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रोजगार के लिए हो रही भर्ती में आरक्षण नियमों की अवहेलना तो लगातार सामने आ ही रही थी पर अब एक ऐसा मामला सामने आया है जिसमें मिलिट्री स्कूल के एडमिशन के दौरान भी आरक्षित वर्ग की छात्र के साथ भेदभाव किया गया और उसे आरक्षण का लाभ न देने पर कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है।
जबलपुर निवासी नौ वर्षीय छात्र आराध्य पटेल ने अपनी माता हेमलता पटेल के माध्यम से दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका (WP(C) 1701/2025) दायर की है। इस याचिका में आरोप लगाया गया है कि राष्ट्रीय मिलिट्री स्कूल (RMS) की कक्षा 6 में प्रवेश हेतु हुई परीक्षा के परिणाम आरक्षण नियमों के विपरीत जारी किए गए, जिससे ओबीसी वर्ग के मेधावी छात्रों के साथ अन्याय हुआ। मामले की गंभीरता को देखते हुए, दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव की डिविजनल बेंच ने भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय और परीक्षा आयोजित करने वाली संस्था नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (NIELIT) को 15 दिन के भीतर अपना जवाब और शपथपत्र दाखिल करने का आदेश दिया। इस मामले में अगली सुनवाई 16 मार्च 2025 को होगी।
आर्मी स्कूल की भर्ती से जुड़ा है मामला
याचिका में उल्लेख किया गया है कि आराध्य पटेल ने 8 दिसंबर 2024 को आयोजित प्रवेश परीक्षा में ओबीसी श्रेणी के तहत आवेदन किया था। यह परीक्षा भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अधीन NIELIT द्वारा आयोजित कराई गई थी।
याचिकाकर्ता ने पिछले दो वर्षों के कटऑफ अंकों का तुलनात्मक अध्ययन किया, जिससे यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया कि अनारक्षित (UR) श्रेणी का कटऑफ 120 अंक था, जबकि ओबीसी का कटऑफ 125, 152 और 155 अंक तक गया। इसका सीधा अर्थ यह निकलता है कि यदि कोई ओबीसी छात्र अधिक अंक प्राप्त करता है, तो भी उसे अनारक्षित सीटों पर नहीं रखा गया। इससे ओबीसी के प्रतिभाशाली छात्र आरक्षित वर्ग में ही सीमित हो गए, जबकि सामान्य श्रेणी में कम अंक लाने वाले उम्मीदवारों को प्रवेश का लाभ मिल गया।
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आरक्षण नियमों का हुआ उल्लंघन
आरक्षण नीति के अनुसार, किसी भी आरक्षित वर्ग के छात्र को, यदि वह अनारक्षित (जनरल) वर्ग के कटऑफ से अधिक अंक प्राप्त करता है, तो उसे मेरिट के आधार पर अनारक्षित कोटे में शामिल किया जाना चाहिए। लेकिन इस परीक्षा में ओबीसी छात्रों को अनारक्षित श्रेणी में समायोजित नहीं किया गया, जिससे उनका कटऑफ सामान्य श्रेणी से अधिक हो गया। याचिका में यह भी तर्क दिया गया कि पिछले वर्षों में भी यही अनियमितता बरती गई थी, जिससे मेधावी छात्रों का नुकसान हुआ। इस प्रणाली से आरक्षित वर्ग के प्रतिभाशाली छात्रों को एक तरह से दोहरा नुकसान उठाना पड़ा है क्योंकि न तो उन्हें अनारक्षित श्रेणी में जगह मिली और न ही आरक्षित श्रेणी में कम कटऑफ का लाभ मिला है।
अनियमितताओं पर कोर्ट की सख्त टिप्पणी
सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए भारत सरकार के अधिवक्ता को कड़ी फटकार लगाई। अदालत ने पूछा कि जब आरक्षण नीति स्पष्ट रूप से कहती है कि मेरिट के आधार पर किसी भी वर्ग का छात्र अनारक्षित सीट के लिए योग्य हो सकता है, तो फिर इस परीक्षा में असंवैधानिक परिणाम क्यों जारी किए गए?
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सरकार ने की याचिका को खारिज करने की मांग
इस पर भारत सरकार के वकील ने याचिका की विचारणीयता (maintainability) पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह तकनीकी मुद्दा है और इसे अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती। लेकिन अदालत ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि यह केवल एक तकनीकी मामला नहीं, बल्कि एक संवैधानिक मुद्दा है, जो देश की 85% आबादी से जुड़ा हुआ है। यदि सरकार तकनीकी कारणों का सहारा लेकर इसे नकारती है, तो यह शिक्षा के क्षेत्र में समानता के अधिकार का हनन होगा। कोर्ट ने सरकारी अधिवक्ता को फटकारते हुए निर्देश दिया कि रक्षा मंत्रालय और NIELIT को इस मामले में 15 दिन के भीतर अपना जवाब और शपथपत्र दाखिल करना होगा। साथ ही, याचिकाकर्ता को एक सप्ताह के भीतर अपने तर्कों का जवाब दाखिल करने का मौका दिया गया।
मेरीटोरियस छात्रों का भविष्य खतरे में
इस जनहित याचिका में नाबालिग आराध्य पटेल की ओर से पैरवी वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर, विनायक प्रसाद शाह और रियल सूर्यवंशी ने की।उन्होंने कोर्ट के सामने विस्तार से तर्क रखा कि आरक्षण नीति का उद्देश्य सामाजिक न्याय है, लेकिन इस मामले में इसका दुरुपयोग हो रहा है। यदि इस प्रणाली को सुधारा नहीं गया, तो आने वाले वर्षों में हजारों मेरीटोरियस छात्र इस अन्याय का शिकार होंगे।
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दोबारा मेरिट लिस्ट जारी करने की मांग
याचिका में मांग की गई है कि राष्ट्रीय मिलिट्री स्कूल में प्रवेश परीक्षा के कटऑफ और मेरिट लिस्ट को पुनः संशोधित किया जाए और अनारक्षित श्रेणी की सीटों पर ओबीसी के योग्य छात्रों को स्थान दिया जाए। इसके साथ ही याचिका में मांग की गई है की भविष्य में इस प्रकार के अनियमित परिणाम जारी न किए जाएं और पारदर्शी प्रणाली अपनाई जाए।
16 मार्च को होगी मामले की अगली सुनवाई
हाईकोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए 16 मार्च 2025 को अगली सुनवाई निर्धारित की है। इस मामले का निर्णय उन हजारों छात्रों के भविष्य को प्रभावित कर सकता है, जो हर साल आरक्षण नीति की जटिलताओं के कारण अपने अधिकारों से वंचित हो जाते हैं।हर भर्ती प्रक्रिया की तरह यह मामला भी केवल एक छात्र की प्रवेश परीक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत की शिक्षा प्रणाली में आरक्षण के सही क्रियान्वयन का बड़ा सवाल उठाता है। यदि इस याचिका में अदालत का फैसला याचिकाकर्ता के पक्ष में आता है, तो यह अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में भी मेधावी छात्रों के साथ हो रहे इस प्रकार के भेदभाव को समाप्त करने की दिशा में एक मिसाल बनेगा।
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