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मध्य प्रदेश में दलित पिछड़ा समाज संगठन (DPSS) और भीम आर्मी, ओबीसी संगठन ने 30 जुलाई 2025 को मध्य प्रदेश विधानसभा का घेराव करने का ऐलान किया है। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य ओबीसी (Other Backward Classes) के लिए 52% आरक्षण की मांग, छात्र संघ चुनावों की प्रणाली में सुधार और अन्य सामाजिक मुद्दों को उठाना है। आंदोलन का नेतृत्व DPSS के राष्ट्रीय अध्यक्ष दामोदर यादव के जरिए किया जा रहा है।
OBC के लिए 52% आरक्षण मांग
दामोदर यादव का कहना है कि 1931 की जातिगत जनगणना के अनुसार ओबीसी की जनसंख्या कम से कम 52% है। वहीं वर्तमान में भाजपा और कांग्रेस सरकारें ओबीसी समुदाय के लिए सिर्फ 27% आरक्षण देने की बात करती हैं। इस मांग को लेकर दामोदर यादव ने मुख्यमंत्री मोहन सरकार से स्पष्ट अपील की है कि ओबीसी को उनका हक दिया जाए और आरक्षण 52% किया जाए।
छात्र संघ चुनावों में सुधार की मांग
इसके अलावा, संगठन ने छात्र संघ चुनावों के मुद्दे को भी प्रमुखता से उठाया है। संगठन का कहना है कि छात्र संघ चुनावों को सीधे चुनाव प्रणाली (Direct Election System) से आयोजित किया जाए। इससे छात्रों को अपने प्रतिनिधि चुनने का अधिकार मिल सके। यह सुधार छात्रों के लोकतांत्रिक अधिकारों को और मजबूत करेगा।
OBC आरक्षण मांग पर भोपाल में आंदोलन...
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आंदोलन के अन्य प्रमुख मुद्दे-
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डॉ. भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा: संगठन ने ग्वालियर हाईकोर्ट परिसर में डॉ. भीमराव अंबेडकर की एक भव्य प्रतिमा स्थापित करने की मांग की है, जिससे उनके योगदान को सम्मानित किया जा सके।
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सम्राट अशोक जयंती का राजकीय अवकाश: सम्राट अशोक की जयंती को राजकीय अवकाश घोषित करने की मांग की गई है, ताकि समाज में उनके योगदान को सही सम्मान मिल सके।
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जाति प्रमाणपत्र की प्रक्रिया में सुधार: भोपाल में जाति प्रमाणपत्र बनाने की प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाने की आवश्यकता जताई गई है।
30 जुलाई को भोपाल में होगा बड़ा आंदोलन
दामोदर यादव ने यह घोषणा की है कि 30 जुलाई को इस आंदोलन में प्रदेश भर से हजारों युवा, छात्र, संगठन कार्यकर्ता और किसान शामिल होंगे। दोपहर 2 बजे भोपाल के शिवाजी चौराहा (रेड क्रॉस) से विधानसभा की ओर मार्च शुरू होगा। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य ओबीसी समुदाय के अधिकारों और सामाजिक न्याय को लेकर एक बड़े जनआंदोलन की शुरुआत करना है।
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भारतीय संविधान में ओबीसी आरक्षण
भारतीय संविधान ने आरक्षण को सामाजिक न्याय की दिशा में एक कदम माना। संविधान में 15(4) और 16(4) अनुच्छेदों के तहत अनुसूचित जातियों (SCs), अनुसूचित जनजातियों (STs) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को आरक्षण देने का प्रावधान किया गया। इसके बाद, ओबीसी के अधिकारों पर कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए।
जानें OBC आरक्षण का इतिहास
भारत में ओबीसी को आरक्षण देने की प्रक्रिया 1950 के दशक में शुरू हुई थी, जब भारतीय संविधान में सामाजिक और शैक्षिक पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने का प्रावधान किया गया था। लेकिन, समय-समय पर इस आरक्षण की प्रतिशतता और उसे लागू करने के तरीकों में बदलाव होते रहे हैं। 1980 के दशक में, मंडल कमीशन की सिफारिशों के बाद ओबीसी के लिए 27% आरक्षण लागू किया गया था, जो अब भी विवादों में है।
मंडल आयोग की रिपोर्ट (1980)
ओबीसी आरक्षण का सबसे महत्वपूर्ण मोड़ 1980 में मंडल आयोग की रिपोर्ट के रूप में आया। इस आयोग का गठन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया था। इसका उद्देश्य पिछड़े वर्गों की पहचान करना और उनके लिए आरक्षण की सिफारिश करना था। आयोग ने 52% भारतीयों को OBC श्रेणी में रखा और सिफारिश की कि उन्हें सरकारी नौकरियों में 27% आरक्षण दिया जाए।
1980 में मंडल आयोग की रिपोर्ट के बाद, 1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने इस रिपोर्ट को लागू करने का निर्णय लिया। इसके बाद, ओबीसी के लिए 27% आरक्षण सरकारी नौकरियों और शैक्षिक संस्थानों में लागू किया गया। यह कदम भारतीय राजनीति और समाज में काफी विवादास्पद था, लेकिन इसे लंबे समय तक बहस और विरोध का सामना करने के बावजूद लागू किया गया।
21वीं सदी में ओबीसी आरक्षण
ओबीसी आरक्षण का मुद्दा 21वीं सदी में भी महत्वपूर्ण बना रहा। 2006 में, सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय दिया। इसमें यह कहा गया कि ओबीसी के लिए आरक्षण को शैक्षिक संस्थानों में 27% और अन्य क्षेत्रों में लागू किया जा सकता है। हालांकि, 50% से अधिक आरक्षण के खिलाफ कोर्ट ने निर्णय दिया और इसे संविधान की मूल संरचना के खिलाफ माना।
इसके बाद, ओबीसी आरक्षण को लेकर विभिन्न राज्यों में नीतियों में बदलाव हुए। कुछ राज्यों ने ओबीसी के आरक्षण को बढ़ाया और इसके साथ ही, आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए भी आरक्षण देने की दिशा में कदम उठाए।
OBC आरक्षण की वर्तमान स्थिति
आज के समय में ओबीसी आरक्षण एक जटिल और विवादास्पद मुद्दा बन चुका है। कई लोग इसे समाज के कमजोर वर्गों की मदद करने के रूप में मानते हैं, जबकि अन्य इसे सामाजिक असमानता को बढ़ावा देने वाला मानते हैं। ओबीसी के आरक्षण को लेकर कई बार आंदोलन और विरोध प्रदर्शन होते रहे हैं। इनमें प्रमुख रूप से सरकारी नौकरियों और शिक्षा संस्थानों में सीटों की संख्या को लेकर संघर्ष होते हैं।
संविधान में ओबीसी आरक्षण को लेकर कोई विशेष रूप से निर्धारित सीमा नहीं है। यह राज्यों पर निर्भर करता है कि वे इसे कैसे लागू करें। वर्तमान में, OBC के लिए 27% आरक्षण सरकारी नौकरी और शिक्षा संस्थानों में दिया जा रहा है, लेकिन इसमें भी आर्थिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की स्थिति पर विचार किए जाने की आवश्यकता महसूस हो रही है।
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