MP GI Tags: खजुराहो स्टोन, ग्वालियर शिल्प सहित 5 प्रोडक्ट्स को GI टैग, सीएम मोहन यादव ने शिल्पकारों को दी बधाई

मध्य प्रदेश की 5 प्राचीन शिल्पकलाओं को GI टैग मिल गया है। इसका मतलब है कि अब ये शिल्पकलाएं भारत की बौद्धिक संपत्ति का हिस्सा बन गई हैं। यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि है।

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Kaushiki
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MP GI Tags: भारत का दिल कहे जाने वाले मध्यप्रदेश की मिट्टी में सदियों से कला और संस्कृति की अनोखी खुशबू बसी है। अब इस प्राचीन विरासत को एक ऐतिहासिक पहचान मिली है। राज्य की 5 बहुत ही खास शिल्पकलाओं को GI टैग से नवाजा गया है।

GI टैग मिलते ही ये विरासत अब भारत की इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स में शामिल हो गई है। ये ऐतिहासिक उपलब्धि राज्य के शिल्पियों के लिए एक बहुत बड़ा सम्मान है। इनकी मेहनत को अब वैश्विक मंच मिला है।

इस बड़ी सफलता को पद्मश्री डॉ. रजनीकांत, जिन्हें जीआई मैन ऑफ इंडिया कहा जाता है, उन्होंने अत्यंत गर्व का पल बताया है।

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इन 5 शिल्पकलाओं को मिली पहचान

GI Registry की वेबसाइट पर उत्पादों के सामने 'रजिस्टर्ड' का स्टेटस आ गया है। इससे संबंधित शिल्पियों में खुशी की लहर दौड़ गई है। इन शिल्पकलाओं को GI टैग मिलने से बड़ा गौरव मिला है।

आपको बता दें कि लगभग एक साल पहले GI टैग के लिए आवेदन किया गया था। इस पूरी पहल को नाबार्ड और सिडबी मध्य प्रदेश ने वित्तीय सहायता दी थी।

यह सफलता स्थानीय शिल्प और कारीगरों की मेहनत का परिणाम है। अब इन विरासत को वैश्विक पहचान मिलेगी। इन 5 उत्पादों को GI टैग मिला है:

  • खजुराहो स्टोन क्राफ्ट (Khajuraho Stone Craft): खजुराहो के प्रसिद्ध मंदिरों की तरह ही, यहां की पत्थर की बारीक कारीगरी को विशेष पहचान मिली है।

  • बैतूल भरेवा मेटल क्राफ्ट (Betul Bharewa Metal Craft): बैतूल की यह धातु शिल्प कला प्राचीन समय से ही चली आ रही है।

  • ग्वालियर स्टोन शिल्प (Gwalior Stone Craft): ग्वालियर के पत्थर की नक्काशी अपनी अद्वितीय सुंदरता के लिए जानी जाती है।

  • ग्वालियर पेपर मैशे (Gwalior Paper Mache): ग्वालियर की यह कला कागज की लुगदी से बनाई जाती है।

  • छतरपुर फर्नीचर (Chhatarpur Furniture): छतरपुर के लकड़ी के फर्नीचर की कलात्मकता को सम्मान मिला है।

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पन्ना के डायमंड और 25 अन्य प्रोडक्ट्स की बारी

नवंबर महीने में पन्ना जिले के हीरे को भी GI टैग मिला था (पन्ना के हीरों को मिलेगा GI टैग)। अब पन्ना के हीरे 'पन्ना डायमंड' के नाम से जाने जाएंगे। इन्हें सर्टिफाइड, प्रीमियम नेचुरल प्रोडक्ट के तौर पर दुनिया भर के बाजारों में बेचा जाएगा।

यह पन्ना के लिए बड़ी उपलब्धि है, जो भारत का इकलौता ऐसा जिला है जहां हीरे मिलते हैं। इतना ही नहीं, लगभग 25 अन्य प्रोडक्ट्स को भी जीआई मिलने की प्रक्रिया अपने अंतिम चरण में है।

जल्द ही इन उत्पादों को भी GI टैग मिलने की पूरी संभावना है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि इस सम्मान से हमारी विरासत को वैश्विक पहचान मिलेगी। यह शिल्पकारों की अद्भुत सृजनशीलता और कौशल को समर्पित सम्मान है।

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GI टैग क्यों है इतना जरूरी

GI टैग का मतलब होता है जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग (Geographical Indication Tag)। ये टैग किसी प्रोडक्ट्स या कला को उस क्षेत्र की ज्योग्राफिकल  आइडेंटिटी से जोड़ता है।

ये दिखाता है कि प्रोडक्ट्स की क्वालिटी या स्पेशलिटी उसी क्षेत्र की मिट्टी, मौसम या ट्रेडिशनल वर्कमैनशिप के कारण है। जैसे दार्जिलिंग चाय या बनारसी साड़ी।

GI Tag पाने के लिए संबंधित कारीगरों या उत्पादकों का समूह भारतीय GI रजिस्ट्री (Indian GI Registry) में आवेदन करता है। आवेदन में उत्पाद की खासियत, इतिहास और भौगोलिक प्रमाण देना होता है। जांच के बाद रजिस्ट्री इसे GI Tag देती है।

ये टैग 10 साल के लिए वैलिड होता है। इसे फिर से रिन्यू कराया जा सकता है। जीआई टैग मिलने से उस उत्पाद के नकली बनने से रोका जा सकता है। रतलामी सेव और मुरैना की गजक को भी GI टैग मिला है, जिससे उनकी गुणवत्ता की पहचान हुई है।

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