मोहन यादव ने उज्जैन में रात रुककर तोड़ा मिथक, शिवराज छोड़ देते थे शहर

उज्जैन में CM मोहन यादव ने महाकाल मंदिर में रात रुकने के ऐतिहासिक मिथक को तोड़ा। इससे पहले यह मान्यता थी कि कोई भी राजा, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री महाकाल की नगरी में रात नहीं रुक सकते।

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Ravi Kant Dixit
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आज से एक साल पहले तक कहा जाता था कि उज्जैन में बाबा महाकाल मंदिर की परिधि में कोई भी राजा, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री रात नहीं रुक सकता है। यदि किसी ने ऐसा किया तो उसे बाबा महाकाल के क्रोध का सामना करना पड़ेगा, पर मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने इस मिथक को तोड़ दिया।

13 दिसंबर 2023 को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के पांच दिन बाद 17 दिसंबर को उन्होंने उज्जैन में ही अपने गृहनगर उज्जैन के गीता कॉलोनी स्थित निवास रात्रि विश्राम किया था। इससे पहले के कई मुख्यमंत्रियों ने उज्जैन में रात नहीं बिताई। यहां तक कि तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी उज्जैन में रात ​गुजारने से परहेज किया।

सीएम ने जब बताई इसके पीछे की वजह

बतौर मुख्यमंत्री उज्जैन में रात्रि विश्राम पर सीएम डॉ.मोहन यादव का कहना है कि तत्कालीन राजा महादजी सिंधिया के निधन के बाद दौलत राव सिंधिया राजधानी को उज्जैन से ग्वालियर ले जाना चाहते थे। 1812 में वे राजधानी तो ले ही गए, धीरे से एक मंत्र फूंक गए कि यहां (उज्जैन) कोई राजा रात को नहीं रहेगा, जिससे कोई कब्जा करने नहीं आए। यह उनकी राजनीतिक रणनीति थी। अब हम भी कहते हैं कि राजा रात नहीं रहेगा। अरे, राजा तो बाबा महाकाल हैं, हम सब तो बेटे हैं उनके, क्यों रात नहीं रहेंगे?

बाबा तो जन्म देने वाले हैं: सीएम

सीएम डॉ.मोहन यादव कहते हैं, ब्रह्मांड में कहां कोई बच सकता है, अगर महाकाल ने टेढ़ी निगाह कर ली तो? बाबा तो जन्म देने वाले हैं। आशीर्वाद देने वाले हैं। ये बात सही है कि लोग अपने हिसाब से तो मुख्यमंत्री कहेंगे, लेकिन मैं तो मुख्य सेवक के रूप में ही काम कर रहा हूं। इस तरह मोहन यादव ने उज्जैन में रात बिताने का मिथक तोड़ दिया। वे तब से लगातार जब भी उज्जैन पहुंचते हैं तो अपने निवास पर ही रात्रि विश्राम करते हैं।

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क्या उज्जैन में रुकने से बदलती है किस्मत?

उज्जैन की गलियों में गूंजती प्राचीन मान्यता कहती है कि महाकाल की नगरी में कोई भी राजा, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री रात्रि विश्राम नहीं करता। यह परंपरा केवल धार्मिक आस्था का विषय नहीं है, बल्कि उज्जैन के इतिहास में गहराई से जड़ें जमाए हुए है। महाकालेश्वर मंदिर के पुजारियों और विद्वानों का मानना है कि यह परंपरा आदिकाल से चली आ रही है। राजा विक्रमादित्य के समय से माना गया कि महाकाल स्वयं राजा हैं और उनके अधिकार क्षेत्र में कोई अन्य शासक रात नहीं रुक सकता। यह सम्मान और भक्ति का प्रतीक है। मंदिर पर फहराने वाली धर्मध्वजा की छाया से आगे बढ़कर रात बिताना अनिष्टकारी माना गया।

सिंधिया परिवार और अन्य VVIP की परंपरा

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गौरतलब है कि ग्वालियर रियासत के सिंधिया राजवंश ने महाकाल मंदिर के निर्माण और पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। राणोजी सिंधिया ने मौजूदा मंदिर का स्वरूप 150 साल पहले बनवाया, जिसे समय-समय पर महाराज महादजी शिंदे और महारानी बायजाबाई ने सजाया-संवारा। हालांकि, इतिहास गवाह है कि ग्वालियर राजघराने के सदस्य उज्जैन में रात्रि विश्राम से परहेज करते रहे हैं। आज भी ज्योतिरादित्य सिंधिया इस परंपरा का पालन करते हैं।

मोरारजी देसाई और येदियुरप्पा के किस्से

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उज्जैन में रात रुकने की मान्यता को लेकर चर्चाएं तब और तेज हुईं, जब इस पर अतीत में बड़े नेताओं को लेकर घटनाएं जुड़ीं। भारत के चौथे प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई एक बार उज्जैन में रात रुके थे। इसके बाद उनकी सरकार गिर गई और उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा। कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने भी उज्जैन में रात बिताई। 20 दिन बाद उन्हें मुख्यमंत्री पद से हाथ धोना पड़ा था।

सिंहस्थ महाकुंभ और VVIP

2016 में सिंहस्थ महाकुंभ के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस परंपरा का पालन करते हुए हर रात उज्जैन छोड़कर इंदौर में बिताई। वे यूं तो दिनभर उज्जैन में रहते थे, लेकिन रात 12 बजे से पहले उज्जैन की सीमा छोड़ देते थे। यही नहीं, भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी और दिग्विजय सिंह भी उज्जैन में रात रुकने से बचे और यात्रा का पड़ाव शहर की सीमा से बाहर रखा था।

इस खबर से जुड़े सामान्य सवाल

क्या उज्जैन में रात रुकने का कोई धार्मिक महत्व है?
हां, उज्जैन में रात रुकने को धार्मिक आस्था से जोड़ा गया है। इसे महाकाल के क्रोध से बचने के रूप में देखा जाता है।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने उज्जैन में रात क्यों बिताई?
डॉ. यादव ने महाकाल के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करने और एक ऐतिहासिक मिथक को तोड़ने के लिए उज्जैन में रात बिताई।
क्या यह मिथक सिर्फ उज्जैन तक सीमित था?
नहीं, यह मिथक अन्य शहरों और राज्य की राजनीति से भी जुड़ा था, जहां यह माना जाता था कि महाकाल की नगरी में रात रुकने से राजनीतिक संकट आ सकता है।
क्या सिंधिया परिवार ने कभी उज्जैन में रात बिताई?
नहीं, ग्वालियर के सिंधिया परिवार ने हमेशा इस परंपरा का पालन किया और उज्जैन में रात नहीं बिताई।
क्या उज्जैन में रात रुकने से राजनीतिक स्थिति पर असर पड़ता है?
यह एक मान्यता है, जो ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़ी हुई है। कुछ नेताओं ने उज्जैन में रात बिताने के बाद अपनी राजनीतिक स्थिति में गिरावट महसूस की है।

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