मनरेगा मजदूर से कम सरपंच का वेतन, सरकार का मानदेय बढ़ाने से सरकार का इनकार, मंत्री पटेल बोले यह सेवा का पद

प्रदेश में एक सरपंच का वेतन मनरेगा मजदूर को मिलने वाली मजदूरी से भी कम है। सरपंचों द्वारा मानदेय बढ़ाने की मांग की जा रही है। पंचायत मंत्री ने इसे सेवा का पद बताकर मानदेय बढ़ाने से इंकार कर दिया है।

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Sanjay Dhiman
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Photograph: (the sootr)

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मध्यप्रदेश के पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री प्रहलाद पटेल ने हाल ही में विधानसभा में एक सवाल के जवाब में कहा कि पंच-सरपंचों का पद स्वैच्छिक समाजसेवा का है और इसे किसी प्रकार की रोजी-रोटी के रूप में देखा नहीं जा सकता। मंत्री के बयान के बाद से राज्य के पंच-सरपंचों के मानदेय के मुद्दे पर एक नया विवाद उठ खड़ा हुआ है। पटेल ने कहा कि सरकार द्वारा सरपंचों और पंचों का मानदेय नहीं बढ़ाया जा सकता है, क्योंकि यह एक सेवा है और इसका उद्देश्य समाज की सेवा करना है, न कि रोजी-रोटी कमाना।

सरपंच का मानदेय और मनरेगा मजदूर का वेतन

विधानसभा में विजयपुर से कांग्रेस विधायक मुकेश मल्होत्रा के सवाल पर मंत्री पटेल ने यह जवाब दिया। इस जवाब ने कई सवाल उठाए, खासकर इस संदर्भ में कि जब हाल ही में विधायकों का वेतन और पेंशन बढ़ाया गया, तो सरपंचों का मानदेय क्यों नहीं बढ़ाया जा सकता? एक तरफ विधायकों की पेंशन बढ़ाई जा रही है, तो दूसरी तरफ सरपंचों को उनके काम के लिए बहुत कम वेतन मिल रहा है।

सरपंचों का मासिक मानदेय वर्तमान में 4,250 रुपए है, जबकि मनरेगा के मजदूरों को 261 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से 30 दिनों में 7,830 रुपए मिलते हैं। यह स्थिति बहुत ही चिंताजनक है, क्योंकि गांव के मुखिया का मानदेय उस मजदूर से भी कम है, जिसे वही काम देता है। 

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सरपंच के मानदेय और सरकार के जवाब को ऐसे समझें 

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सरपंच का मानदेय: वर्तमान में सरपंच का मानदेय 4,250 रुपए प्रति माह है, जो मनरेगा के मजदूरों से भी कम है।

मंत्री पटेल का बयान: पंचायत मंत्री प्रहलाद पटेल ने कहा कि सरपंच का पद समाजसेवा का है, इसे रोजी-रोटी के लिए नहीं देखा जा सकता।

सरपंच की मुश्किलें: सीहोर जिले की सरपंच जसोदा बाई नागवेल ने बताया कि सरपंच का मानदेय इतना कम है कि पेट भरने के लिए मजदूरी करनी पड़ती है।

विधायकों का वेतन: हाल ही में विधायकों का वेतन बढ़ाया गया, जबकि सरपंचों का मानदेय नहीं बढ़ाया गया, जिससे असंतोष बढ़ा है।

भ्रष्टाचार की संभावना: कम मानदेय के कारण कई बार सरपंचों के लिए भ्रष्टाचार के रास्ते खुल सकते हैं, क्योंकि वे अपने काम से संतुष्ट नहीं होते।

पद से पेट नहीं भरता: सरपंचों की मुश्किलें

एक समाचार पत्र में छपी खबर के मुताबिक, सीहोर जिले की नसरुल्लागंज जनपद की बालागांव पंचायत की सरपंच, जसोदा बाई नागवेल की कहानी इस परिस्थिति को उजागर करती है। जसोदा बाई के अनुसार, सरपंच के पद का मानदेय इतना कम है कि इससे उनका गुजारा नहीं हो सकता। उनके पास कोई अन्य आय का स्रोत नहीं है, और इसलिए उन्हें मजदूरी करनी पड़ती है ताकि उनका परिवार चल सके। उनके लिए यह "स्वेच्छा से की जा रही समाजसेवा" नहीं, बल्कि "आजीविका की मजबूरी" है।

कब-कब बढ़ा विधायकों का वेतन, सरपंचों का मानदेय

सरपंचों का मानदेय समय-समय पर बढ़ाया गया है, लेकिन यह कभी भी पर्याप्त नहीं रहा:

  • 2005: सरपंचों का मानदेय 150 रुपए से बढ़ाकर 350 रुपए किया गया।

  • 2012: 7 साल बाद मानदेय 350 रुपए से बढ़ाकर 1750 रुपए किया गया।

  • 2016: विधायकों का वेतन 1,10,000 रुपए (भत्ते सहित) हो गया।

  • 2023: विधानसभा चुनाव से पहले मानदेय 1750 रुपए बढ़ाकर 4250 रुपए किया गया।

  • 2025: विधायकों के वेतन में प्रस्तावित वृद्धि 1.75 लाख रुपए और पेंशन में 35 से 75 हजार रुपए की वृद्धि है।

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सरपंच-विधायक, सांसद- सभी का काम समाजसेवा, फिर फर्क क्यों?

वीणा घाणेकर, जो पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की पूर्व आयुक्त हैं, कहती हैं कि चाहे वह पंच-सरपंच हों या विधायक-सांसद, सभी का काम समाजसेवा है। इन सभी को जनता द्वारा चुना जाता है, और इनकी जिम्मेदारी एक समान है। अगर वेतन और मानदेय की बात करें तो ये सभी पद समाजसेवा के हैं, और इनका उद्देश्य रोजी-रोटी नहीं है। अत: सरपंचों का मानदेय बढ़ाने के लिए तर्क भी यही है कि यह पद सेवा का है, न कि रोजी-रोटी कमाने का।

FAQ

सरपंच का मानदेय क्यों कम है?
सरपंच का मानदेय 4,250 रुपये प्रतिमाह है, जो मनरेगा के मजदूरों से भी कम है। इसका मुख्य कारण यह है कि यह पद समाजसेवा का है, और इसे रोजी-रोटी का स्रोत नहीं माना जाता।
सरपंचों का मानदेय कब बढ़ाया गया था?
सरपंचों का मानदेय पहले 150 रुपये से बढ़ाकर 350 रुपये, फिर 2012 में 1750 रुपये, और 2023 में 4250 रुपये किया गया। हालांकि, यह मानदेय अब भी बहुत कम है।
सरपंचों के मानदेय बढ़ाने की मांग क्यों उठ रही है?
सरपंचों का मानदेय इतना कम है कि कई बार उन्हें अपनी आय के लिए मजदूरी करनी पड़ती है। इससे भ्रष्टाचार की संभावना भी बनती है, और यह उनके काम में रुकावट डाल सकता है।

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