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MP News: मध्य प्रदेश के जनजातीय कार्य मंत्री विजय शाह कहां हैं? ऑपरेशन सिंदूर के बाद कर्नल सोफिया कुरैशी पर विवादास्पद टिप्पणी के बाद से चर्चा में आए शाह इंदौर में हुई कैबिनेट बैठक में नहीं पहुंचे थे। अब 3 जून को पचमढ़ी में राजा भभूत सिंह की स्मृति में हुई कैबिनेट बैठक में भी वे नजर नहीं आए। उनकी अनुपस्थिति से जनजातीय कार्य विभाग का कामकाज प्रभावित हो रहा है।
ट्रांसफर नीति के बीच अधिकारी और कर्मचारी भी असमंजस में हैं। एक सवाल यह भी खड़ा हो रहा है कि क्या अब सरकार ने उनसे सियासी दूरी बना ली है? दरअसल, जनजातीय कार्य विभाग में कोई राज्य मंत्री नहीं है। यानी मंत्री शाह की अनुपस्थिति में नीतिगत फैसले अटके हैं। शाह झाबुआ और रतलाम जिले के प्रभारी मंत्री हैं।
विभागीय समन्वय बाधित है। ट्रांसफर नीति जैसे मामलों में स्पष्टता की कमी है। सूत्रों की मानें तो कई महत्वपूर्ण फाइलें खंडवा और भोपाल के बीच अटकी हैं। जिलों से भेजे गए तबादला प्रस्तावों और योजनाओं की स्वीकृति समय पर नहीं मिल रही, जिससे अफसरों-कर्मचारियों में असमंजस और असंतोष है।
मामले ने पकड़ा तूल
11 मई 2025 को महू के रायकुंडा गांव में हलमा कार्यक्रम के दौरान मंत्री विजय शाह ने सेना की अधिकारी कर्नल सोफिया कुरैशी पर विवादास्पद टिप्पणी की थी। मामला तूल पकड़ गया। राष्ट्रीय स्तर पर इसकी गूंज हुई। हाईकोर्ट के आदेश पर मंत्री शाह के खिलाफ FIR दर्ज हुई।
फिर विजय शाह ने वीडियो जारी कर सार्वजनिक रूप से तीन बार माफी भी मांगी। बोले, यह भाषाई चूक थी, बहन सोफिया से क्षमा चाहता हूं। राजनीतिक डैमेज कंट्रोल के बावजूद कानूनी दायरा सिमटने के बजाय और बढ़ गया। सुप्रीम कोर्ट ने माफी को नामंजूर करते हुए SIT जांच के आदेश दिए हैं। इस मामले की सुनवाई जुलाई में होगी, तब तक शाह को गिरफ्तारी से राहत है।
जांच टीम भी सवालों के घेरे में
इधर, विवादित बयान की जांच कर रही स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (SIT) के काम पर सवाल उठ रहे हैं। SIT ने वीडियो को जांच के लिए उस फॉरेंसिक लैब में भेजा था, जहां वीडियो की जांच की कोई सुविधा ही नहीं है।
SIT की रिपोर्ट में खुद यह स्वीकार किया गया है कि तकनीकी कारणों से वीडियो की जांच नहीं हो सकी। दरअसल, यह वीडियो भोपाल की एमपी फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (FSL) में भेजा गया था, लेकिन वहां केवल वॉयस एनालिसिस की सुविधा है, फुटेज की फॉरेंसिक जांच वहां हो ही नहीं सकती। इस चूक के चलते जांच की प्रक्रिया फिर टल गई और सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई अब जुलाई में तय की है।
खंडवा में फील्ड विजिबिलिटी की कोशिश
लगभग 20 दिन के राजनीतिक और प्रशासनिक गैप के बाद विजय शाह हाल ही में खंडवा में रेप पीड़िता के परिवार से मिलने पहुंचे। इसे उनकी सक्रियता की वापसी के तौर पर देखा जा रहा है, लेकिन क्या यह पर्याप्त है? क्या केवल जमीनी उपस्थिति से कैबिनेट और विभागीय निर्णयों का खालीपन भर सकता है?
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की ओर से विजय शाह को लेकर अभी कोई औपचारिक बयान नहीं आया है। लगातार दो महत्वपूर्ण कैबिनेट बैठकों से गैरहाजिरी और विभागीय निर्णयों की ठहराव ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या सरकार ने उन्हें 'राजनीतिक क्वारंटीन' में डाल दिया है?
नियम क्या कहता है?
सुनियोजित शासन प्रणाली में एक मंत्री के न होने से सिस्टम ठहरता नहीं, लेकिन रफ्तार जरूर धीमी पड़ती है। खासकर तब जब विभाग बिना राज्य मंत्री के चल रहा हो। ट्राइबल वेलफेयर जैसे संवेदनशील मंत्रालय में योजनाओं का क्रियान्वयन समयबद्ध न हो, तो यह न केवल प्रशासनिक विफलता होती है, बल्कि उस समाज के साथ भी अन्याय है जिसके लिए ये योजनाएं बनाई गई थीं। इसी के साथ ट्राइबल के कई स्कूल हैं, ऐसे में जनजातीय कार्य विभाग में पदस्थ अमला, शिक्षक और अन्य अधिकारी-कर्मचारी ट्रांसफर को लेकर असमंजस में हैं।
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