवासी युवक की भी मौत हुई थी। स्थानीय आदिवासियों को शक था कि यह कोई सामान्य हादसा नहीं बल्कि सनी द्विवेदी नामक युवक द्वारा की गई साजिश थी।

इस पुराने विवाद के चलते होली के दूसरे दिन सनी द्विवेदी जब उसी गांव से गुजर रहे थे, तब कुछ ग्रामीणों ने उन्हें पकड़ लिया। बंधक बनाया और कथित रूप से पीट-पीटकर हत्या कर दी।

परिवार की सूचना पर मौके पर तहसीलदार, एसडीओपी, थाना प्रभारी और पुलिस बल पहुंचा। पुलिस जब घर में दाखिल हुई, तो पाया कि सनी की मौत पहले ही हो चुकी थी। इसी बीच, मौके पर मौजूद आदिवासी भीड़ अचानक भड़क उठी और पुलिस पर पथराव और हमला कर दिया। इस दौरान सहायक उपनिरीक्षक (ASI) रामचरण गौतम गंभीर रूप से घायल हुए और बाद में उनकी मृत्यु हो गई। कई पुलिसकर्मी और प्रशासनिक अधिकारी भी घायल हुए।

पुलिस पर लगे मामला भटकाने के आरोप

हिंसा के बाद पूरे क्षेत्र में तनाव फैल गया। भारी पुलिस बल तैनात किया गया और धारा 144 लागू कर दी गई। पुलिस ने हत्या, बलवा और सरकारी कार्य में बाधा के मामलों में एफआईआर दर्ज की। जानकारी के अनुसार अब तक कई आरोपी फरार हैं।

घटना के बाद प्रदेशसरकार ने मृतक एएसआई रामचरण गौतम को शहीद का दर्जा देने, उनके परिजनों को आर्थिक सहायता और सरकारी नौकरी देने की घोषणा की। वहीं, हिंसा को रोकने में लापरवाही बरतने पर मऊगंज के एसपी और कलेक्टर को तत्काल हटा दिया गया और नए अधिकारियों की नियुक्ति की गई।

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अब नजर हाईकोर्ट की सुनवाई पर

जनहित याचिका पर सुनवाई में हाईकोर्ट ने इस मामले में मध्य प्रदेश सरकार, डीजीपी, आईजी रीवा, एसपी और कलेक्टर मऊगंज को नोटिस जारी कर स्टेटस रिपोर्ट तलब की है। अब सबकी नजर 19 नवंबर की अगली सुनवाई पर टिकी हैं। अदालत यह तय करेगी कि मऊगंज की घटनाओं की जांच में क्या प्रगति हुई है और क्या इस पूरे मामले को सीबीआई को सौंपना आवश्यक है।

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