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केंद्र सरकार की आयुष्मान भारत योजना लाखों मरीजों को स्वास्थ्य सुविधा प्रदान कर रही है, लेकिन एक महत्वपूर्ण नियम से मरीजों की प्राइवेसी और आत्म सम्मान खतरे में आ रहे हैं। खासकर महिला मरीजों के लिए यह नियम चिंता का विषय बन गया है, क्योंकि इलाज के दौरान उनका चेहरा और ऑपरेटिव पार्ट की फोटो ली जाती है, जिसे पोर्टल पर अपलोड करना अनिवार्य है। डॉक्टरों और मरीजों के लिए यह स्थिति मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से असहज हो सकती है।
आयुष्मान भारत योजना की उद्देश्य
आयुष्मान भारत योजना, जिसका उद्देश्य भारत के नागरिकों को स्वास्थ्य बीमा सुविधा प्रदान करना है, के तहत मरीजों को 5 लाख रुपए तक का बीमा कवर मिलता है। मध्य प्रदेश के 497 सरकारी अस्पतालों को और 497 और 582 प्राइवेट अस्पताल केशलैस इलाज मुहैया कराते हैं। इसके लिए मरीज का इलाज सरकारी पोर्टल पर अपलोड किया जाता है, ताकि केशलैस इलाज दिया जा सके। इसमें मरीज की आईडी, फोटो, सर्जरी के दस्तावेज और रिपोर्ट्स अपलोड करना आवश्यक होता है।
फोटो लेने का विवादित नियम
आयुष्मान योजना के तहत मरीज के इलाज की पुष्टि और क्लेम पास करने के लिए, चिकित्सक मरीज के चेहरे और ऑपरेटिव पार्ट की फोटो लेने को अनिवार्य मानते हैं। खासकर महिला मरीजों के लिए यह नियम संवेदनशील मुद्दा बन गया है। डॉक्टरों का कहना है कि महिला मरीजों की प्राइवेसी का उल्लंघन हो रहा है, क्योंकि ऐसी सर्जरी के दौरान ऑपरेटिव पार्ट की फोटो लेने से उनका आत्म-सम्मान प्रभावित होता है।
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डॉक्टरों की आपत्ति और चिंता
इस नियम के बारे में कई डॉक्टरों ने अपनी आपत्ति जताई है। प्राइवेट मेडिकल कॉलेज की महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. वरुणा पाठक ने कहा कि जब मरीजों की सर्जरी के दौरान उनकी फोटो ली जाती है, तो यह उनके आत्म-सम्मान को ठेस पहुंचाता है। वे इस प्रक्रिया को अमानवीय मानती हैं और कहती हैं कि क्या केवल तस्वीरें ही इलाज के प्रमाण के रूप में स्वीकार की जा सकती हैं? इस बारे में मरीजों से सहमति भी नहीं ली जाती, जो कि चिकित्सा के प्रति विश्वास को कम करता है।
योजना में फर्जीवाड़े का खतरा
इस नियम के पीछे सरकार का उद्देश्य आयुष्मान योजना में हो रहे फर्जीवाड़े को रोकना है। पिछले कुछ वर्षों में कई प्राइवेट अस्पतालों ने फर्जी मरीजों को भर्ती कर क्लेम की रकम हासिल करने के मामले सामने आए हैं। इन घटनाओं के कारण ही सरकार ने क्लेम की पुष्टि के लिए मरीज की फोटो लेने का नियम लागू किया है। इससे अस्पतालों द्वारा किए गए धोखाधड़ी के मामलों में कमी आने की उम्मीद है।
डॉक्टरों और मरीजों के अधिकारों के रक्षा के लिए कई विशेषज्ञों का मानना है कि इस नियम में सुधार किया जा सकता है। वे कहते हैं कि फोटोग्राफी के बजाय डॉक्टरों की रिपोर्ट और मेडिकल प्रमाण पत्र को ही इलाज के प्रमाण के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए। इससे मरीजों की प्राइवेसी भी सुरक्षित रहेगी और धोखाधड़ी के मामलों को भी रोकने में मदद मिलेगी।
स्वास्थ्य विभाग का रुख
आयुष्मान योजना के नियमों के बारे में मध्यप्रदेश स्वास्थ्य विभाग के कमिश्नर ने कहा है कि यदि इस प्रक्रिया से किसी मरीज या डॉक्टर को परेशानी हो रही है, तो इसे बदलने की पहल की जाएगी। इसके अलावा, आयुष्मान योजना के क्लेम प्रक्रिया में सुधार की दिशा में विचार किए जाने की बात भी की गई है। यह देखना होगा कि भविष्य में इस नियम में क्या बदलाव होते हैं और इसका प्रभाव मरीजों की प्राइवेसी और आत्म-सम्मान पर क्या पड़ता है।
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अस्पतालों को मरीज के इलाज का खर्च सरकार देती है। मरीज के भर्ती होने से लेकर उसके डिस्चार्ज होने तक की सारी प्रोसेस आयुष्मान योजना के ट्रांजैक्शन मैनेजमेंट सिस्टम (TMS) पोर्टल पर अपलोड की जाती है। इसकी दो प्रोसेस होती हैं...
पहला प्रोसेस
इसमें मरीज की आईडी, फोटो, मरीज का इतिहास मांगा जाता है। भर्ती होने से पहले आधार कार्ड के जरिए बायोमेट्रिक वेरिफिकेशन किया जाता है। भर्ती होने के दौरान मरीज की फोटो ली जाती है। इसके बाद किए गए सभी टेस्ट जैसे एक्स-रे, सीटी स्कैन, एमआरआई, बायोप्सी/साइटोलॉजी की सॉफ्ट कॉपी दी जाती है। टेस्ट के बाद डॉक्टर की संस्तुति का नोट लिया जाता है। टीएमएस पोर्टल पर सभी दस्तावेज अपलोड करने के 2-3 घंटे बाद प्रस्ताव को मंजूरी मिल जाती है। इसके बाद इलाज शुरू होता है।
दूसरा प्रोसेस
इसमें सर्जरी या उपचार के प्रकार से जुड़ी जानकारी ली जाती है। मरीज के भर्ती होने के दौरान रोजाना की क्लीनिकल रिपोर्ट मांगी जाती है। इलाज के दौरान दवाओं के मूल बिल, डिस्चार्ज समरी और मरीज का फीडबैक फॉर्म लिया जाता है। इसके बाद मरीज के चेहरे और ऑपरेशन के बाद के हिस्से की फोटो ली जाती है। इन सभी दस्तावेजों को टीएमएस पोर्टल पर अपलोड करने के बाद क्लेम सेटल किया जाता है।
सरकारी अस्पतालों में आयुष्मान नोडल अधिकारी नियुक्त
ये फोटो 5 लोगों के हाथों से होकर गुजरती है। सरकारी अस्पतालों में आयुष्मान नोडल अधिकारी नियुक्त किए गए हैं जो सभी दस्तावेजों को टीएमएस पोर्टल पर अपलोड करेंगे। निजी अस्पतालों में यह काम मेडिकल ऑफिसर करते हैं। इनकी नियुक्ति की जिम्मेदारी निजी अस्पतालों की होती है। सभी दस्तावेज आयुष्मान मित्र उन तक पहुंचाते हैं। हर 50 बेड पर एक आयुष्मान मित्र होता है। आयुष्मान मित्र भर्ती मरीज का आयुष्मान कार्ड बनाने से लेकर इलाज की जानकारी तक के दस्तावेज तैयार करते हैं।
क्लेम का सारा रिकॉर्ड ऑनलाइन
मध्य प्रदेश में क्लेम प्रक्रिया का काम दो निजी कंपनियां सेफ-वे और पैरामाउंट करती हैं। इसके बाद ऑडिट प्रक्रिया का काम निजी कंपनी वाई-फ्लेक्स करती है। तीनों कंपनियों का चयन टेंडर के जरिए किया गया है। क्लेम का सारा रिकॉर्ड ऑनलाइन ही इन कंपनियों के कर्मचारियों के पास पहुंचता है। इस तरह एक क्लेम की पूरी प्रक्रिया 5-6 हाथों से होकर गुजरती है।