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मप्र में साल 2019 में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने का एक्ट पास हुआ। इसके बाद से मामला कानूनी लड़ाई में उलझा है। विविध कानून केस और मई 2022 के केस में हाईकोर्ट जबलपुर के जरिए 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण देने पर लगी रोक लगा दी थी। इसके बाद सरकार ने रुकी हुई भर्तियों को शुरू करने के लिए सितंबर 2022 में एक अफलातून 87-13 फीसदी का फार्मूला लागू कर दिया।
इसके चलते साल 2019 से लेकर अभी तक की पीएससी और ईएसबी परीक्षाओं की भर्ती में 13 फीसदी पद होल्ड हैं। अभी तक भर्ती की रोक की बात कर रही मप्र सरकार ने पहली बार सुप्रीम कोर्ट में 22 जुलाई को कहा कि उन्हें भी छत्तीसगढ़ जैसी राहत दी जाए और चल रही भर्तियों में यह 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण से भर्ती करने की अंतरिम छूट मिले।
पहले बताते हैं कि 87-13-13 फार्मूला क्या है
जब 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण देने पर हाईकोर्ट से अंतरिम रोक लगी और भर्तियां और रिजल्ट रुक गए, तब विधिक सलाह पर सामान्य प्रशासन विभाग ने पीएससी को 87-13-13 फीसदी का फार्मूला दिया। सितंबर 2022 में इसके लिए पत्र लिखकर इसी आधार पर रिजल्ट देने के लिए कहा गया।
इसका अर्थ था कि कुल 100 पद हैं तो इनमें से 87 पद को मूल रिजल्ट में रखा जाएगा और इनका अंतिम चयन, रिजल्ट जारी करेंगे और इन पदों में ओबीसी आरक्षण 14 फीसदी रखा जाएगा। वहीं 100 में से 13 पद प्रोवीजनल रिजल्ट सूची में रहेंगे।
इन 13 पदों के लिए चयन नीति के अनुसार ओबीसी और उतने ही अनारक्षित को मेरिट आधार पर चुना जाएगा। यानी 13 फीसदी पर 13 फीसदी ओबीसी और 13 फीसदी अनारक्षित दोनों को चुना जाएगा, लेकिन इनका अंतिम रिजल्ट जारी नहीं किया जाएगा और यह कानूनी लड़ाई खत्म होने के बाद ही जारी होंगे। इस तरह हर भर्ती परीक्षा में 13 फीसदी पद होल्ड होते चले गए, सभी के नाम लिफाफे में बंद हो गए। अब यह कोर्ट के आदेश के बाद ही खुलेगा।
13 फीसदी फार्मूले में रुके इतने पद और उम्मीदवार
ओबीसी वेलफेयर सोसायटी ने 13 फीसदी फार्मूले में कितने पद और कितने ओबीसी उम्मीदवार अटके हैं, इसकी सूचना जारी की है। पद तो वही है लेकिन इन 13 फीसदी पर अकेले ओबीसी होल्ड नहीं हैं, बल्कि उसी अनुपात में अनारक्षित उम्मीदवार भी होल्ड हैं।
होल्ड पद की संख्या - 9063
होल्ड उम्मीदवारों की संख्या - 1.75 लाख (87 हजार 167 ओबीसी और इतने ही अनारक्षित)
पीएससी और ईएसबी में इतने पद रुके
इस फार्मूले के चलते पीएससी की 23 परीक्षाओं के 913 पद होल्ड हैं। इसमें ओबीसी और अनारक्षित मिलाकर करीब 5600 उम्मीदवार होल्ड पर हैं। वहीं इसमें पात्रता परीक्षा के उम्मीदवार तो जोड़े ही नहीं गए, जो इसके चलते रुक गए। इनकी संख्या भी लंबी है। इसमें अहम भर्तियों में राज्य सेवा परीक्षा 2019, 2020, 2021, 2022 है और साथ ही राज्य वन सेवा 2019, 2020, 2021, 2022 भी है। वहीं असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती 2022, सहायक इंजीनियर 2021, 2022, मेडिकल अफसर, कराधान सहायक, आईटीआई प्रिंसिपल व अन्य परीक्षाओं के होल्ड पद हैं।
ईएसबी (कर्मचारी चयन मंडल) की भी दो दर्जन से ज्यादा परीक्षाओं के 8150 पद होल्ड हुए हैं। इसमें भी ओबीसी और अनारक्षित दोनों उम्मीदवार मिलाकर 1.68 लाख उम्मीदवार करीब होते हैं। इसमें अहम परीक्षाओं में मप्र आरक्षक भर्ती 2023, वन रक्षक व जेल प्रहरी 2023, ग्रुप 4 व ग्रुप 2 की परीक्षा, विविध शिक्षक भर्ती परीक्षा, कृषि विस्तार अधिकारी, सब इंजीनियर भर्ती शामिल हैं। इसी तरह बिजली कंपनी द्वारा हाल ही में की गई भर्ती में भी सैंकड़ों पद और हजारों उम्मीदवार हैं।
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वर्तमान परीक्षाओं में भी होल्ड का संकट
यह तो वह परीक्षाएं हैं जिनके रिजल्ट आ चुके हैं और 87 फीसदी मूल रिजल्ट वालों का चयन हो चुका है। लेकिन अभी वर्तमान में कई परीक्षाएं संचालित हो रही हैं जैसे पीएससी की राज्य सेवा परीक्षा 2023, फिर राज्य सेवा परीक्षा 2024 है, असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती 2022 में कई विषयों के इंटरव्यू चल रहे हैं तो वहीं 2024 की भी भर्ती है। इसी तरह ईएसबी ने हाल ही में 13 हजार शिक्षक भर्ती निकाली है तो वहीं जल्द ही एसआई और सिपाही के कुल 8000 पद आना है। ऐसे में इन सभी में 13 फीसदी पद होल्ड होने का संकट है।
संकट दूर हुआ तो कॉपियां भी देखने को मिलेंगी, अंक भी
इस मामले के निपटने पर एक और बड़ा मुद्दा हल होगा। 13 फीसदी पद तो अनहोल्ड होंगे ही वहीं अभी पीएससी 87 फीसदी में चयनित होने वालों के ही अंक जारी कर रहा है। इसमें जो मेरिट में पीछे रह गए और चयनित नहीं हुए, उनके अंक नहीं बता रहा है और ना ही उनकी उत्तरपुस्तिकाएं दिखा रहा है। यह मुद्दा हल होने पर 87 फीसदी के साथ ही 13 फीसदी में बंद उम्मीदवारों को अपने अंक जानने का मौका मिलेगा और साथ ही उत्तरपुस्तिकाएं भी देखने को मिलेंगी। जिसकी लंबे समय से मांग की जा रही है।
सुप्रीम कोर्ट में 22 जुलाई को यह हुआ सुनवाई के दौरान
मप्र शासन की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क रखा कि 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण एक्ट पास है, छत्तीसगढ़ में 58 फीसदी आरक्षण दिया गया है और इसे सुप्रीम कोर्ट ने मान्य किया है। जिस तरह 50 फीसदी से अधिक आरक्षण पर छत्तीसगढ़ को राहत मिली है, उसी तरह मप्र को भी राहत दी जाए, जिससे पूरी भर्ती की जा सके। ओबीसी पक्षकार की ओर से भी कहा गया कि एक्ट को लागू किया जाए, इसे बेवजह रोका गया है। मप्र और छत्तीसगढ़ के मामले एक जैसे हैं, वहां भर्ती हो रही है और यहां होल्ड हो रहा है।
वहीं अनारक्षित पक्ष ने किया विरोध-
वहीं इस पर अनारक्षित की ओर से अधिवक्ता ने आपत्ति ली और कहा कि मप्र और छत्तीसगढ़ दोनों के मामले एक जैसे नहीं हैं। मप्र में ओबीसी आरक्षण 14 से बढ़ाकर 27 फीसदी किया गया है और छत्तीसगढ़ में ओबीसी का आरक्षण पूर्ववत है। वहां एसटी आबादी अधिक होने से उनके लिए आरक्षण बढ़ाया गया है। ऐसे में दोनों केस को एक जैसा नहीं बताया जा सकता है। इस पर करीब 20 मिनट तक सुप्रीम कोर्ट में जिरह चली। जिसके बाद इसे बिना किसी आदेश के अगली सुनवाई के लिए आगे बढ़ा दिया गया।
यह है छत्तीसगढ़ का 58 फीसदी आरक्षण केस
एक मई 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा आरक्षण को 58 फीसदी के तहत भर्ती करने पर अंतरिम राहत दी थी। हालांकि यह राहत अंतरिम है, छत्तीसगढ़ सरकार का पक्ष था कि भर्ती और पदोन्नति दोनों रूकी हैं और इसके चलते मैनपावर की कमी से सरकार जूझ रही है।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने यह राहत दी थी कि जो प्रक्रिया चल रही है वह इसी 58 फीसदी पर चल सकती है लेकिन यह सभी अंतिम आदेश के अधीन होंगी। छत्तीसगढ़ सरकार ने 2012 में 58 फीसदी आरक्षण की अधिसूचना जारी की थी, जिसे हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया था।
हाई कोर्ट ने कहा था कि आरक्षण को 50 से बढ़ाकर 58 फीसदी करना असंवैधानिक है। छत्तीसगढ़ राज्य शासन ने आरक्षण नीति में बदलाव करते हुए 18 जनवरी 2012 को अधिसूचना जारी की थी, इसके तहत लोकसेवा (अजा, अजजा एवं पिछड़ा वर्ग का आरक्षण) अधिनियम 1994 की धारा-4 में संशोधन किया गया था। इसके अनुसार अजजा वर्ग को 32 फीसदी, अजा वर्ग को 12 फीसदी और पिछड़ा वर्ग को 14 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया गया था। इससे कुल आरक्षण 58 फीसदी हो गया था।
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