Indore : मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) ने प्रदेश के 15 न्यूरोसर्जन के खिलाफ सख्त कार्रवाई की है। ये सभी दवा कंपनी इंटास फार्मा के खर्चे पर विदेश यात्रा पर गए थे। इन डॉक्टरों का मरीजों का इलाज करने का लाइसेंस छह महीने के लिए निलंबित कर दिया गया है और दवा कंपनी के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई की जाएगी। यह कार्रवाई तब की गई जब स्वास्थ्य अधिकार मंच ने महत्वपूर्ण दस्तावेजों के आधार पर एमसीआई के सामने यह मुद्दा उठाया। इस फैसले से चिकित्सा क्षेत्र में बड़ी हलचल मच गई है।
एमसीआई की कड़ी कार्रवाई
प्रदेश के 15 न्यूरो सर्जन, जिन्होंने 2012 में इंटास फार्मा के खर्च पर विदेश यात्रा की, अब छह महीने तक इलाज नहीं कर सकेंगे। इस कदम को मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने गंभीर अनुशासनिक उल्लंघन मानते हुए उठाया है।
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इंटास फार्मा पर कार्रवाई
एमसीआई ने ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया को आदेश दिया है कि वह यात्रा करवा रही दवा कंपनी इंटास फार्मा पर सख्त कार्रवाई करें। यह कार्रवाई मेडिकल पेशेवरों और दवा कंपनियों के बीच अनैतिक संबंधों को रोकने के लिए की जा रही है।
इन डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई...
- डॉ. अभय भागवत, इंदौर
- डॉ. श्रीकांत रेगे, इंदौर
- डॉ. वृशाली नाडकर्णी, इंदौर
- डॉ. अतुल तापड़िया, इंदौर
- डॉ. जयश्री तापड़िया, इंदौर
- डॉ. धनराज पंजवानी, इंदौर
- डॉ. अतुल सहाई, ग्वालियर
- डॉ. श्वेता सहाई, ग्वालियर
- डॉ. आलोक अग्रवाल, जबलपुर
- डॉ. महेंद्रसिंह चौहान, उज्जैन
- डॉ. नरोत्तम वाष्या
- डॉ. राजेश मुल्ये
- डॉ. स्वाति मुल्ये
- डॉ. प्राची सक्सेना
- डॉ. हर्ष सक्सेना
विदेश यात्रा और डॉक्टरों की नैतिकता
2012 में ये डॉक्टर परिवार सहित विदेश यात्रा पर गए थे, जिसका खर्च इंटास फार्मा ने उठाया था। इस मुद्दे पर उठी आलोचना ने यह साबित किया कि दवा कंपनियां डॉक्टरों को अपनी तरफ करने के लिए गलत तरीके अपनाती हैं, जो पेशेवर नैतिकता के खिलाफ है।
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एमसीआई की सुनवाई और कार्रवाई
यह मामला पहले मध्य प्रदेश मेडिकल काउंसिल के पास था। जब वहां कोई समाधान नहीं निकला तो इसे एमसीआई की एथिक्स एंड डिसिप्लिन कमेटी के पास भेज दिया गया। दिल्ली में हुई सुनवाई में स्वास्थ्य अधिकार मंच ने इस मुद्दे को जोरदार तरीके से उठाया।
स्वास्थ्य अधिकार मंच की प्रतिक्रिया
स्वास्थ्य अधिकार मंच के अमूल्य निधि ने एमसीआई की कार्रवाई को सराहा और कहा कि यह कार्रवाई अन्य डॉक्टरों के लिए एक कड़ा संदेश है। उनका मानना है कि सरकार को इस तरह के मामलों में कड़े कानून बनाकर इसे रोकने की जरूरत है ताकि भविष्य में दवा कंपनियों का प्रलोभन डॉक्टरों को न ललचाए।